कोरोना बन गया है लोकतंत्र के लिए कहर

बिहार विधानसभा के चुनाव को टालने की मांग अब मुखर होने लगी है। इसके विरोध में बुद्धिजीवी और नागरिक समाज के लोग एकजुट हो रहे हैं। इन सभी ने चुनाव आयोग को संबोधित ज्ञापन राज्य चुनाव अधिकारी के मार्फत भेजा है।

कोरोना के बढ़ते प्रकोप की वजह से बिहार के लोगों के सामने उपस्थित जीवन-रक्षा की विकट समस्या को केन्द्र में रखते हुए इस ज्ञापन में राजनीतिक दलों के रुख की चर्चा भी की गई है। वर्चुअल माध्यम से चुनाव-प्रचार जैसे टोटकों को लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ बताया गया है। ज्ञापन पर कई प्रोफेसरों, पत्रकारों, रंगकर्मियों, किसान, छात्र नेताओं समेत अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हस्ताक्षर किए हैं।

ज्ञापन में कोरोना महामारी की भयावहता का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इसकी वजह से सरकार को बार-बार लॉकडाउन करना पड़ रहा है। डब्लूएचओ का आंकलन है कि बिहार अगस्त-सितंबर में कोरोना के बड़े केंन्द्र के रूप में उभर सकता है। शहरों के साथ-साथ गांवों में भी कोरोना फैलने लगा है। लगता है कि  सामुदायिक संक्रमण का दौर आ गया है।

डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना संक्रमण के शिकार हो रहे हैं। स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है। लंबे लॉकडाउन की वजह से गरीब और मेहनतकश जनता के सामने भोजन का संकट है। ऐसे में चुनाव के बारे में सोचना भी अजीब लगता है।

इस स्थिति से निर्लिप्त रहते हुए विभिन्न राजनीतिक दल चुनावों के लिहाज से वर्चुअल मीटिंग और रैली करने में लगे हैं।

वर्चुअल रैली करने के साथ ही चुनाव को ही वर्चुअल तरीके से संचालित करने की चर्चा की आलोचना करते हुए ज्ञापन में कहा गया है कि चुनावों में जनता की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करना लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त होती है। भारत में चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि आम चुनावों में आम मतदाताओं की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करें और सभी उम्मीदवारों को आम मतदाताओं से संपर्क करने के समान अवसर मिलें।

इस वर्चुअल जनसंपर्क और कथित वर्चुअल चुनाव में आम जनता की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करना संभव नहीं लगता। इसका पहला कारण तो इंटरनेट की सीमित पहुंच हैं।

ट्राई की सालाना रिपोर्ट के अनुसार फरवरी 2020 में बिहार में इंटरनेट का विस्तार महज 37 प्रतिशत आबादी तक है। कहने की जरूरत नहीं कि इसका बड़ा हिस्सा शहरों और संपन्न लोगों के पास है, देहात में इसका बहुत छोटा हिस्सा उपलब्ध है। पर यह मानी हुई बात है कि बिहार की 80 प्रतिशत आबादी अब भी गांवों में रहती है। ऐसे में वर्चुअल रैली से आम लोगों तक बात पहुंचाना असंभव-सा है।

चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनाव में तमाम चुनावकर्मी पीपीई किट का इस्तेमाल करेंगे। पर क्या इतनी संख्या में पीपीई किट उपलब्ध हो सकेगी और क्या इतने भर से कोरोना से बचाव संभव हो सकेगा। वैसे भी कोरोना महामारी को देखते हुए अभी किसी आयोजन में पचास से अधिक लोगों की भागीदारी पर रोक लगी हुई है। क्या चुनावों में ऐसा करना संभव हो सकता है।

चुनाव आयोग मतदान केन्द्रों की संख्या बढ़ाने, मतदानकर्मियों की संख्या बढ़ाने जैसी बात कर रहा है। पर क्या इतने भर से संक्रमण को रोका जा सकता है। अभी तो कोरोना के साथ ही भयावह बाढ़ ने भी आम लोगों को तबाह करने में रही सही कसर दूर कर दी है।

संभावना यही है कि वर्तमान हालत में केवल सत्ताधारी दल ही बेतहाशा खर्च करके वर्चुअल साधनों से जनसंपर्क कर पाएंगे और चुनावों में भी केवल साधन संपन्न लोग ही हिस्सा ले पाएंगे। वैसे पहले ही बिहार में आम चुनावों में 60-65 प्रतिशत से अधिक मतदान नहीं हो पाने की समस्या रही है। यह स्थिति लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहद खतरनाक होगी।

इन सभी मुद्दों को उठाते हुए नागरिक समाज की ओर से चुनाव आयोग से मांग की गई है कि वह चुनाव को स्थगित करने की घोषणा यथाशीघ्र करे जिससे चुनावों की तैयारी में लगे सरकारी तंत्र औऱ पार्टियों को महामारी का मुकाबला करने में ध्यान केन्द्रीत करने का अवसर मिल सके।

  • अमरनाथ
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