रिटायर होने के बाद डीजीपी का कुबूलनामा, सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन में लोगों की मौत दुर्भाग्यपूर्ण

उप्र के DGP ओपी सिंह कल सेवानिवृत्त हो गए। उन्होंने अपने आखिरी दिन यह confess किया कि CAA, NRC विरोधी आंदोलन में लोगों की मौत दुर्भाग्यपूर्ण थी। याद करिए, शुरुआत यहां से हुई थी कि मरने वाले दंगाई थे। ओपी सिंह ने कहा था कि पुलिस की गोली से कोई नहीं मरा, मौतें तो आपसी cross firing में हुई थीं! बाद में पता लगा कि मृतकों के शरीर में गोली नहीं मिली, इसलिए यह बता पाना मुश्किल है कि वह किसकी गोली थी!

बहरहाल, उनका यह confession बहुत कुछ कहता है। प्रदेश के मुखिया के बदला लेने के एलान के बाद संविधान की मर्यादा नहीं राजसिंहासन की डोर से बंधे एक नौकरशाह और उनके सिस्टम से इससे ज्यादा उम्मीद करना व्यर्थ होगा।

उप्र में 19 और 20 दिसंबर को जो कुछ हुआ, वह लोकतंत्र की हत्या से कम कुछ भी नहीं था! 20 से अधिक लोगों की हत्या हुई, सैकड़ों जेल में ठूंसे गए, हज़ारों पुलिस बर्बरता के शिकार हुए। घायल हुए। detain हुए। उनके खिलाफ मुकद्दमा दर्ज हुआ। सम्पत्ति कुर्क करने का आदेश हुआ। अनेक लोग सांप्रदायिक अपमान, गालीगलौच के बेवजह शिकार हुए।

कानून के राज पर हमले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुम्बई के एडवोकेट अजय कुमार के उस ई-मेल के आधार पर, जिसमें कहा गया था कि 19-20 दिसंबर को प्रदर्शनकारियों से निपटने के नाम पर संविधान के बुनियादी उसूलों की धज्जियां उड़ाई गई हैं, suo-moto लेते हुए इस पर बेहद सख्त लहजे में सरकार और पुलिस से जवाब मांगा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने संपत्ति जब्त करने के आदेश पर जवाब मांगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही और अब उच्च न्यायालय ने बिना किसी genuine कारण के, लोगों की अभिव्यक्ति और विरोध की आज़ादी पर रोक लगाने की नीयत से लगातार धारा 144 लगाए रखने पर कड़ा एतराज ज़ाहिर किया है।

उच्च न्यायालय ने प्रदर्शनों पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी है। फिर भी रोज मुकदमे कायम किए जा रहे हैं और गिरफ्तारियां जारी हैं। देश देख रहा है कि मोदी-अमित शाह ने गुजरात को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाया था तो योगी ने उप्र को उसकी सबसे बड़े प्रयोग स्थल में तब्दील कर दिया है।

76 वर्षीय पूर्व पुलिस महानिदेशक दारापुरी जी से, जो लोकतांत्रिक आंदोलन की जानी मानी शख्शियत और सुप्रसिद्ध अंबेडकरवादी नेता हैं, जब मैं 22 दिसंबर को जेल में मिलने गया तो भावुक होते हुए उन्होंने कहा कि लाल बहादुर जी मैं जानता हूं कि मुझे कुछ नहीं होगा, मैं तो छूट ही जाऊंगा, लेकिन उन मासूम बच्चों का क्या होगा जो नाम पूछकर पीटकर बंद कर दिए गए हैं। उन गरीब मजदूरों का क्या होगा, जो दाढ़ी देखकर कहीं ढाबे में बर्तन साफ करते समय उठाकर जीप में फेंक दिए गए!

योगी राज में उत्तर प्रदेश तेज़ी से पुलिस स्टेट बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री की ‘ठोंक दो’ नीति जब state policy बन गई है, तब पुलिस का निरंकुश होते जाना स्वाभाविक है। पिछले दिनों तमाम नौजवान मुठभेड़ के नाम पर मारे गए, जिनमें अनेक के फर्जी होने का आरोप है, जाहिर है पुलिस ने गवाह, वकील जज मुंसिफ कोर्ट की भूमिका खुद ही निभाई।

कहना न होगा कि इसका सबसे बदतरीन शिकार समाज के सबसे कमजोर तबकों के लोग हो रहे हैं, गरीब, आदिवासी, दलित, महिलाएं, पिछड़े अल्पसंख्यक हो रहे हैं।

पुलिस की इस निरंकुशता का शिकार समाज का हर वह तबका हो रहा है जो अपने हक की आवाज़ उठा रहा है, चाहे वह शिक्षा-रोजगार-प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लड़ते  छात्र-युवा हों या आंगनबाड़ी-आशा बहुएं, शिक्षा मित्र, असंगठित कामगार, कारोबारी, कर्मचारी, किसान, मेहनतकश हों! पूरे प्रदेश में भय, असुरक्षा और तनाव का माहौल व्याप्त है। विकास ठप्प है। सौहार्द खतरे में है।

आज उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र की बहाली और अभिव्यक्ति, असहमति तथा विरोध करने की नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक आज़ादी की रक्षा हर इंसाफ और लोकतंत्र पसंद नागरिक का, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता का सर्वोच्च कार्यभार बन गया है।

इसी प्रश्न पर आगामी 29 फरवरी को लखनऊ के ऐतिहासिक गंगा प्रसाद मेमोरियल हॉल में हम भारत के लोग- “योगी सरकार हटाओ, लोकतंत्र बचाओ” अभियान द्वारा एक सम्मेलन आयोजित किया गया है।

इसमें आप भी दोस्तों के साथ शिरकत करें!

लाल बहादुर सिंह
(लेखक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष हैं।)

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