किसान आंदोलन-2: दिल्ली कूच का ऐलान कभी भी कर सकते हैं किसान                             

पंजाब के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसान मोर्चे का बुधवार को सोलहवां दिन है। किसानों ने दिल्ली कूच के लिए यहां पड़ाव डाल रखा है। किसानों की मुख्य मांगों में तेईस फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी और बीते दौर तथा वर्तमान में किसानों के खिलाफ विभिन्न राज्यों की पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मुकदमे खारिज करवाना है। लेकिन अब फौरी तौर पर सबसे बड़ी और पहली मांग एक हफ्ता पहले खनौरी बॉर्डर पर हरियाणा पुलिस के हाथों मारे गए युवा किसान शुभकरण सिंह की मौत के मामले में एफआईआर दर्ज करवाना है।

बॉर्डर पर आंदोलनरत किसानों की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मोर्चा के संयुक्त फोरम ने मंगलवार देर शाम बैठक के बाद घोषणा की कि केंद्र सरकार से पांचवें दौर की बातचीत तभी होगी, जब शुभकरण की मौत के मामले में केस दर्ज होगा।

सातवें दिन भी किसानों ने शुभकरण का पोस्टमार्टम नहीं होने दिया। उन्होंने पटियाला का राजेंद्रा अस्पताल घेरा हुआ है। इस बीच आंदोलन का हिस्सा रहे एक और किसान करनैल सिंह की जान चली गई है। साठ वर्षीय किसान करनैल सिंह पहले दिन से ही किसान आंदोलन में शरीक थे। बताया जाता है कि पिछले बुधवार को हरियाणा पुलिस ने किसानों पर आंसू गैस का प्रहार किया था तो तभी से उनकी तबीयत नासाज़ थी। 26/27 फरवरी की रात उन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया। डॉक्टरों ने उनका उनका शव उसी मोर्चरी में रखवाया है जहां शुभकरण सिंह की मृतक देह पड़ी है। सोलह दिन से चल रहे इस किसान आंदोलन में अब तक आठ लोगों की जान जा चुकी है। करनैल सिंह की मौत के बाद नए सिरे से तनाव का माहौल बनने लगा है।        

दो किसान संगठनों (किसान मजदूर मोर्चा व संयुक्त किसान मोर्चा-गैर राजनीतिक) और संयुक्त किसान मोर्चा-एसकेएम में अंतर्कलह  शुरू हो गई है। सूबे के किसानों में इसका अच्छा प्रभाव नहीं जा रहा और इसे वर्चस्व की लड़ाई माना जा रहा है जो अंततः  किसान आंदोलन के लिए नुकसानदेह साबित होगी।

पंजाब के प्रमुख संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता- उगराहां) के अध्यक्ष जोगेंद्र सिंह उगराहां के अनुसार, “दिल्ली कूच का आह्वान संयुक्त किसान मोर्चा का नहीं बल्कि कुछ किसान संगठनों का था। आंदोलन की बाबत हमसे कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। उन संगठनों के साथ हमारे वैचारिक मतभेद हैं। उनके साथ जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। एसकेएम ने 14 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में रोष रैली रखी है, हम उसमें शिरकत करेंगे। किसानों की मांगों को लेकर हमारी यूनियन ने हमेशा लड़ाई लड़ी है और आगे भी लड़ते रहेंगे।”

जवाब में किसान मजदूर मोर्चा के प्रमुख नेता सरवण सिंह पंधेर कहते हैं, “हमने मोर्चा शुरू करने से पहले एसकेएम के तमाम नेताओं के साथ तेरह बैठकें कीं तथा इन्हें इस संघर्ष में शामिल होने के लिए बार-बार निवेदन किया। जब इन्होंने कोई पुख्ता जवाब नहीं दिया तो इसके बाद हमने 13 फरवरी को दिल्ली कूच की कॉल दी। एसकेएम के ढीले रवैए के चलते मोर्चा देर से लगा। यह नवंबर में लग जाना था। अब जोगिंदर सिंह उगराहां, बलबीर सिंह राजेवाल व डॉ. दर्शन पाल जैसे नेताओं को फोरम के मोर्चे की कामयाबी रास नहीं आ रही और इसीलिए वे समानांतर आंदोलन अथवा मोर्चे की कॉल दे रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा किसानों को गुमराह कर रहा है और किसान आंदोलन-2 को कमजोर भी।”

आज शाम किसान मजदूर मोर्चा और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) की शंभू बॉर्डर पर बैठक होगी और वीरवार 29 फरवरी को दिल्ली कूच का ऐलान होगा। शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डेट किसान शिद्दत से घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक दिल्ली कूच का ऐलान आज भी हो सकता है।                                         

गौरतलब है कि दो दिन पहले किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने संकेत दिए थे कि सरकार से बातचीत हो सकती है लेकिन अब उनका और मोर्चे की अगुवाई कर रहे अन्य प्रमुख किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का रुख बदल गया है। फिलहाल संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल 32 जत्थेबंदियों में से 10 का समर्थन शंभू और खनौरी में किसान मोर्चा का नेतृत्व कर रहे फोरम के साथ है।                                       

शंभू बॉर्डर पर होने वाली किसान संगठनों की बैठक पर केंद्र, हरियाणा और पंजाब सरकार की निगाह लगी हुई है। हरियाणा की ओर से चौकसी और ज्यादा बढ़ा दी गई है। बॉर्डर के हरियाणा वाले हिस्से में राज्य पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तादाद बढ़ा दी गई है। किसानों के दिल्ली कूच का ऐलान होता है तो यह केंद्र की नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के लिए भारी मुसीबत का सबब होगा। हरियाणा पुलिस-प्रशासन और सरकार का पूरा जोर किसानों को दिल्ली जाने से रोकने पर होगा। ऐसे में टकराव यकीनी है।

(पंजाब से अमरीक की रिपोर्ट।)

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