उत्तराखंड: दस दिन बाद भी खूंखार बाघ को नहीं पकड़ सका वन विभाग, तीसरी बार बढ़ानी पड़ी स्कूल बंदी की मियाद

देहरादून। उत्तराखंड के गढ़वाल जिले में आदमखोर बाघ के खौफ से ग्रामीणों को दस दिन बाद भी वन विभाग निजात नहीं दिला पाया है। बाघ के खौफ के चलते जिले के दर्जनों गांवों का जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया। लोग अधिकांश तौर पर अपने घरों में ही कैद हो कर रहने को मजबूर हैं, तो खेलकूद के अभाव में छोटे बच्चों के व्यवहार में तब्दीली आ रही है। जिलाधिकारी ने इलाके के स्कूल बंद करने के अपने आदेश को लागू करने की तारीख तीसरी बार आगे बढ़ा दी है। जिसके चलते इन गांवों के स्कूल और आंगनवाड़ी केंद्र अब कम से कम 26 अप्रैल तक बंद रहेंगे।

कॉर्बेट नेशनल पार्क के कालागढ़ वन प्रभाग से सटे पौड़ी गढ़वाल जिले के रिखणीखाल और धुमाकोट ब्लॉक में ग्रामीण अप्रैल माह की शुरुआत से ही इलाके में बाघों की दस्तक की शिकायत कर रहे थे। ग्रामीणों का कहना था कि बाघ चार पांच की संख्या में हैं। ज्यादातर उनकी आवाजाही गांव के इर्द गिर्द ही है। कई महिलाओं ने भी बाघ देखे जाने की पुष्टि की थी। लेकिन इससे पहले कि ग्रामीणों की इस शिकायत पर कोई कार्रवाई हो पाती, बाघ ने 13 अप्रैल को हमला कर एक बुजुर्ग को मौत के घाट उतार दिया।

इस घटना से सहमे ग्रामीण वन विभाग से बाघ पकड़ने की मांग कर ही रहे थे कि दो दिन बाद ही 15 अप्रैल को फिर बाघ ने एक बुजुर्ग पर हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। तीन दिन में बाघ के हाथों हुई दो मौतों के बाद गढ़वाल जिले के करीब दो दर्जन गांवों में खौफ का सन्नाटा पसर गया। इसके बाद से ही हमलावर बाघ को पकड़ने के लिए यहां वन विभाग के साथ प्रशासन डेरा डाले हुए हैं। खुद जिलाधिकारी पौड़ी डॉ. आशीष चौहान ने बीते 17 अप्रैल को प्रभावित क्षेत्र का स्थलीय निरीक्षण कर ग्रामीणों से मुलाकात की थी।

जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने बाघ प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा के लिहाज से रात्रिकालीन कर्फ्यू लगाने के साथ ही गांवों के सभी स्कूलों और आंगनवाड़ी केद्रों में बीते 18 अप्रैल तक छुट्टी घोषित कर दी थी। जिसे बाद में 21 अप्रैल तक बढ़ा दिया गया था। डीएम को आशा थी कि इस समय में समस्या का समाधान हो जाएगा। लेकिन वन विभाग इस दौरान बाघ को पकड़ने में नाकाम रहा। जिस वजह से ईद और रविवार की छुट्टी के बाद अब डीएम ने प्रभावित क्षेत्र के स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों में छुट्टी तीन दिन के लिए और बढ़ा दिया है।

डीएम डॉ. आशीष चौहान ने तहसील रिखणीखाल के ग्राम डल्ला पट्टी पैनो-चार, मेलधार, क्वीराली, तोल्यूं, गाडियूं, जुई, कांडा, कोटडी और तहसील धुमाकोट में ग्राम ख्यूणांई तल्ली, ख्यूणांई मल्ली, ख्यूणांई बिचली, उम्टा, सिमली मल्ली, चमाड़ा, सिमली तल्ली, घोडकन्द मल्ला, घोडकन्द तल्ला, कांडी तल्ली, कांडी मल्ली, मन्दियार गांव, खड़ेत, गूम, बेलम क्षेत्र में आने वाले सभी स्कूलों और आंगनबाडी केंद्रों में 26 अप्रैल तक छुट्टी घोषित कर दिया है।

इसके साथ ही डीएम ने ग्रामीणों से सावधानी बरतने की अपील की है। डॉ. चौहान ने बताया कि प्रभावित क्षेत्रों में बाघ की सक्रीयता देखी जा रही है। वन विभाग और प्रशासन की टीम प्रयासों में जुटी है। लेकिन जब तक इस दिशा में कोई ठोस सफलता हाथ नहीं लगती, हमें खास तौर पर सावधानी बरतनी होगी। उन्होंने ग्रामीणों से बाघ को लेकर किसी तरह की सूचना मिलने पर कंट्रोल रूम, वन विभाग, पुलिस और प्रशासन को दिए जाने की अपील भी की।

लोकेशन बदलने से आ रही है दिक्कत

तीन हफ्ते से भी अधिक समय से बाघ का खौफ झेल रहे ग्रामीणों को बाघ के आतंक से निजात दिलाए जाने के वन विभाग के प्रयास बाघ की होशियारी से परवान नहीं चढ़ रहे हैं। 15 अप्रैल के बाद से ही हमलावर बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग के साथ प्रशासन डेरा डाले हुए है। लेकिन अभी तक वन विभाग के हाथ खाली हैं।‌ बाघ लगातार अपना मूवमेंट बदल रहा है जिससे वन विभाग को उसे ट्रेंकुलाइज करने या पिंजरे में कैद करने में लगातार असफलता मिल रही है।

बच्चों के व्यवहार में आ रहा है परिवर्तन

बाघ प्रभावित गांवों में ग्रामीणों का जनजीवन एक तरह से अस्त व्यस्त हो चला है। बाघ के खौफ के चलते ग्रामीण अपनी स्वाभाविक दिनचर्या से जीवन यापन नहीं कर पा रहे हैं। हमलावर बाघ कैद न होने के कारण उन पर बाघ के खौफ का मनोवैज्ञानिक दबाव बना हुआ है। सुकून की बात यह है कि बाघ पिछले एक हफ्ते में हमले की किसी कोशिश में सफल नहीं हुआ है।

बाघ प्रभावित गांवों के बच्चे भी अपने मां बाप के साथ ही घरों में कैद होकर रह गए हैं। चिंतित मां बाप अपने बच्चों पर सख्त निगरानी रखे हुए हैं। जिससे बच्चों का खेलना कूदना भी बंद हो गया है। कई बच्चों के व्यवहार में घरों में कैद रहने के दौरान चिड़चिड़ेपन की शिकायत देखने को मिल रही है।

(देहरादून से सलीम मलिक की रिपोर्ट।)

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