कूड़े के पहाड़ हैं दिल्ली के लिए खतरा

वर्तमान स्थिति में दिल्ली में तीन लैडफिल है, भलस्वा, गाजीपुर और ओखला। यह तीनों ही लैडफिल अपनी क्षमता से ज्यादा भर चुके हैं। कुछ समय पहले खबर थी कि भलस्वा और गाजीपुर की उंचाई जल्द ही कुतुब मीनार और ताजमहल की ऊंचाई के बराबर पहुंच जाएगी। खैर इसको कम करने के प्रयास तो किए जा रहे हैं, पर यह कहना जल्दबाजी होगा कि यह सकारात्मक प्रयास है। इस पर थोड़ा सोचने की जरूरत है।

गाजीपुर लैडफिल में 2017 में हुई दुर्घटना में दो लोगों की मौत हो गई थी। पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर ने स्थिति का जयजा लेते हुए नगर निगम के अधिकारियों के साथ मिलकर निर्णय लिया था कि लैडफिल की उंचाई को कम करने के लिए लैडफिल पर सैगरिगेटर लगाए जाएं। साथ ही बायो मायनिंग और बायोरिमैडिटेशन किया जाए।

गौतम गंभीर ने गाजीपुर लैडफिल साइट को कम और खत्म करने के लिए इंदौर मॉडल के अन्तर्गत प्रयोग होने वाले सेगरिगेटर और मशीनों के प्रयोग की सिफारिश की। यदि दोनों ही शहरों में उत्पन्न कूड़े की मात्रा के सदंर्भ में बात करें तो इंदौर में प्रतिदिन 300 मैट्रिक टन कूड़ा उत्पन्न होता है। दिल्ली में दस हजार मैट्रिक टन कूड़ा पैदा होता है।

गाजीपुर की घटना के बाद शहर के बाकी प्रशासनिक संस्थानों ने भी लैडफिल की ऊंचाई को कम करने पर जद्दोजहद शुरू की। इसमें केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली सरकार और नगर निगम ने काम शुरू कर दिया।   

क्या है बायो मायनिंग और बायोरिमैडियेशन
बायो मायनिंग और बायोरिमैडियेशन के जरिए पर्यावरण को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। इसका मुख्य काम है पानी को कूड़े के प्रभाव से बचाया जा सके और मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम किया जा सके, जो पर्यावरण के लिए घातक है।  इस प्रकिया में लैडफिलों पर टनों की मात्रा में पड़े कूड़े को सेगरिगेटर से खत्म किया जा सकता है। सेगरिगेटर का काम है लैडफिल में पड़े मिक्स कूड़े को अलग-अलग करना। इसमें प्लास्टिक, मेटल और कांच आदि आते हैं।

इस प्रकिया में सबसे महत्वपूर्ण काम यह है कि कूड़े के साथ निकलने वाले पानी को अलग करना ताकि ग्राउंड वाटर को और ज्यादा दूषित होने से बचाया जा सके। कूड़े के साथ मिलकर निकलने वाले पानी को लीचट कहा जाता है।

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016
कूड़ा निपटान संबंधी पहला रूल 2000 में आया था। इसे सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2000 कहा गया। इस रूल में तहत विभिन्न प्रकार के कूड़े को विभाजित करते हुए उनको निपटाने की प्रकिया पर विस्तार पूर्वक दिशा निर्देश दिए गए। इसमें सॉलिड वेस्ट, मेडिकल वेस्ट, कंनस्ट्रक्शन एंड डिमोलेशन वेस्ट, प्लास्टिक वेस्ट, ई वेस्ट आदि आते हैं। 2016 में पुनः रूल 2000 में रही कुछ कमियों को दूर करते हुए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 आया। रूल 2016 में बहुत से सकारात्मक बदलावों के साथ वैज्ञानिक तरीके से लैडफिल बनाने की बात रखी गई।

दिल्ली स्थिति तीनों लैडफिलों में से कोई भी लैडफिल तयशुदा नियमों के आधार पर नहीं बनी है। रूल 2016 में साफ तौर पर कहा गया है कि लैडफिलों पर कूड़े का भार कम करने के लिए जरूरी है निचले स्तर पर ही कूड़े का निपटान व्यवस्थित तरीके से हो ताकि लैडफिलों पर कूड़े के पहाड़ न बन सकें।

रूल 2016 के अनुसार जहां पर कूड़ा उत्पन्न होता है वहीं पर कूड़े का निदान भी होना चाहिए। ज्यादा मात्रा में कूड़ा जनरेटर संस्थानों और सोसाइटियों के लिए रूल 2016 में कहा गया है कि वह अपने द्वारा उत्पन्न कूड़े का निपटान स्वयं करेंगे। यदि बनाई गई योजना के अनुसार कूड़ा निपटान होता है तो वर्तमान स्थिति में लैडफिल पर बढ़ते भार को कम किया जा सकता है।

दिल्ली नगर निगम द्वारा कूड़े के पहाड़ों की ग्रीन कैपिंग करने के लिए टेंडर निकाला गया। इसके अन्तर्गत लैडफिल पर इकट्ठा कूड़े को खत्म किया जा सकेगा। उस पर पेड़-पौधे लगाए जाएंगे ताकि ऊपर से सब हरा भरा दिखे। सवाल यह है कि ऊपर से लैडफिल को हरा भरा कर भी दें तो जमीन के अंदर की समस्या का समाधान कैसे हो पाएगा, क्योंकि ग्रीन कैपिंग करने से लैडफिल के ऊपर कूड़ा दिखाई नहीं देगा, परन्तु इस प्रकिया से जमीन में मिक्स होने वाले लीचट को खत्म नहीं कर रहे हैं और न ही हवा में घुलने वाली ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कम कर रहे हैं।

इनका असर गर्मी और बरसात के मौसम में अधिक दिखता है। नेशलन हरित प्राधिकरण द्वारा गठित पैनल ने स्वीकार किया कि वर्तमान समय में कूड़े के साथ मिक्स होने वाले पानी से जमीनी पानी को बचाना एक चुनौती बना हुआ है, क्योंकि यह पानी सिर्फ जमीन के अंदर ही नहीं जा रहा बल्कि यमुना नदी में जाकर भी मिल रहा है।

सन् 2019 में नेशनल हरित प्राधिकरण में Centre for Wildlife and Environmental Litigation (CWEL) ने पिटीशन डाली। इसमें उन्होंनें कहा कि लैडफिल पर ग्रीन कैपिंग अवैध तरीके से की जा रही है जो सॉलिड वेस्ट मैनजमेंट रूल 2016 का उल्ंलघन है। उन्होंने अपनी पिटीशन में यह भी जिक्र किया कि रूल 2016 में साफतौर पर लिखा कि स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है कि वह उत्पन्न कूड़े का निपटान रूल में दिए गए नियमों के अनुसार करवाते हुए पुराने लैडफिलों का निपटान करे। 

सेन्ट्रल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइन के अनुसार भी उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि लैडफिल की ग्रीन कैपिंग करना उचित नहीं है क्योंकि इस प्रक्रिया को अपनाने से कूड़े के साथ मिलकर निकलने वाला लीचट और वायु में प्रदूषण की मात्रा को कम करने की बजाय और ज्यादा मात्रा में बढ़ा सकता है।

लैडफिल की ऊंचाई को कम करने और खत्म करने के लिए किए गए एंग्रीमेंट में इस बात का जिक्र भी नहीं किया गया है कि ग्रीन कैपिंग के दौरान निकलने वाला लीचट का साइट पर ही निपटान किस प्रकार किया जाएगा या उसका निपटान करने की जिम्मेदारी किसकी होगी।

दिल्ली के तीनों लैडफिल गाजीपुर, भलस्वा और ओखला जो अपनी क्षमता से तीन गुना ज्यादा भर चुके हैं उसके बावजूद भी वर्तमान स्थिति में वहां पर कूड़ा डाला जा रहा है। स्थानीय निकायों ने इसे कम करने का प्रयास शुरू तो किया उस प्रयास में भी देरी के साथ-साथ उन्होंने अवैज्ञानिक तकनीक को अपनाते हुए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 में दिए गए नियम-कानूनों को ताख पर रखते हुए पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

  • बलजीत मेहरा

(लेखक स्वतंत्र शोधार्थी हैं।)

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