प्रतिष्ठा आधारित अपराध रोकने लिए कानून बनाए सरकार: पीयूसीएल

छत्तीसगढ़ पीयूसीएल (लोक स्वातंत्र्य संगठन) और प्रदेश में कार्यरत विभिन्न नागरिक व मानव अधिकार संगठनों ने कट्टर धार्मिक, जातिवादी और पितृसत्तात्मक ताकतों द्वारा संस्कृति, परम्परा और प्रतिष्ठा के नाम पर जारी अपराध व सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार का मुकाबला करने के लिए 1-2 सितंबर को पैस्टोरल सेंटर रायपुर में एक राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया।

भारत में संस्कृति, परम्परा एवं प्रतिष्ठा आधारित अपराध और हिंसा से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हो रहे हैं। खास तौर पर दलित- आदिवासी जातियां, सीमान्त महिलायें, धार्मिक अल्पसंख्यक और एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के युगल ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के मामलों में ऐसा हौवा खड़ा किया जाता है जैसे कि बहिष्कृत व्यक्ति अथवा समुदाय ने पूरे समाज का कोई बड़ा नुकसान किया है।

जबकि जनसंगठनों ने अपने जमीनी तथ्यान्वेषण में यह पाया है कि ऐसे बहुतायत मामले नैतिक (moral) पुलिसिंग का परिणाम होते हैं, जो कि धार्मिक-जातीय-पितृसत्ता के विधानों की अवहेलना करने वाले व्यक्ति और समुदायों की निगरानी कर उन्हें दासता की जंजीरों से कसकर जकड़े रखना इनका मकसद होता है। यह भी उल्लेखनीय है कि कट्टरपंथी ताकतों ने ‘समाज-धर्म पर खतरा’ के  नाम पर भड़का कर ऐसे मौकों को दंगे का रूप देने के लिए संगठित साजिश रचने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। 

हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अपनी पसंद के व्यक्ति से सुरक्षित रूप से सम्बन्ध बनाने/ लिव इन सम्बन्ध में रहने की स्वतंत्रता के बिना जी रहे हैं। हम दो भारत में रह रहे हैं- एक ओर जहां कुछ सम्बंधों को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर भिन्न खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, विचित्र और विविध अभिरुचि, भिन्न विश्वास तथा मत रखने वाले व्यक्ति, परिवार और समुदाय को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।

उन्हें संवैधानिक राज्य तंत्र पर हावी हो चुके समाज में वर्चस्वशाली जाति सता, धर्म सत्ता, पितृ सत्ता के द्वारा रोटी-बेटी, आग-पानी सम्बन्ध तथा सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार, जीविकोपार्जन के संसाधनों से बेदखली, जबरन अलगाव, जबरदस्ती व्यक्तियों के बाल काटने और चेहरे तथा अन्य हिस्सों में रंग-रोगन करने, उन्हें नंगा/ निर्वस्त्र कर घुमाने, बंधक बनाने, भारी आर्थिक जुर्माना, मृत्युदंड  और यहां तक कि मौत के बाद उनके शवों तक को कब्र से खोदकर बाहर निकालने और नीचा दिखाने तथा अपमानित किये जाने के परिणाम भुगत रहे हैं।

सम्मान आधारित अपराधों के मूल में भारतीय समाज में प्रचलित जाति, लिंग और धर्म आधारित श्रेणीबद्ध असमानता और संसाधनों पर वर्चस्व की राजनीति काम कर रही है। यह लम्बे समय से परम्परा के नाम पर चले आ रहे सामाजिक विधानों और धार्मिक तथा जातिगत कट्टरता एवं हाल के वर्षों में प्रभावशाली गुटों की ओर से हिन्दु राष्ट्र और वोटों के ध्रुवीकरण के मकसद से एक सोची-समझी रणनीति के तहत देश में जिस तरह का माहौल निर्मित किया जा रहा है, उसने इस पुराने कलह के अंगारों को हवा दी है।

इस कारण भारतीय समाज का एक व्यापक हिस्सा उनके नैसर्गिक गांव- बसाहटों तथा जीविको-पार्जन के संसाधनों से नस्ल (xenophobia), प्रतिष्ठा और हिंसा आधारित सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के लगातार शिकार हो रहे हैं।

प्रतिष्ठा आधारित और सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार सम्बन्धी घटित हो रहे अपराधों के सम्बन्ध में कोई विश्वसनीय आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2014 से अब तक प्रतिष्ठा आधारित हत्या (ऑनर किलिंग) के केवल 540 केस रिपोर्ट हुए हैं। इससे पता चलता है कि प्रतिष्ठा आधारित अपराधों को बहुत कम रिपोर्ट किया जा रहा है। क्योंकि ये आंकड़े वास्तविक जमीनी  आंकड़ों, संचार माध्यमों में लगातार आ रही ख़बरों तथा गैर शासकीय संस्थानों द्वारा एकत्र की गयी रिपोर्ट से बहुत विपरीत हैं। एक अनुमान के मुताबिक सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के 50,000 से अधिक घटनाएं अकेले छत्तीसगढ़ प्रदेश में घटित हुई हैं।

भारतीय समाज में प्रतिष्ठा आधारित अपराधों के रोकथाम के लिये देश में (महाराष्ट्र राज्य को छोड़कर) कोई विशेष कानून अस्तित्व में नहीं है। छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती भाजपा की सरकार ने एक ड्राफ्ट बिल/ विधेयक प्रस्तावित किया था, लेकिन उस समय प्रदेश के अधिकतर जातीय संगठनों ने एक राय होकर इस तर्क व आधार पर उस विधेयक का विरोध किया था, कि इससे सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार समाज/जाति और पितृसत्ता का व्यक्तियों तथा नागरिकों पर से नियंत्रण ख़त्म हो जायेगा।

वर्तमान में सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार के अपराधों पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों और अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाये जाते हैं।

प्रतिष्ठा आधारित अपराधों की जटिलता और खतरनाक प्रवृतियों को कम नहीं आंका जा सकता है। और कोई कानून नहीं होने और मामलों को निर्धारित करने का कोई निश्चित तरीका नहीं होने की वज़ह से प्रतिष्ठा आधरित अपराधों के मामलों में अपराध सिद्ध होने की संभावना अत्यंत कम रह जाती है।

लॉ कमीशन ने अलग कानून बनाने की सिफारिश की है। सर्वोच्च न्यायलय की ओर से शक्ति वाहिनी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के 27 मार्च 2018 के फैसले में प्रतिष्ठा आधारित अपराधों के लिए अलग कानून की जरूरत पर जोर देते हुए निर्णय पारित किया गया है।

संगोष्ठी में इस क्रूर सामाजिक समस्या व अनवरत घटित हो रहे अपराधों के समाधान व समूल नाश के लिए संवैधानिक राज्य तंत्र की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए प्रस्ताव पारित किये गये :-

1- प्रतिष्ठा आधारित अपराधों से प्रभावित लोगों को सुनवाई और उससे प्रभावित लोगों के मानव अधिकारों के संरक्षा के लिए विस्तृत कानून की रचना करें।

2- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो और पुलिस द्वारा प्रतिष्ठा आधारित अपराधों (केवल हत्या ही नहीं) बल्कि सभी सम्बंधित अपराधों के लिए अलग रिकॉर्ड रखना।

3- प्रतिष्ठा आधारित अपराधों के केस की सुनवाई के लिए विशिष्ट न्यायालयों और फास्ट ट्रक अदालतों की रचना करना।

4- कानून को लागू करने वाली संस्थाएं और ख़ास तौर पर पुलिस अधिकारियों, जो प्रतिष्ठा के नाम पर हो रही हिंसा को रोकने और त्वरित कार्रवाई करने में असफल हों, उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई सुनिश्चित हो।

5- प्रतिष्ठा आधारित धमकियों और हिंसा की घटनाओं से जूझ रहे युगलों के लिए पुलिस संरक्षण, आर्थिक सहायता व क्षतिपूर्ति, विधिक सहायता, सुरक्षित आश्रय गृह और सामाजिक सुरक्षा के उपाय करना।

6- जाति-कट्टा-खाफ जैसी पंचायतें प्रतिष्ठा आधारित अपराध करने वालों को प्रोत्साहन देते हैं, इसलिए इनका उन्मूलन और उन्हें नियंत्रित करना होगा।

7- समाज में प्रचलित प्राचीन रुढ़ि-परंपरा के अनुरूप जीवन साथी चयन, रहन-सहन, खान-पान और नियम-विधान से इतर भिन्न मत, पसंद तथा अभिरुचि रखने वाले व्यक्ति, परिवार और समुदायों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार, मरणोपरांत व कब्र खोदकर गांव-बसाहटों की सीमा से शवों को निष्कासित करने व अपमानित करने की घटनाओं से संरक्षण और रोकथाम के लिए कानून पारित करना।

8- जाति-समाज में प्रतिष्ठा/अंधश्रद्धा आधारित दण्ड-विधान तथा उसको लागू कराने वाली सामानांतर रूढिगत व्यवस्था के खिलाफ वैज्ञानिक सोच तथा लोकतान्त्रिक जागरूकता के उपाय करना।

संगोष्ठी में पीयूसीएल छत्तीसगढ़, गुरुघासीदास सेवादार संघ, कानूनी मार्गदर्शन केंद्र, छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति, दलित आदिवासी मंच, निवेदिता फाउंडेशन, छत्तीसगढ़ प्रोग्रेसिव क्रिस्चियन अलायन्स, छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति, महिला मुक्ति मोर्चा, आदिवासी शक्ति संगठन, आदिवासी भारत महासभा, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन एसोसिएशन छत्तीसगढ़, दलित अधिकार अभियान, जीवन विकास मैत्री संगठन, जाति उन्मूलन आन्दोलन, क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच, दलित मूवमेंट एसोसिएशन, ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, ऑल इंडिया लायर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस छत्तीसगढ़, दलित ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स नेटवर्क शामिल थे।

(विज्ञप्ति पर आधारित।)

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