देश में पूंजीपतियों का, पूंजीपतियों के लिए व पूंजीपतियों के द्वारा बनायी गयी सरकार ही चल रही है

हमारे देश से अंग्रेजों के गये हुए 74 वर्ष पूरे होने वाले हैं। क्या इन 74 वर्षों में भी हमारे देश की जनता को वास्तविक आजादी मिली है?

यह सवाल उठा रहा है। और सवाल उठाया है ‘झारखंड जन संघर्ष मोर्चा’ ने। उसने एक पर्चा जारी कर बताया है कि आगामी 24 अप्रैल, 2021 को ‘झारखंड जन संघर्ष मोर्चा’ का स्थापना दिवस है। इस अवसर पर मोर्चे की ओर से एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है। जिसमें झारखंडी जनता से भाग लेने की अपील करते हुए कहा गया है कि वे सम्मेलन में शामिल होकर झारखंड के नवनिर्माण का संकल्प लें व झारखंड को ‘लूटखंड’ बनाने वाली ताकतों के खिलाफ संघर्ष तेज करें! 

पर्चे में कहा गया है कि 1947 के बाद से लेकर अब तक कई रंग-बिरंगे झंडों वाली सरकारें केंद्र में बनीं, लेकिन सभी सरकारों ने हमारे देश की जनता को लूटने का ही काम किया है। सभी सरकारों ने सिर्फ अपने व पूंजीपतियों की तिजोरियों को ही भरने का काम किया है। आज हम कह सकते हैं कि हमारे देश में पूंजीपतियों का, पूंजीपतियों के लिए व पूंजीपतियों के द्वारा बनायी गयी सरकार ही चल रही है।

वर्तमान में केंद्र में बैठी भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए)- 2 की सरकार ने तो देश की आम जनता के खिलाफ पूंजीपतियों के हित में मानो युद्ध की ही घोषणा कर दी है। किसान विरोधी तीन कृषि कानून, मजदूर विरोधी 4 श्रम कोड, छात्र विरोधी नई शिक्षा नीति, सार्वजनिक क्षेत्रों की कम्पनियों का धड़ल्ले से निजीकरण, अल्पसंख्यक विरोधी सीएए, एनआरसी, एनपीआर काला कानून, यूएपीए में संशोधन, समस्त प्रकृतिक संसाधनों की लूट के लिए लाखों जनता का विस्थापन, जनता की आवाज उठाने वालों के उपर फर्जी मुकदमा व गिरफ्तारी, दलित-अल्पसंख्यकों आदिवासियों पर ब्राह्मणीय हिन्दुत्व गिरोहों के द्वारा जुल्म-अत्याचार आदि जनता के खिलाफ युद्ध की घोषणा ही तो है, इसीलिए सरकार के इन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता ने भी समय-समय पर सड़क पर मोर्चा खोला है। आज भी लाखों किसान दिल्ली की सीमा पर लगभग 4 महीने से जमे हुए हैं। मई 2014 में ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी भाजपा ने केंद्र की सत्ता में आते ही साम्प्रदायिक फासीवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एजेंडे को लागू करना शुरू कर दिया है। एक समय में आरएसएस के प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर सत्ता की चाबी आरएसएस अपने हाथों में रखी है और जनता में अपने घृणित व क्रूर मनुवादी सोच को पुनः स्थापित करने की कोशिश कर रही है।

केंद्र सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए ही झारखंड की भाजपा सरकार ने यहां के आदिवासी-मूलवासी जनता पर कहर बरपा दिया था। भाजपाई मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में झारखंड की अस्मिता व संस्कृति को नष्ट करने का अभियान प्रारंभ किया गया था।  रघुवर दास ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन, भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक, 6500 स्कूलों का विलय, देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ 210 एमओयू, फर्जी मुठभेड़ में माओवादी के नाम पर आदिवासियों की गिरफ्तारी, हत्या, हजारों जनता पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करना, रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगाना, मॉब लिंचिंग के जरिये मुसलमानों व ईसाइयों के हत्यारों के साथ खुल्लम-खुल्ला एकता दिखाना, ग्रामीण इलाके में दर्जनों सीआरपीएफ कैंप लगाना, तमाम जन-कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना, जनता की आवाज को उठाने वालों को जेल में बंद करना, मानदेय पर कार्य कर रहे- पारा शिक्षक, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका, आशा कार्यकर्ता, संविदाकर्मी आदि के द्वारा अपनी जायज मांगों पर आंदोलन करने पर पुलिस से लाठियां बरसाना, विस्थापितों के आंदोलन पर गोली चलवाना, भूख से हो रही मौतों को बीमारी से हुई मौत बताना, आदि कई कुकर्म किये, जिस कारण झारखंड की जुझारू व लड़ाकू जनता ने 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया एवं झामुमो, कांग्रेस व राजद के महागठबंधन को सत्ता सौंपी।

29 दिसंबर, 2019 को महागठबंधन की तरफ से झामुमो के हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। हेमंत सोरेन के द्वारा मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले हुए लगभग 15 महीने हो चुके हैं, लेकिन जिस वादों व दावों के साथ हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी, वह कहीं से भी पूरा होता नहीं दिख रहा है। आज भी झारखंड में फर्जी मुठभेड़ में आदिवासी – मूलवासी जनता की हत्या, माओवादी के नाम पर गिरफ्तारी, जन-कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार, ग्रामीण क्षेत्रों में सीआरपीएफ कैप का निर्माण, भूख से मौत, जमीन की लूट, मॉब लिंचिंग, देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ एमओयू की कोशिश, आंदोलनकारियों पर लाठी चार्ज, कोयला-बालू-पत्थर की लूट, महिलाओं के साथ लगातार बढ़ रहीं बलात्कार की घटनाएँ आदि धड़ल्ले से हो रही हैं। हेमंत सोरेन की सरकार नौकरशाही व अफसरशाही पर रोक लगाने में पूरी तरह से विफल साबित हुई है।

पर्चा में कहा गया है कि अतः हमारे देश-राज्य की उपर्युक्त गंभीर परिस्थितियों को देखते हुए ही हमने झारखंड के तमाम आंदोलनकारी ताकतों को एक मंच पर लाने की पहल किया है, ताकि झारखंड की जनता का एकजुट स्वर केंद्र व राज्य सरकार को सुनाई दे। आंदोलनकारियों की एक बेबाक आवाज 83 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी को फासीवादी केंद्र सरकार ने फर्जी मामले में कैद कर लिया है, आज अगर वे जेल से बाहर होते तो, बेशक हमारे साथ होते। झारखंड में कई मोर्चा जनता के हितों के नाम पर बने हैं, लेकिन उसका नेतृत्व या तो अवसरवादी नेता कर रहे हैं या फिर एनजीओ (एनजीओ हमेशा जनता के आंदोलन को सुसुप्ता अवस्था में ले जाने की कोशिश करते हैं और जनता के बीच में कुछ सुविधा दिलाने के बदले में अपनी मोटी कमाई करते हैं)। इसलिए भी आज क्रांतिकारी जनता के द्वारा एक मोर्चा के गठन की सख्त जरूरत है।

पर्चा में स्पष्ट कहा गया है कि हमारे मोर्चा के नाम से ही स्पष्ट होता है कि जनता के संघर्षों का मोर्चा है ‘झारखंड जन संघर्ष मोर्चा ।’ हम झारखंड के वीर शहीद तिलका मांझी, सिद्ध, कान्हू, चांद, भैरव, फूलो, झानो, नीलाम्बर-पीतांबर, बिरसा मुंडा, रघुनाथ महतो, शेख भिखारी, जीतराम बेदिया आदि की संतान हैं, जिन्होंने अपने जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए अपने खून की अंतिम बूंद तक बहादुराना लड़ाई लड़ी और शहीद हो गये। संघर्ष झारखंडी जनता के खून में हैं और हमारा संघर्ष ही झारखंड का नवनिर्माण कर सकता है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
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