कमलनाथ के पास समय कम, काम ज्यादा

प्रदीप सिंह

नई दिल्ली/ भोपाल। मध्य प्रदेश में पिछले पंद्रह वर्षों से  बीजेपी की सरकार है। दिसंबर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह के दस वर्षीय शासन के समाप्त होने के बाद अब तक प्रदेश में कांग्रेस की वापसी नहीं हुई। 230 सीटों वाले  विधानसभा में बीजेपी के पास 167 तो कांग्रेस के पास 57 सीट है। शिवराज सिंह चौहान विगत चौदह सालों से राज्य के मुख्यमंत्री और प्रदेश में पार्टी के प्रमुख चेहरा हैं। शिवराज के शासन में किसानों की आत्महत्या बढ़ी है तो सत्ता आधारित घोटालों की भी कमी नहीं है। व्यापम घोटाला तो देश भर में अखबारों की सुर्खियां बनी। और ताजातरीन नर्मदा घोटाले की भी देश भर में चर्चा हुई। शिवराज सरकार के इस कारनामें के खिलाफ संत समाज में भी व्यापक आक्रोश देखा गया। लंबे समय से बीजेपी प्रदेश में सत्तारूढ़ और कांग्रेस विपक्ष में है। बीजेपी सरकार के खिलाफ राज्य में व्यापक गुस्सा देखा जा सकता है। लेकिन शिवराज सरकार के खिलाफ उभरे जनआक्रोश को भुनाने की बजाए कांग्रेस नेतृत्व मतभेद और गुटबाजी का शिकार रहा है।

विगत तीन चुनावों में मिली पराजय से कांग्रेस पार्टी का आधार खिसकता चला गया। शिवराज सरकार की नाकामियों को जनता में ले जाने के बजाए कांग्रेस नेता आपस में ही लड़ते देखे गए। प्रदेश कांग्रेस कई खेमों में बंट गई। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह और दूसरे नेताओं के अपने-अपनेे खेमे बन गए। विधानसभा और उसके बाहर कांग्रेस नेता शिवराज सरकार की नाकामियों के खिलाफ संघर्ष तो करते रहे लेकिन एकता के अभाव में पार्टी को कोई ठोस लाभ नहीं मिला।  

अब जब कांग्रेस आलाकमान ने छिंदवाड़ा से नौवीं बार सांसद बने कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष का ताज सौंप कर विधानसभा चुनाव में मजबूती से लड़ने का संदेश दिया है। लेकिन वह इस बात को शिद्द्त से महसूस कर रहे हैं कि पिछले 15 साल से सुस्त हो चुकी कांग्रेस को उन्हें न सिर्फ जगाना है बल्कि नई ताकत फूंकना है। उनके सामने बीजेपी के 51 प्रतिशत वोट को तोड़ने की चुनौती भी है। प्रदेश नेतृत्व को आम कार्यकर्ताओं से जोड़ने में वह लगे हैं। कांग्रेस के सामने बीजेपी-संघ के जमीनी कार्यकर्ताओं की चुनौती है तो अपने नेताओं को एकजुट रखने की जिम्मेदारी भी है।

‘‘पार्टी में मतभेद और गुटबाजी के सवाल पर वह पूरे दावे से कहते हैं कि कांग्रेस पूरी तरह से एकजुट है। वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव और पचौरी सब एक साथ ताकत झोंक रहे हैं। हम 150 से ज्यादा सीटें लेकर आएंगे। भाजपा की तैयारी तो मैदान सजाने की हो गई है, लेकिन हम अभी अपने घर को ही दुरूस्त कर रहे हैं। इसीलिए मैं हर कार्यकर्ता से कह रहा हूं कि वक्त कम है, काम ज्यादा है।’’

मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ इन शब्दों में संगठन की तस्वीर और अपनी चुनौती को सामने रखते है। ऐसे में सवाल उठता है कि वह मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं ?  कमलनाथ संगठन को हर स्तर पर मजबूत करने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। कहा जाता है कि कोई भी नेतृत्व जब तक अपनी टीम की अच्छाइयों और कमियों से परिचित नहीं होता है तब तक वह टीम का नेतृत्व सही तरीके से नहीं कर सकता है। 37 वर्षों से सक्रिय राजनीति में रहने वाले कमलनाथ संगठन और सरकार में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। ऐसे में वह प्रदेश संगठन के हर पहलू के साथ ही राजनीति की बारिकियों से भी पूरी तरह वाकिफ हैं।

कार्यकर्ताओं को महत्व और वरिष्ठ नेताओं से सामंजस्य

अध्यक्ष बनने के बाद सबसे पहले उन्होंने पार्टी के विभिन्न नेताओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने का काम किया। आम कार्यकर्ताओं तक सीधे पहुंचने और उनकी राय को महत्व देने के लिए वे हर जिले से संभावित उम्मीदवारी की सूची मंगा रहे हैं। संभावित उम्मीदवारों के नाम पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ ही जिला स्तर के कार्यकर्ताओं की भी राय मांगी जा रही है। इसके पीछे उनका मकसद यह है कि पूरे 51 जिले का हर नेता कार्यकर्ता इस कवायद में शामिल हो जाए। और उसे कांग्रेसी होने की अहमियत महसूस हो। कमलनाथ मानते हैं कि वक्त बहुत कम है और काम बहुत ज्यादा है। ऐसे में वह कार्यकर्ताओं को खुशामद की बजाए काम करने की सलाह दे रहे हैं। जिले से लेकर ब्लॉक तक हर कांग्रेसी को यह जता दिया है कि वे सिर्फ काम चाहते हैं। खुशामद उन्हें नापसंद है।मध्य प्रदेश कंाग्रेस प्रदेश के गांवों और शहरों के लिए अलग-अलगप्राथमिक सूची बनारही है। मध्यप्रदेश की 21 प्रतिशत शहरी आबादी के बीच पैठ बनाना उनकी चिंता में शामिल है। पिछले दो दशक से शहर कांग्रेस के कब्जे से बाहर हैं।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की खास रणनीति

कांग्रेस का कहना है कि भाजपा चुनाव में झूठ फैलाती है। सोशल मीडिया को वह टूल के रूप में इस्तेमाल कर रही है। बीजेपी के दुष्प्रचार का जवाब देने के लिए कांग्रेस अपने मीडिया विंग को मजबूत कर रही है,जिससे हम बीजेपी के दुष्प्रचार का सकारात्मक जवाब दे सकें। दूसरा, बीजेपी चुनावों में गुजरात माॅडल की बात करती थी। अब वह फेल हो चुका है। हम जनता के समाने यूपीए का विकास माॅडल ले जाएंगे। इसके साथ ही जरूरत पड़ने पर बसपा, सपा के साथ कुछ सीटों पर तालमेल की जा सकती है। जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल से भी संपर्क में है। भाजपा के कई असंतुष्ट नेता कांग्रेस में आने के लिए तैयार बैठे हुए हैं।

कुशल राजनेता और सफल उद्यमी

दिल्ली की राजनीति में कमलनाथ को ‘‘मैन आॅफ रियल पाॅलिटिक्स’’ कहा जाता है। वे बिजनेस टायकून भी है। उनकी छवि कुशल राजनेता के साथ ही एक सफल उद्यमी की भी है। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल छिंदवाड़ा से वे नौवीं बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए हैं। 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा से कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित होने के बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज जब राजनेता चुनावी लाभ के लिए क्षेत्र और पार्टी बदल देते हैं, पिछले 38 वर्षों से वह एक पार्टी और एक क्षेत्र से जुड़े हैं। कमलनाथ का जन्म 18 नवम्बर 1946 को उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर में हुआ था। देहरादून के दून स्कूल से सीनियर कैंब्रिज की पढ़ाई करने के बाद कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज से बीकाॅम किया। संजय गांधी से दून काॅलेज से ही गहरी दोस्ती होने के कारण वे राजनीति में आए। गांधी-नेहरू परिवार से उनकी पुरानी मित्रता है। केंद्र सरकार वे संसदीय कार्यमंत्री, उद्योग, कपड़ा, वन और पर्यावरण, सड़क और परिवहन, शहरी विकास और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।

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