कुकी छात्रों को नहीं मिली एमबीबीएस परीक्षा में शामिल होने की अनुमति, छात्रों ने किया विरोध-प्रदर्शन

नई दिल्ली। चुराचांदपुर में मंगलवार को अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला। जब सैकड़ों कुकी समुदाय के मेडिकल छात्रों ने एमबीबीएस की परीक्षा देने की अनुमति नहीं मिलने पर हाथों में प्ले कार्ड लेकर प्रदर्शन किया। कुकी छात्र चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस चरण-1 परीक्षा देना चाह रहे थे लेकिन मणिपुर विश्वविद्यालय ने अनुमति नहीं दी। जबकि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) को विस्थापित छात्रों के विश्वविद्यालय में अपने मूल कॉलेज या उससे संबद्ध किसी दूसरे कॉलेज में परीक्षा देने पर कोई आपत्ति नहीं है। कुकी छात्र इंफाल की बजाए चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज में परीक्षा देना चाहते थे। लेकिन राज्य सरकार के इशारे पर उनको परीक्षा से वंचित होना पड़ा।

पहले चरण की परीक्षाएं मंगलवार से शुरू हुईं। जबकि मैतेई-बहुल इम्फाल में तीन मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले 27 कुकी-ज़ो एमबीबीएस छात्रों को सुरक्षा कारणों से कुकी-बहुमत चुराचांदपुर में स्थानांतरित करना पड़ा। जबकि मैतेई समुदाय के 92 एमबीबीएस छात्रों को पहले चरण की परीक्षा देने के लिए चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज से इंफाल स्थानांतरण करना पड़ा। जबकि 92 मैतेई छात्रों को चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज से ट्रांसफर होने पर इंफाल मेडिकल कॉलेज में परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी गई। लेकिन कुकी समुदाय के 27 छात्रों को चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज में परीक्षा देने से रोक दिया गया। 3 मई को मैतेई और कुकी के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद दोनों समुदायों के लोग सुरक्षा के लिहाज से घाटी और पहाड़ी क्षेत्रों में शिफ्ट हो रहे हैं।

कुकी-ज़ो छात्रों ने विरोध प्रदर्शन के बाद चुराचांदपुर के डिप्टी कमिश्नर के माध्यम से राज्यपाल अनुसुइया उइके को सौंपे दो पन्नों के ज्ञापन में कहा कि दो विस्थापित बीडीएस छात्रों को भी 14 नवंबर से अपनी परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी गई थी।

27 एमबीबीएस और दो बीडीएस छात्रों की ओर से सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है: “मणिपुर विश्वविद्यालय की इस मनमानी पूर्ण कार्रवाई ने हमें बहुत निराश किया है। इसलिए हम जानना चाहेंगे कि किस आधार पर सीएमसी के हमारे छह साथी छात्रों को अपनी परीक्षा देने की अनुमति दी गई है और हमें इससे वंचित कर दिया गया, जबकि हम सभी एक ही छत के नीचे एक ही कक्षा और एक ही प्रशिक्षण ले रहे हैं? एनएमसी से एनओसी मिलने के बाद भी एमयू हमें विश्वविद्यालय परीक्षा क्यों नहीं लिखने दे रहा है?”

एनएमसी ने 13 नवंबर को एनओसी जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय “कॉलेजों और राज्य अधिकारियों के साथ उचित परामर्श के बाद निर्णय ले सकता है”।

विस्थापित कुकी-ज़ो आदिवासी छात्रों ने दावा किया कि उन्होंने अपने परीक्षा फॉर्म और एडमिट कार्ड भरे हैं और डिप्टी कमिश्नर के माध्यम से अपनी परीक्षा फीस जमा की है।

ज्ञापन में कहा गया है कि “हम 29 (2 बीडीएस+27 एमबीबीएस) विस्थापित छात्र क्रमशः 14/11/2023 (बीडीएस) और 21/11/2023 (एमबीबीएस) को निर्धारित विश्वविद्यालय परीक्षा देने की तैयारी कर रहे थे। दुर्भाग्य से 13/11/2023 के अंतिम मिनट में हमें बीडीएस परीक्षा देने से रोक दिया गया और फिर 18/11/2023 को हमें सूचित किया गया कि प्रवेश पत्र और परीक्षा सामग्री केवल छह (6) एमबीबीएस चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिए भेजी गई थी; और फिर भी विस्थापित छात्रों को बाहर रखा गया।”

छह एमबीबीएस छात्र सीएमसी के पहले बैच से थे, जो पिछले साल चालू हुआ था। राज्य के सभी चार मेडिकल कॉलेज मणिपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं, जो उनकी परीक्षा भी आयोजित करता है।

29 विस्थापित छात्रों का मानना ​​है कि विश्वविद्यालय की कार्रवाई “भेदभाव और शिक्षा के उनके अधिकार को छीनने” जैसा है।

ज्ञापन में कहा गया है कि “हम पहले से ही आहत थे जब सीएमसी से हमारे साथी विस्थापित छात्रों को जेएनएमआईएस केंद्र में अपनी पढ़ाई निर्बाध रूप से जारी रखने की अनुमति दी गई थी, लेकिन विस्थापित आदिवासी छात्रों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। इसके बावजूद हम किसी तरह अपने साथी सीएमसी छात्रों के साथ सीएमसी में उनकी कक्षाओं में शामिल हो गए, इस उम्मीद के साथ कि हम उनके साथ विश्वविद्यालय परीक्षा देंगे, जिसका मौखिक रूप से मुख्य सचिव और चुराचांदपुर के उपायुक्त ने आश्वासन भी दिया था।”

लंबे अर्से से हिंसा प्रभावित राज्य मणिपुर में रोज अलगाव, भेदभाव और उत्पीड़न की नई-नई कहानियां सामने आ रही है। मंगलवार को चुराचांदपुर में मेडिकल छात्रों के विरोध-प्रदर्शन ने सूबे के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह सरकार पर जो सवालिया निशान लगाया है, वह किसी कानून के राज्य वाले शासन में नहीं दिखेगा। यह बात पहले से ही सामने आ चुकी है कि राज्य में पहाड़ी और घाटी के लोग एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। कुकी पहाड़ और मैतेई घाटी में लौट रहे हैं। राज्य सरकार भी इस प्रक्रिया से सहमत थी। लेकिन अब सरकार कुकी समुदाय के छात्रों के साथ भेदभाव पर उतर आई है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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