मणिपुर हिंसा: कड़ी सुरक्षा के बीच मणिपुर में 87 कुकी-ज़ो पीड़ितों के शवों का अंतिम संस्कार

नई दिल्ली। मणिपुर में जातीय हिंसा में मारे गए 87 ‘कुकी जो’ लोगों के शवों को बुधवार को चुराचांदपुर में दफना दिया गया। कड़ी सुरक्षा के बीच इन मृतकों के लिए वॉल ऑफ रिमेंबरेंस, पीस ग्राउंड, तुईबोंग में शोक समारोह आयोजित किया गया। रविवार रात को दो आदिवासी समुदायों के सदस्यों के बीच झड़प में करीब 30 लोगों के घायल होने के बाद जिले में धारा 144 लगा दिया गया। ये शव बीते आठ माह से इंफाल स्थित अस्पतालों के मुर्दाघरों में पड़े थे। 14 दिसंबर को इम्फाल के विभिन्न मुर्दाघरों से 41 शव हवाई मार्ग से लाए गए थे, जबकि 46 शव चुराचांदपुर जिला अस्पताल से लाए गए।

चुराचांदपुर शहर के पास सेहकेन कब्रिस्तान में दफनाया जाने वाला सबसे कम उम्र का पीड़ित एक महीने का था और सबसे बुजुर्ग 87 वर्षीय व्यक्ति था, दोनों मई में हिंसा की पहली लहर में मारे गए थे। और दोनों ‘कुकी जो’ समुदाय के थे।

चूड़ाचांदपुर जिले और उसके आसपास से हिंसा के पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग आए, सबसे पहले पीस ग्राउंड में आयोजित एक शोक सभा में जहां 87 नकली ताबूत रखे गए थे और जहां वक्ताओं ने कुकी के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की। कुकी समुदाय के लोगों का कहना है कि मई से जो घटनाएं घट रही हैं, उसमें मैतेई समुदाय के साथ रहना असंभव हैं। 

मैतेई और कुकी-ज़ो लोगों के बीच 3 मई को शुरू हुए संघर्ष में अब तक कम से कम 194 लोग मारे गए हैं और 67,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।

जब शोक सभा चल रही थी, शवों को अंतिम संस्कार के लिए असम राइफल्स द्वारा उपलब्ध कराए गए 36 ट्रकों में कब्रिस्तान तक ले जाया गया।

चुराचांदपुर के निवासियों ने कहा कि कई स्थानों पर भारी ट्रैफिक जाम था और लोगों ने कब्रिस्तान के रास्ते में पुष्पांजलि अर्पित की। मृतकों के प्रति शोक- संवेदना व्यक्त करते हुए कुकी-ज़ो लोगों ने अपने आवासों के सामने पारंपरिक शॉल और झंडे रखे, जबकि गैर-कुकी-ज़ो लोगों ने भी काले झंडे रखे।

नागरिक समाज संगठनों ने जिला प्रशासन को आश्वासन दिया था कि सामूहिक दफन से संबंधित कार्यक्रम “सुचारू रूप से संपन्न” होंगे, और जैसा आश्वासन दिया गया था वैसा ही हुआ। बुधवार को धारा 144 लागू होने के बावजूद शोक मनाने वाले बड़ी संख्या में लोग बाहर आए।   

स्थानीय निवासियों ने कहा कि परंपरा के अनुसार, विभिन्न कुकी-ज़ो जनजातियों के सदस्यों ने “87 शहीदों” के लिए एक-एक कब्र खोदी, जबकि स्थानीय ठेकेदारों ने जेसीबी जैसी मशीनों का उपयोग करने की पेशकश की थी।

चर्च के एक सदस्य ने कहा कि कब्र खोदने के लिए युवकों ने कुदाल और फावड़े का इस्तेमाल किया। जिला प्रशासन ने नागरिक समाज संगठनों के सहयोग से दफन स्थल तक पहुंचने के मार्ग में सुधार किया।

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के महासचिव मुआन टोम्बिंग ने कहा कि “यह हम सभी के लिए बहुत बड़ी राहत है। जब तक शव को दफनाया नहीं जाता, तब तक शोक संतप्त परिवारों पर बहुत सारे परंपरागत प्रतिबंध लगे होते हैं। ”  

मिजोरम के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री लालडुहोमा ने बुधवार देर शाम एक्स पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए लिखा कि “आखिरकार, हमारे 87 भाइयों और बहनों के लिए पवित्र समारोह आज चुराचांदपुर जिले के सेहकेन गांव में हुआ। हमारे कुकी-ज़ो शहीदों की आत्मा को शांति मिले।”

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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