नवादा जहरीली शराब कांड: माले टीम का दौरा, डीएम-एसपी पर की कार्रवाई की मांग

पटना: नवादा में जहरीली शराब से अब तक मारे गए 17 व अस्पताल में भर्ती 8 लोगों के परिजनों से भाकपा-माले के एक उच्चस्तरीय जांच टीम ने मुलाकात की और पूरे मामले की सच्चाई को जानने का प्रयास किया। इस जांच दल में भाकपा-माले के घोषी से विधायक रामबली सिंह यादव, पार्टी की राज्य स्थायी समिति के सदस्य व अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सचिव रामाधार सिंह, नवादा जिला सचिव नरेन्द्र सिंह, भोला राम व ऐपवा की नेता सुदामा देवी शामिल थे।

जांच दल के हवाले से विधायक रामबली सिंह यादव ने कहा कि प्रशासनिक लापरवाही तथा शराबबंदी के कड़े कानूनों के भय से जहरीली शराब के कारण मौतों का आंकड़ा 17 तक पहुंच गया है। यदि प्रशासन ने सही समय पर कदम उठाया होता तो कई लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती थी। जिस इलाके में यह घटना हुई, वह शहर में डीएम कार्यालय के ठीक पीछे ही है। मामले में छोटे पुलिसकर्मियों को निशाना बनाकर असली अपराधियों को बचाने का खेल चल रहा है।

जांच दल जिले के डीएम व एसपी तथा शराब माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई की मांग करती है। नीतीश कुमार को भी बिहार की जनता से माफी मांगनी चाहिए। शराबबंदी पूरी तरह फेल है। जहरीली शराब बिहारी समाज को लगातार अपने गिरफ्त में लेते जा रही है। शराब का यह अवैध कारोबार बिना राजनेता, प्रशासन, शराब माफिया गठजोड़ के बिना नहीं चल सकता है।

दूसरी ओर, शराबबंदी के ड्रैकोनियन कानून के आतंक से अस्पताल से लेकर परिजन तक शराब पीने की सच्चाई को छुपाते हैं। जिसके कारण सही समय पर पीड़ितों का इलाज नहीं हो पाता और वे मौत के मुंह में चले जा रहे हैं। पुलिस-प्रशासन का रवैया इन मामलों में बेहद नकारात्मक है। वे डंडे के जोर पर मौत के चरित्र को बदल देने का दबाव बनाते हैं। नवादा में ये सभी प्रसंग खुलकर सामने आए हैं। इसलिए माले जांच दल नीतीश कुमार से मांग करती है कि शराबबंदी कानून को आतंक का पर्याय बनाने की बजाए शराब के आदि लोगों के लिए नशा मुक्ति केंद्र खोलने पर जोर दें और शराब माफियाओं पर नकेल कसें।

जांच दल ने पीड़ित मुहल्लों बुधौल, गेंदापुर, सिसवां व खरीदीबिगहा का दौरा किया। जांच दल ने गोपाल शर्मा, भूषण राजवंशी, प्रभाकर गुप्ता, लोहा सिंह, दिनेश प्रसाद, रामदेव यादव, आकाश कुमार, शिवशंकर यादव, धमेन्द्र कुमार, सनोज कुमार मिश्रा उर्फ सोनू आदि मृतकों के परिजनों से मुलाकात की।

30 जनवरी की सुबह जब जहरीली शराब पीने वाले लोगों की तबीयत बिगड़ने लगी और उन्हें अस्पताल ले जाया गया, तब अस्पताल की पहली प्रतिक्रिया यही थी कि इन्हें वापस ले जाओ वरना शराब पीने का केस हो जाएगा। 2-3 मौतों के बाद ही प्रशासन पोस्टमार्टम कराने को मजबूर हुआ, जिसमें जहरीली शराब पीने का तथ्य सामने आया। यदि अस्पताल ने समय रहते इलाज आरंभ कर दिया होता तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी। लेकिन शराबबंदी के कड़े कानून ने पूरे इलोक में एक आतंक की स्थिति पैदा कर रखी है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जहरीली शराब का प्रमाण आने के बावजूद पुलिस परिजनों से जबरदस्ती लिखवाती रही कि ये मौतें हार्ट-अटैक अथवा मिरगी से हुई है। जब जांच दल मृतक भूषण राजवंशी के घर पहुंची, तब देखा कि दो पुलिस वाले पहले से ही वहां कुर्सी लगाकर बैठे हैं। उनकी बेटी ने प्रशासन के दबाव में हमसे कहा कि उनकी मौत दारू से नहीं बल्कि टेंशन की वजह से हुई है, जबकि रिपोर्ट में दूसरी ही बात है।

सबसे शर्मनाक यह कि जब हमारी टीम गेंदा बिगहा से लौटने लगी, तो हमसे शराब की चर्चा करने के तथाकथित अपराध में पुलिस वालों ने उस गांव पर हमला कर लोगों की बेवजह पिटाई कर दी। ऐसा लगता है कि बिहार को नीतीश कुमार ने पूरी तरह से बर्बाद करने का निश्चय कर लिया है। इस मामले की जांच होनी चाहिए।

नीतीश कुमार के पदाधिकारी सर्किट हाउस में बैठकर मामले की जांच कर रहे हैं। जाहिर सी बात है कि वे इस मामले को यूं ही रफा-दफा कर देना चाहते हैं। पुलिस ने जहरीली शराब उत्पादन के जुर्म में मक्का बेचने वाली एक गरीब महिला मंती देवी को उठाकर जेल भेज दिया है और चौकीदार विकास मिश्रा का निलंबित कर दिया। इस प्रकार असली शराब माफिया व प्रशासन की मिलीभगत पर पर्दा डालने का प्रयास हो रहा है।

हमारी मांग है कि मृतक परिजनों के लिए सरकार सरकारी नौकरी व 20 लाख का मुआवजा, पटना के अस्पताल में इलाज करा रहे 8 लोगों का सरकारी खर्च पर इलाज की व्यवस्था करे तथा वहां के डीएम व एसपी पर तत्काल कार्रवाई करे।

माले (बिहार) द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित

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