नॉर्थ ईस्ट डायरीः सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए मदरसों का सफाया कर रही है असम की भाजपा सरकार

असम विधानसभा ने बुधवार को राज्य में संचालित मदरसों को नियमित स्कूलों में परिवर्तित करने के लिए एक विधेयक पारित किया। इसके जरिए मदरसों को धार्मिक शिक्षा के केंद्र की जगह सामान्य विद्यालय का दर्जा दिया गया है। विपक्षी कांग्रेस और एआईयूडीएफ के विधायकों ने उस समय वाकआउट किया जब सरकार ने विधेयक को विचार के लिए चयन समिति को भेजने की मांग को खारिज कर दिया। तर्क चाहे जो भी दिए जाएं, लेकिन जिस तरह 2016 के चुनाव में असम में सत्ता संभालने वाली भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करती रही है और संघ की योजनाओं पर अमल करती रही है, उसे देखते हुए मदरसों को बंद करने के फैसले के पीछे भी उसकी सांप्रदायिक सोच नजर आ रही है।

राज्य के शिक्षा मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने तर्क दिया कि मुस्लिम समुदाय को सशक्त बनाने के कदम के रूप में विधेयक पेश किया गया है। उन्होंने विधानसभा में अपने भाषण में विधेयक का बचाव करते हुए कहा, “हम वोट नहीं चाहते हैं। हम तुष्टीकरण नहीं करते। इस समुदाय के साथ हमारा कोई निहित स्वार्थ नहीं है, लेकिन राजनीति से अलग हटकर हम मुस्लिम समुदाय को आगे ले जाना चाहते हैं। जब डॉक्टर और इंजीनियर इन स्कूलों से बाहर आएंगे, तो आप इसकी सराहना करेंगे।”

उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि यह इस्लामी समाज के लिए मेरा उपहार है। मदरसों को स्कूल में रूपांतरित करने के 10 साल बाद जो मुस्लिम बच्चे इन स्कूलों से डॉक्टर और इंजीनियर बन जाएंगे, वे राज्य सरकार के इस फैसले का अहसान मानेंगे। उन्होंने कहा कि वह किसी समुदाय के विरोधी नहीं हैं। कट्टरवाद का विरोध करना इस्लाम का विरोध करना नहीं है। मुस्लिम बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने की कोशिश कभी इस्लाम विरोधी नहीं हो सकती।

शर्मा ने बीआर अंबेडकर के हवाले से कहा कि उन्होंने कहा था कि धार्मिक शिक्षा का पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि कुरान को सरकारी खर्च पर नहीं पढ़ाया जाना चाहिए, क्योंकि बाइबल या भगवद् गीता या अन्य धर्मों के ग्रंथों को इस तरह नहीं पढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा कि विधेयक को किसी समुदाय के साथ शत्रुता के चलते नहीं लाया गया, बल्कि समाज के एक पिछड़े और शोषित वर्ग के उत्थान और विकास के सपने के साथ लाया गया है।

नए कानून में राज्य द्वारा संचालित निजी मदरसों को भी शामिल किया गया है, हालांकि निजी-संचालित मदरसे, जो किसी राज्य बोर्ड के अधीन नहीं हैं, इसके दायरे से बाहर रहेंगे। शर्मा ने बुधवार को विधानसभा के बाहर संवाददाताओं से कहा कि सरकार की इच्छा है कि भविष्य में निजी मदरसों में धार्मिक विषयों के साथ-साथ विज्ञान, गणित और अन्य विषयों को पढ़ाने के लिए एक कानून बनाया जाए।

उन्होंने कहा, “विपक्ष के मुस्लिम विधायक अपने गांवों में नहीं जा सकते और कह नहीं सकते कि जनसंख्या नियंत्रण होना चाहिए, क्योंकि उनको वोटों की आवश्यकता होगी। अगर मुस्लिम समाज में सुधार करना है, तो पीएम मोदी और हमें जिम्मेदारी दें। हम मुस्लिमों वोट नहीं चाहते हैं। चुपचाप हमारे पास आइए और हमें बताइए कि हमें क्या करने की आवश्यकता है और हम करेंगे। हम सबका साथ सबका विकास में विश्वास करते हैं। इसमें कोई राजनीति नहीं है।” उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में इन मदरसा-विद्यालयों में नामांकन बढ़ेगा।

एआईयूडीएफ के विधायक हाफिज रफीकुल इस्लाम ने बाद में संवाददाताओं से कहा कि उनका अगला कदम कानून का दरवाजा खटखटाना होगा और पार्टी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले संगठन को अपना समर्थन देगी।

असम रिपेलिंग बिल, 2020 को दो मौजूदा अधिनियमों को निरस्त करने के लिए लाया गया है, असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम, 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवा का प्रांतीयकरण और मदरसा शैक्षणिक संस्थानों का संगठन) अधिनियम, 2018।

असम में वर्तमान में दो प्रकार के राज्य संचालित मदरसे हैं, 189 उच्च मदरसा और मदरसा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, असम और असम उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद के अधीन चलते हैं; और 542 राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्री-सीनियर, सीनियर और टाइटल मदरसा और अरबी कॉलेज हैं।

सरकार अब शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को भंग कर देगी और सभी रिकॉर्ड, बैंक खातों और कर्मचारियों को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। मदरसों के कर्मचारियों, विशेष रूप से धार्मिक विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को बरकरार रखा जाएगा। उनको अन्य विषयों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।

(दिनकर कुमार ‘द सेंटिनेल’ के पूर्व संपादक हैं। आजकल वह गुवाहाटी में रहते हैं।)

दिनकर कुमार
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