फुचा महली के बाद अब 12 साल बाद एतवरिया उरांव को नसीब हुई अपनी झारखंड की धरती

पिछली 3 सितंबर, 2021 को 30 वर्षों बाद झारखंड के गुमला जिले के फोरी गांव निवासी 60 वर्षीय फुचा महली (आदिवासी) को अंडमान निकोबार से लाया गया था। वे 30 वर्षों से अंडमान निकोबार में फंसे हुए थे। अपने परिजनों से मिलकर फुचा महली की आंखें छलछला उठी थीं। वहीं पत्नी लुंदी देवी वर्षों बाद पति से मिल कर बिल्कुल भाव विह्वल हो गयीं। खुशी बनकर उनके गालों पर बहते आंसुओं की धार का वहां बैठा हर कोई गवाह बना।
अब 5 सितंबर की शाम को लोहरदगा की बेटी एतवरिया उरांव को 12 साल बाद झारखंड लाया गया है। जिसे देखकर मां धनिया उरांव व उसके स्वजनों सहित गांव वालों में जो खुशी देखने को मिली, उसके बयान के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे।

झारखंड के लोहरदगा जिले के मसमोना गांव की रहने वाली एतवरिया उरांव राज्य सरकार व जिला प्रशासन की पहल पर 12 साल बाद 5 सितंबर की शाम लोहरदगा पहुंची। बेटी के लौटने की खुशी मां धनिया उरांव व उसके स्वजनों की आंखों में बिल्कुल साफ देखा जा सकता था। बेटी के आने की प्रसन्नता घर में स्वजनों द्वारा बनाए गए तरह-तरह के झारखंडी पकवानों के तौर पर सामने आयी। बारह साल बाद अपने दिल के टुकड़े से मिलकर मां धनिया उरांव की आंखें बरबस छलक उठीं। मां ने बेटी एतवरिया का स्वागत उसका मुंह मीठा कर किया। और फिर गले लगाकर कहा कि ”अब कहीं मत जाना।” मां से मिलकर एतवरिया की आंखें भी भर आईं। माहौल इसलिए और ज्यादा भावुक हो गया क्योंकि एतवरिया के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। वो कमी मां-बेटी दोनों की आंखों में बिल्कुल साफ देखी जा सकती थी।

दरअसल बारह वर्ष पूर्व एतवरिया उरांव अपने पिता बिरसू उरांव के साथ यूपी के एक ईंट भट्ठे पर काम करने गई थी। इसी दौरान कोई बहला फुसलाकर एतवरिया को पहले यूपी से हरियाणा ले गया। और फिर वहां से उसे नेपाल भेज दिया गया। माना जा रहा है कि यह मामला मानव तस्करी का है।  

इधर, लोहरदगा लौटने के बाद एतवरिया ने श्रम अधीक्षक धीरेंद्र महतो के साथ उपायुक्त दिलीप कुमार टोप्पो से मुलाकात की। डीसी ने खुद एतवरिया को बुके देकर स्वागत किया। साथ ही उसके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं भी दी। एतवरिया ने भी नया जीवन देने के लिए राज्य सरकार और लोहरदगा जिला प्रशासन को धन्यवाद कहा है। एतवरिया से मिलने के लिए उसके घर पर हुजूम उमड़ पड़ा था। हर कोई एतवरिया से मिल कर उसका हाल पूछना चाह रहा था।

उपायुक्त दिलीप कुमार टोप्पो ने दिल्ली से लौटने पर एतवरिया को नकद राशि के अलावा पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड और मनरेगा में कार्य देने के लिए जॉब कार्ड बनाने संबंधित अधिकारियों को जरूरी निर्देश दिया है। एतवरिया अब रोजगार को लेकर दूसरे प्रदेश में नहीं जाएगी, बल्कि वह अपने गांव में ही काम करेगी। इसके अलावा लोहरदगा जिला प्रशासन की ओर से उसे अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ प्रावधान के तहत दिया जाएगा। बारह वर्ष बाद लोहरदगा लौटने के बाद एतवरिया उरांव ने कहा कि अपने गांव आने की खुशी कितनी है, वह बता नहीं सकती। अब किसी भी स्थिति में अपने गांव को छोड़कर वह दूसरे प्रदेश नहीं जाएगी। बारह वर्ष बाद लौटने के बाद बहुत अच्छा लग रहा है।

बता दें कि अपने पिता के साथ ईंट भट्ठे में काम करने गयी झारखंड की एतवरिया 12 साल पहले यूपी से गायब हो गयी थी। इसके बाद यूपी के गोरखपुर पुलिस स्टेशन में एतवरिया के लापता होने का मामला भी दर्ज किया गया था। पुलिस और परिवार ने एतवरिया को ढूंढने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसका कोई पता नहीं चल पाया था।

परिवार वाले एतवरिया को को पाने की उम्मीद बिल्कुल खो चुके थे। इसी बीच नेपाल के किसी व्यक्ति ने ट्वीट किया कि लापता हुई एतवरिया काठमांडू के एक आश्रम में है। इसकी जानकारी मिलने के बाद झारखंड सरकार ने उसकी वापसी के प्रयास शुरू किये।

बता दें कि एतवरिया को पहले यूपी से हरियाणा ले जाया गया था। जहां से उसे नेपाल भेज दिया गया। मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस मामले में कहा कि यदि यह मामला मानव तस्करी का है तो इसमें शामिल लोगों की शिनाख्त कर उन्हें हर सजा देने की संभव कोशिश की जाएगी।

नेपाल के काठमांडू से ट्वीट के जरिये एतवरिया की जानकारी मिलने के बाद उसकी सुरक्षित घर वापसी के लिए राज्य सरकार ने पहल की और नेपाल और भारत के दूतावासों से साथ बातचीत की। फिर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उसकी मां और बड़ी बहन से उसकी पहचान कराई गई। तब पता चला कि वह बिरसू उरांव की बेटी है।

इसके पहले झारखंड के गुमला जिले के फोरी गांव निवासी 60 वर्षीय फुचा महली (आदिवासी) को 30 वर्षों बाद 3 सितंबर 2021 को अंडमान निकोबार से लाया गया था। वे 30 वर्षों से अंडमान निकोबार में फंसे हुए थे।

फुचा महली 30 साल पहले काम की तलाश में अंडमान गए थे, परंतु वहां फंस गये थे। वे वहां पैसा कमाने गए थे, ताकि परिवार को बेहतर जीवन दे सकें। अचानक कंपनी बंद हो गई। खाने के लाले पड़ गए। घर का रास्ता तो पता था, लेकिन किराए के लिए पैसा कहां से लाते। न जाने कितनों को गुहार लगायी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। कई दिन और रातें भूखे गुजारनी पड़ी।


कहना ना होगा कि ऐसे ढेर सारे मामले हैं जो अभी पर्दे में हैं। झारखंड आदिवासी बहुल क्षेत्र से काफी संख्या में महिला-पुरुष रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं। मगर लगभग लोग फुचा महली और एतवरिया जैसी स्थिति के शिकार होकर तड़पते रहते हैं। बहुत कम लोग एतवरिया व फुचा जैसे हैं, जिन्हें देर से ही सही लेकिन उन्हें अपनी धरती नसीब होती है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
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