झारखंड। 3 अक्टूबर, 2021 झारखंड के लिए एक ऐतिहासिक दिन था, इस दिन झारखंड के कई जिलों से लगभग 2 दर्जन जन संगठन (छात्र संगठन, विस्थापित संगठन, मजदूर संगठन, दलित संगठन, अल्पसंख्यक संगठन, आदिवासी संगठन, महिला संगठन, युवा संगठन आदि) के लगभग 500 प्रतिनिधि बोकारो स्टील सिटी के फादर स्टेन स्वामी हॉल (बिरसा सेवा आश्रम) में जमा हुए थे। मौका था झारखंड जन संघर्ष मोर्चा के स्थापना सम्मेलन का, इसमें मैं भी सपरिवार उपस्थित था।
हम लोग लगभग 11 बजे दिन में वहां पहुंचे थे। हॉल के गेट पर एक बड़ा सा बैनर हमारा इंतजार कर रहा था, जिसमें लिखा हुआ था- फादर स्टेन स्वामी हॉल (बिरसा आश्रम), झारखंड जन संघर्ष मोर्चा का एक दिवसीय स्थापना सम्मेलन समारोह में आप सभी साथियों को हूल जोहार। हॉल के अंदर क्रांतिकारी गीत बज रहा था, उस समय तक 500 की क्षमता वाला हॉल लगभग आधा भर चुका था। हॉल के अंदर चारों तरफ झारखंड व देश के शहीदों के बड़े-बड़े कटआउट लगे हुए थे, जिसमें से प्रमुख थे शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो, तिलकामांझी, बिरसा मुंडा, बख्तर साय, फादर स्टेन स्वामी, बी. पी. केसरी, चन्द्रशेखर आजाद, शेख भिखारी, जीतराम बेदिया, सत्यनारायण भट्टाचार्य, मुंडल सिंह, नीलाम्बर-पीताम्बर, रघुनाथ महतो, के. एन. पंडित, त्रिदिव घोष। देखते-देखते ही लगभग 11:30 बजे तक हॉल खचाखच भर गया और कार्यक्रम के शुरूआत की घोषणा की गयी।
कार्यक्रम की शुरुआत शहीदों की याद में 2 मिनट की मौन श्रद्धांजलि से हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता का जिम्मा वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेन्द्र सिन्हा, सहायक प्रोफेसर रजनी मुर्मू, झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के केन्द्रीय महासचिव कामरेड डी. सी. गोंहाई, भारतीय आदिम जनजाति परिषद के उमाशंकर बैग व्यास, भारतीय वन अधिकार परिषद की सुचिता सिंह, मेहनतकश महिला संघर्ष समिति की सुमित्रा मुर्मू, शिक्षिका ईप्सा शताक्षी एवं संयुक्त ग्राम सभा के अनूप महतो को दिया गया, वहीं कार्यक्रम के संचालन का जिम्मा रीशित नियोगी, सत्यम व शिवांगी को दिया गया।
मंचीय कार्यक्रम की शुरूआत में चंडीगढ़ से आयीं पीपुल्स आर्टिस्ट फोरम की निक्की ने ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है……’ गीत के जरिए हॉल को क्रांतिकारी जोश से भर दिया। उसके बाद विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के केन्द्रीय संयोजक दामोदर तुरी ने सम्मेलन का आधार पत्र का पाठ किया।
आधार पत्र
‘‘साथियों, आज अगर हम विश्व की स्थिति पर नजर दौड़ाएं, तो पाते हैं कि साम्राज्यवादी देशों के बीच प्रतिद्वंदिता लगातार बढ़ रही है। अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने स्थान को बरकरार रखने के लिए गंभीर प्रयास कर रहा है। चीन आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका के साथ होड़ लगाने के अलावा सैनिक क्षेत्र में एक योजना के तहत होड़ के लिए तैयार हो रहा है। यूरोप में जर्मनी और फ्रांस के अमेरिका के साथ कुछ अंतरविरोध हैं और साथ में उन दोनों देशों के बीच भी एक हद तक प्रतिद्वंदिता है। अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो देशों के गठबंधन और रूस व चीन के बीच सैनिक होड़ बढ़ रही है। इस होड़ के चलते फिर से शीत युद्ध की स्थिति पुनर्निर्मित हो रही है। इस बीच साम्राज्यवादियों के बीच बढ़ती होड़ प्रमुख रूप से व्यापार युद्धों के रूप में अभिव्यक्त हो रही है। दूसरी ओर साम्राज्यवादी देश साठगांठ के तहत उदारीकरण-निजीकरण-भूमंडलीकरण (एलपीजी) नीतियों के द्वारा पिछड़े देशों का न सिर्फ शोषण कर रहे हैं बल्कि उन देशों को नियंत्रण में रखने के लिए दुराक्रमणकारी युद्धों को जारी रखे हुए हैं।
साम्राज्यवादी देशों द्वारा दूसरे विश्व युद्ध के बाद से जिस नए औपनिवेशिक शोषण के अमल के जरिए पिछड़े देशों का शोषण तीव्र कर रहे हैं, उससे साम्राज्यवाद एवं उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं व जनता के बीच का अंतरविरोध दिन-ब-दिन तीखा होता जा रहा है। इन देशों पर साम्राज्यवादियों खासकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों के दुराक्रमण, दमन, मुखियागिरी, दखलंदाजी जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं, उसी स्तर पर जन प्रतिरोध भी बढ़ रहा है। इराक, अफगानिस्तान, यमन, लीबिया आदि में साम्राज्यवादियों के खिलाफ प्रतिरोध जारी है। लंबे समय तक तानाशाहों के शासनाधीन रहे मिस्र, यमन, लीबिया, बहरीन, जोर्डन, सीरिया में ‘अरब वसंत’ के नाम पर जन विद्रोह फूट पड़े थे। इजरायल के यहूदियों के निरंकुश फासीवादी हमलों के खिलाफ फिलिस्तीनी जन विद्रोह तीव्र गति से बढ़ रहा है।
साम्राज्यवादी वित्तीय व आर्थिक संकट के बोझ ने विभिन्न देशों के मजदूर वर्ग व मध्य वर्ग की जनता पर काफी नकारात्मक असर डाला है। पेंशन और स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्रों में कटौती करने व बेरोजगारी के बढ़ने की वजह से जनता विशेषकर मजदूर वर्ग उग्र आंदोलन कर रहे हैं। मजदूर वर्ग के इन आंदोलनों में वहां की क्रांतिकारी पार्टियां भागीदार बनती हुई धीरे-धीरे उनका नेतृत्व करने के प्रयास के साथ काम कर रही हैं, जिससे उनकी ताकत बढ़ रही है। फिलहाल पिछड़े देशों के जन विद्रोहों के साथ साम्राज्यवादी देशों के मजदूर वर्ग व मध्य वर्ग के जन संघर्ष जुड़ गए हैं।
आज दुनिया भर में पूंजीवाद अभूतपूर्व संकट में फंस गया है, जिसके फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुनियादी अंतरविरोधों का तीखा होना, विश्व व्यापी स्वत:स्फूर्त व जुझारू संघर्षों का उमड़ना आदि परिणाम सामने आ रहे हैं।
साथियों, केंद्र सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए ही झारखंड की भाजपा सरकार ने यहां के आदिवासी-मूलवासी जनता पर कहर बरपा दिया था। भाजपाई मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में झारखंड की अस्मिता व संस्कृति को नष्ट करने का अभियान प्रारंभ किया गया था। रघुवर दास ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन, भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक, 6500 स्कूलों का विलय, देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ 210 एमओयू, फर्जी मुठभेड़ में माओवादी के नाम पर आदिवासियों की हत्या, माओवादी के नाम पर गिरफ्तारी, हजारों जनता पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करना, रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ पर प्रतिबंध लगाना, मॉब लिंचिंग के जरिये मुसलमानों व ईसाइयों के हत्यारों के साथ खुल्लम-खुल्ला एकता दिखाना, ग्रामीण इलाकों में दर्जनों सीआरपीएफ कप लगाना, तमाम जन-कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना, जनता की आवाज को उठाने वालों को जेल में बंद करना, मानदेय पर कार्य कर रहे- पारा शिक्षक, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका, आशा कार्यकर्ता, संविदाकर्मी आदि के द्वारा अपनी जायज मांगों पर आंदोलन करने पर पुलिस से लाठियां बरसाना, विस्थापितों के आंदोलन पर गोली चलवाना, भूख से हो रही मौतों को बीमारी से हुई मौत बताना, आदि-आदि कई कुकर्म किये, जिस कारण झारखंड की जुझारू व लड़ाकू जनता ने 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया एवं झामुमो, कांग्रेस व राजद के महागठबंधन को सत्ता सौंपी।
साथियों, अब अगर हम अपने देश की परिस्थितियों पर चर्चा करें, तो पाते हैं कि हमारे देश से अंग्रेजों के गये हुए 74 वर्ष से भी अधिक हो गये। क्या इन 74 वर्षों में भी हमारे देश की जनता को वास्तविक आजादी मिली है? 1947 के बाद से लेकर अब तक कई रंग-बिरंगी झंडों वाली सरकारें केंद्र में बनीं, लेकिन सभी सरकारों ने हमारे देश की जनता को लूटने का ही काम किया है। सभी सरकारों ने सिर्फ अपने व पूंजीपतियों की तिजोरियों को ही भरने का काम किया है। आज हम कह सकते हैं कि हमारे देश में पूंजीपतियों का, पूंजीपतियों के लिए व पूंजीपतियों के द्वारा बनायी गयी सरकार ही चल रही है।
वर्तमान में केंद्र में बैठी भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए)-2 की सरकार ने तो देश की आम जनता के खिलाफ पूंजीपतियों के हित में मानो युद्ध की ही घोषणा कर दी है। किसान विरोधी तीन कृषि कानून, मजदूर विरोधी 4 श्रम कोड, छात्र विरोधी नयी शिक्षा नीति, सार्वजनिक क्षेत्रों की कम्पनियों का धड़ल्ले से निजीकरण, अल्पसंख्यक विरोधी सीएए एनआरसी-एनपीआर, काला कानून यूएपीए में संशोधन, समस्त प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए लाखों जनता का विस्थापन, जनता की आवाज उठाने वालों के ऊपर फर्जी मुकदमा व गिरफ्तारी, दलित-अल्पसंख्यकों आदिवासियों पर ब्राह्मणीय हिन्दुत्व गिरोहों के द्वारा जुल्म-अत्याचार आदि जनता के खिलाफ युद्ध की घोषणा ही तो है, इसीलिए सरकार की इन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता ने भी समय-समय पर सड़क पर मोर्चा खोला है। आज भी हजारों किसान दिल्ली की सीमा पर 26 नवंबर, 2020 से ही जमे हुए हैं। मजदूर वर्ग लगातार हड़तालों के जरिए अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए सरकार की जनविरोधी नीतियों का पर्दाफाश कर रहे हैं। छात्र नयी शिक्षा नीति के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। बेरोजगार अपने लिए रोजगार की मांग पर प्रदर्शन कर रहे हैं। महिलाएं अपनी इज्जत व आजादी के लिए लगातार सड़कों पर उतर रही हैं। दलित, आदिवासी व अल्पसंख्यक समुदाय अपनी सुरक्षा के लिए गोलबंद हो रहे हैं।
मई 2014 में ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी भाजपा ने केंद्र की सत्ता में आते ही साम्प्रदायिक फासीवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एजेंडे को लागू करना शुरू कर दिया है। एक समय में आरएसएस के प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर सत्ता की चाबी आरएसएस ने अपने हाथों में रखी है और जनता में अपने घृणित व क्रूर मनुवादी सोच को पुनः स्थापित करने की कोशिश कर रही है। और जो भी लोग आरएसएस व भाजपा की जनविरोधी व देशविरोधी नीतियों पर सवाल उठाते हैं, उन्हें जेल के सींखचों में कैद कर लिया जाता है। भीमा कोरेगांव मामले में फर्जी मुकदमे के तहत किस तरह देश के होनहार बेटे-बेटियों को कैद कर लिया गया है, यह किसी से छिपा नहीं है। आप जानते हैं कि भीमा कोरेगांव मामले में ही झारखंड के 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी को भी कैद किया गया था, जिनकी संस्थागत हत्या 5 जुलाई, 2021 को कर दी गयी।
साथियों, हम कह सकते हैं कि हमारे देश की जनता के साथ जिस वादे व दावे के साथ भाजपा ने देश की सत्ता संभाली थी, वह उसके ठीक उल्टा कर रही है। जनता की तमाम जायज मांगों को सरकार ने मानने से इंकार कर दिया है या फिर उस पर गोल-मटोल जवाब दे रही है। चाहे वो जातीय जनगणना का मामला हो या फिर आदिवासियों के लिए सरना कोड लागू करने की बात हो या फिर महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात हो, सरकार इन सभी पर स्पष्ट रूप से कुछ भी कहने से बच रही है। अभी हाल-फिलहाल जिस तरह से ‘पेगासस जासूसी’ मामले पर सरकार कुछ भी स्पष्ट रूप से बताने से इन्कार कर रही है, इससे यही स्पष्ट होता है कि इस सरकार ने देश की संप्रभुता को भी अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए साम्रज्यवादियों के हाथों गिरवी रख दिया है। यह सरकार हमारे देश में बचे-खुचे लोकतंत्र को भी खत्म कर पूरी तरह से फासीवादी सत्ता स्थापित करने की ओर अग्रसर है।
29 दिसंबर, 2019 को महागठबंधन की तरफ से झामुमो के हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। हेमंत सोरेन के द्वारा मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले हुए लगभग 20 महीने हो चुके हैं, लेकिन जिन वादों व दावों के साथ हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी, वह कहीं से भी पूरा होता नहीं दिख रहा है। आज भी झारखंड में फर्जी मुठभेड़ में आदिवासी मूलवासी जनता की हत्या, माओवादी के नाम पर गिरफ्तारी, जन-कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार, ग्रामीण क्षेत्रों में सीआरपीएफ कैप का निर्माण भूख से मौत, जमीन की लूट, मॉब लिंचिंग, देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ एमओयू की कोशिश, आंदोलनकारियों पर लाठी चार्ज, कोयला-बालू-पत्थर की लूट, महिलाओं के साथ लगातार बढ़ रहीं बलात्कार की घटनाएँ आदि-आदि धड़ल्ले से हो रही हैं। झारखंड सरकार ‘लैंड पुल’के जरिए सीएनटी-एसपीटी एक्ट के साथ छेड़-छाड़ करने की कोशिश भी कर रही है। हेमंत सोरेन की सरकार नौकरशाही व अफसरशाही पर रोक लगाने में पूरी तरह से विफल साबित हुई है।
साथियों, हमारे देश-राज्य की उपरोक्त गंभीर परिस्थितियों को देखते हुए ही हमने झारखंड के तमाम आंदोलनकारी ताकतों को एक मंच पर लाने का पहल किया है, ताकि झारखंड की जनता का एकजुट स्वर केंद्र व राज्य सरकार को सुनाई दे। आंदोलनकारियों की एक बेबाक आवाज 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी को फासीवादी केंद्र सरकार ने फर्जी मामले में कैद कर मौत के घाट उतार दिया। आज अगर वे जिंदा होते तो, बेशक हमारे साथ होते। झारखंड में कई मोर्चे जनता के हितों के नाम पर बने हैं, लेकिन उनका नेतृत्व या तो अवसरवादी नेता कर रहे हैं या फिर एनजीओ (एनजीओ हमेशा जनता के आंदोलन को सुसुप्ता अवस्था में ले जाने की कोशिश करते हैं और जनता के बीच में कुछ सुविधा दिलाने के बदले में अपनी मोटी कमाई करते हैं)। इसलिए भी आज क्रांतिकारी जनता के द्वारा एक मोर्चे के गठन की सख्त जरूरत है।
जैसा कि हमारे मोर्चे के नाम से ही स्पष्ट होता है कि जनता के संघर्षों का मोर्चा होगा ‘झारखंड जन संघर्ष मोर्चा।’ हम झारखंड के वीर शहीद तिलका मांझी, सिद्ध, कान्हू, चांद, भैरव, फूलो, झानो, नीलाम्बर-पीतांबर, बिरसा मुंडा, रघुनाथ महतो, शेख भिखारी, जीतराम बेदिया आदि की संतान हैं, जिन्होंने अपने जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए अपने खून की अंतिम बूंद तक बहादुराना लड़ाई लड़ी और शहीद हो गये। संघर्ष झारखंडी जनता के खून में है और हमारा संघर्ष ही झारखंड का नवनिर्माण कर सकता है।
तो आइये, हम झारखंड के नवनिर्माण का संकल्प लें व झारखंड को ‘लूटखंड’ बनाने वालों के खिलाफ संघर्ष का ऐलान करें!’’
आधार पत्र पर लगभग दो दर्जन लोगों ने अपनी राय रखी। इस कार्यक्रम में उपस्थित भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी), पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल व सुखविंदर कौर ने विस्तार से देश में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में अपनी बातें रखीं और इस सम्मेलन से किसान आंदोलन की एकजुटता प्रदर्शित की। वक्ताओं के बीच-बीच में ‘शहीद सुंदर मरांडी स्मृति सांस्कृतिक टीम के द्वारा हिन्दी, खोरठा व संथाली भाषा में गीत भी पेश किया जाता रहा।
सम्मेलन के अंत में लगभग 4 दर्जन लोगों की एक संयोजन समिति बनायी गयी, जिसमें से दामोदर तुरी, बच्चा सिंह, डी. सी. गोंहाई, सुमित्रा मुर्मू, अनूप महतो, उमाशंकर बेगा व्यास व प्रोफेसर रजनी मुर्मू को संयोजक बनाया गया और रीशित नियोगी, सुचिता सिंह, थानू महतो, नागेश्वर महतो, नरेश राम, भवनाथ सिंह, अनिल हांसदा, अरविन्द कुमार, दीपनारायण भट्टाचार्य, रज्जाक अंसारी, भगवान किस्कू व विजय मुर्मू को सह-संयोजक बनाया गया।
साथ ही केन्द्र व राज्य सरकार से अपने मांगों से संबंधित एक प्रस्ताव भी पारित किया गया।
‘झारखंड जन संघर्ष मोर्चा’के स्थापना सम्मेलन से पारित प्रस्तावः-
‘झारखंड जन संघर्ष मोर्चा’ केंद्र की वर्तमान ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ निम्नलिखित एजेंडे पर संघर्ष का एलान करती हैः
झारखंड जनसंघर्ष मोर्चा झारखंड की हेमंत सरकार से मांग करता हैः
(स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)