Sunday, December 10, 2023

उत्तराखंड: अंकिता को इंसाफ के लिए महिला कांग्रेस का प्रदर्शन, विरोध में महिलाओं ने मुंडवाए सिर

देहरादून। एक साल पहले ऋषिकेश के पास गंगा भोगपुर में बीजेपी नेता के बेटे के रिजॉर्ट में हुई अंकिता भंडारी की हत्या के मामले में वीआईपी का नाम छिपाना राज्य सरकार को भारी पड़ सकता है। पिछले वर्ष सितंबर में यह मामला सामने आने के बाद से राज्यभर में उग्र प्रदर्शन हुए थे। 2 अक्टूबर को नागरिक संगठनों की ओर से पूरे राज्य में सफल बंद किया गया था। बाद में हो-हल्ला कुछ कम हुआ तो सरकार को लगा लोग अपनी आदत के अनुसार इस मामले को अब भूल चुके होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

एक वर्ष बाद अंकिता भंडारी हत्या का मामला एक बार उग्र आंदोलन के साथ सामने आया है। हत्याकांड के एक वर्ष पूरा होने पर बीते 18 सितम्बर को राजधानी देहरादून सहित राज्यभर में एक बार फिर लोग सड़कों पर उतर आये। सरकार से लगातार यह मांग की जा रही है कि उस वीआईपी का नाम सार्वजनिक किया जाए, जिसे स्पेशल सर्विस देने के लिए अंकिता पर दबाव बनाया जा रहा था। लेकिन, सरकार इस पर मौन है।

इस बीच कांग्रेस लगातार अंकिता भंडारी के मामले को लेकर आवाज उठाती रही है। हत्याकांड के बाद हुए तमाम आंदोलनों और राज्य बंद को सफल बनाने में कांग्रेस लगातार सक्रिय रही। बीते 18 सितम्बर को हुए प्रदर्शनों में भी कांग्रेस की भागीदारी रही। लेकिन इसके बाद भी राज्य सरकार इस मांग की अनदेखी करती आ रही है। इससे नाराज प्रदेश महिला कांग्रेस 21 सितंबर को एक बार फिर देहरादून में सड़कों पर उतर आई।

अंकिता के मामले में वीआईपी नाम बताने सहित बेरोजगारी, महंगाई और अन्य मसलों को लेकर महिला कांग्रेस ने राजपुर रोड से मुख्यमंत्री आवास के लिए कूच किया। इस आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने की घोषणा की गई थी। इस कूच में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा सहित अनेक अन्य नेता भी शामिल थे।

मुख्यमंत्री आवास से पहले की हाथी बड़कला के पास पुलिस ने बैरिकेड लगातार जुलूस को रोक दिया। इस पर महिलाएं सड़क पर ही बैठ गईं और सरकार विरोधी नारे लगाने लगीं। इस दौरान पुलिस और कार्यकर्ताओं के बीच तीखी झड़पें भी हुईं।

इस नारेबाजी और नोकझोंक के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ज्योति रौतेला ने अंकिता को न्याय दिलाने की मांग को लेकर सिर मुंडाने की घोषणा कर दी और बीच सड़क पर ही ज्योति रौतेला और महिला कांग्रेस से जुड़ी एक अन्य नेता ने सिर मुंडवा लिया। उत्तराखंड में यह पहला मौका था, जब सरकार पर दबाव बनाने के लिए किसी महिला से सिर मुंडवाया है। इससे पहले महिलाओं द्वारा सिर मुंडवाने की घोषणा करने की खबरें तो सामने आती रही हैं, लेकिन किसी ने इस तरह का कदम नहीं उठाया था।

ज्योति रौतेला ने कहा कि जिस तरह से राज्य की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार इस मामले में वीआईपी का नाम छिपा रही है और जिस तरह से लगातार तथ्यों और सबूतों के साथ पहले दिन से ही छेड़छाड़ की गई, वह बेहद शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि सरकार को शर्म आए इसलिए उन्होंने सिर मुंडवाया है, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह बेशर्मों की सरकार है, उन्हें शर्म नहीं आती। एक बेटी की जघन्य हत्या के बाद जिस पार्टी को शर्म नहीं आई और अपने नेता को बचाने का प्रयास करती रही, उस पार्टी को एक बेटी के सिर मुंडवाने पर शर्म आएगी, इस बात की कोई उम्मीद नहीं है।

अंकिता भंडारी पौड़ी जिले के डोभ श्रीकोट गांव की रहने वाली थीं। गरीब परिवार की इस बेटी ने किसी तरह 12वीं पास करके देहरादून के एक प्राइवेट इंस्टीट्यूट ने होटल मैनेजमेंट का डिप्लोमा किया था। हत्या से सिर्फ 19 दिन पहले ही उसे ऋषिकेश के पास गंगा भोगपुर में वनन्तरा नाम के रिजॉर्ट में रिपेशनिस्ट की नौकरी मिली थी। इस रिजॉर्ट का मालिक बीजेपी नेता विनोद आर्य का बेटा पुलकित आर्य है। अंकिता भंडारी को रिजॉर्ट में ही रहने के लिए एक कमरा दिया गया है।

आरोप है कि नौकरी लगने के कुछ दिन बाद ही पुलकित आर्य अंकिता पर रिजॉर्ट में आने वाले वीआईपी को स्पेशल सर्विस देने के लिए दवाब बनाने लगा था। इसके लिए उसे अतिरिक्त पेमेंट का भी लालच दिया गया था। बताया जाता है कि 19 सितंबर को कोई वीआईपी रिजॉर्ट में आने वाला था। पुलकित अंकिता पर लगातार दबाव बना रहा था, लेकिन अंकिता इसके लिए तैयार नहीं हुई तो उसकी हत्या कर दी गई। यह पूरी कहानी अंकिता के एक मित्र पुष्प दीप से सामने रखी। उसने इस सारे मसले पर अंकिता के साथ हुई उसकी सोशल मीडिया पर हुई चैट को भी सार्वजनिक कर दिया था।

पुलिस ने पुलकित आर्य और उसके दो साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार किया। बीजेपी ने पुलकित के पिता को पार्टी से निष्कासित करने की औपचारिकता भी निभाई, लेकिन लगातार हो रही मांग के बाद भी उस वीआईपी का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया, जिसके लिए अंकिता पर दबाव बनाया जा रहा था। इतना ही नहीं घटना के तुरंत बाद रिजॉर्ट के उस कमरे पर रात के वक्त बुलडोजर भी चलवा दिया गया, जिसमें अंकिता रहती थी। आरोप है कि बुल्डोजर यमकेश्वर से भाजपा विधायक रेनू बिष्ट के कहने पर चलवाया गया था। रेनू बिष्ट पर साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज नहीं किया गया।

पिछले एक साल से कांग्रेस समय-समय पर अंकिता के मामले को उठाती रही है। खासकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सोशल मीडिया के माध्यम से बार-बार राज्य सरकार को याद दिलाते रहे हैं कि अंकिता मामले का वीआईपी कौन है, उसका नाम सार्वजनिक किया जाए। लेकिन सरकार ने अब तक ऐसा नहीं किया है। 18 सितम्बर को भी अंकिता की हत्या की बरसी पर देहरादून में मशाल जुलूस और कैंडिल मार्च का आयोजन किया गया था। इस मार्च में दर्जनों संगठनों के हजारों लोगों ने हिस्सा लिया और फरवरी में हुए बेरोजगारों के बाद एक बार फिर देहरादून की सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।

18 सितंबर के प्रदर्शन में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे और देहरादून के तमाम जनसंगठन भी। सामाजिक मुद्दों को लेकर लगातार सक्रिय रहने वाली धाद संस्था के अलावा इस प्रदर्शन में पहाड़ी स्वाभिमान सेना, उत्तराखंड महिला मोर्चा, जन संवाद समिति, उत्तराखंड इंसानियत मंच, एसडीसी फाउंडेशन आदि ने भी हिस्सा लिया था। देहरादून के अलावा 18 सितंबर को ऋषिकेश, श्रीनगर, कर्णप्रयाग, रामनगर आदि जगहों पर भी लोगों ने सड़कों पर उतर कर अंकिता के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने और इस मामले में वीआईपी का नाम सार्वजनिक करने की मांग की।

फिलहाल प्रदेश महिला कांग्रेस ने इस मामले को लेकर सिर मुंडवाकर एक बार फिर से अंकिता हत्याकांड के मामले को हो रहे आंदोलन को नया मोड़ दे दिया है। न सिर्फ कांग्रेस बल्कि तमाम जन संगठन भी इस मामले को लेकर मुखर हो रहे हैं।  

(त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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