जर्जर क्वार्टरों में बसी जिंदगियों का बकाया है बंद मिल के मालिकों पर 40 करोड़ रुपये

काशीपुर में सड़क के किनारे जर्जर और उजाड़ से दिखने वाले कुछ क्वार्टर नज़र आते हैं। पहली नज़र में ऐसा लगता है कि बरसों से ये क्वार्टर परित्यक्त अवस्था में हैं। लेकिन नज़दीक जाने पर मालूम पड़ता है कि इन जर्जर क्वार्टरों में भी लोग रहते हैं।

ये क्वार्टर काशीपुर चीनी मिल के हैं। काशीपुर चीनी मिल 1936 में स्थापित हुई थी। 1992 में इस मिल का संचालन धामपुर चीनी मिल को मिला। वर्ष 2001 से ही मिल मालिकान, मिल पर ताला डालने की फिराक में थे। अंततः 2013 में मिल पर ताला पड़ गया। 50 एकड़ में फैली काशीपुर में 585 मजदूर काम करते थे, जो मिल की बन्दी के चलते बदहाली की अवस्था में है।

चीनी मिल के इन्हीं क्वार्टरों में से एक के सामने, एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति,एक बैनर लगाए हुए बैठे थे। बैनर पर लिखा है- “काशीपुर चीनी मिल संघर्ष समिति”। सरकार ने मजदूरों की मदद न करने पर मजदूर वोट क्यों दें, किसे दें।” ये काशीपुर चीनी मिल यूनियन के मंत्री कैलाश नाथ सिंह हैं। कैलाश नाथ सिंह बताते हैं कि मिल पर मजदूरों का 40 करोड़ रुपया बकाया है। इस पैसे का भुगतान न होने के चलते मजदूरों की माली हालत बेहद खराब हो चुकी है। मिल मालिकान पूरे मामले को अदालती जाल में उलझा कर, मजदूरों के बकाये का भुगतान नहीं कर रहे हैं। वे कहते हैं कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मजदूरों के बकाये का भुगतान का आदेश दे दिया है। लेकिन मिल मालिकान इस फैसले को भी दबवाये हुए हैं। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

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भाकपा (माले) के नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा क्षेत्र के प्रत्याशी कॉमरेड डॉक्टर कैलाश पांडेय के प्रचार अभियान में भाकपा(माले) के राज्य सचिव कॉमरेड राजा बहुगुणा, कॉमरेड बहादुर सिंह जंगी, कैलाश नाथ सिंह के घर पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि वे तो चुनाव बहिष्कार का निर्णय ले कर बैठे हुए थे। लेकिन अब चूंकि मजदूरों-किसानों की पार्टी के उम्मीद्वार भी मैदान में हैं तो वे कॉमरेड डॉक्टर कैलाश पांडेय का प्रचार करेंगे। इस संदर्भ में उनको भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव कॉमरेड समर भंडारी ने भी बताया। तुरंत ही एक हजार पर्चा हमसे उन्होंने लिया और कहा कि काशीपुर में वे इसे बांटेंगे।

कुछ महीनों पहले एक दुर्घटना के चलते उनके पैर में तकलीफ है, छड़ी के सहारे ही चल पा रहे हैं। लेकिन फिर भी काशीपुर और जसपुर के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथियों से मुलाकात करने के लिए वे अपने 9 साल के पोते दिव्यांश के साथ हमारे साथ चल पड़ते हैं।

मजदूरों की बदहाली की यह एक छोटी सी दास्तान है। ऐसे किस्से बिखरे पड़ें हैं। लोकसभा चुनाव में गढ़े गए विज्ञापनी नायकों-नेताओं पर रिझने वालों के लिए ये सवाल ही नहीं हैं। लेकिन मजदूरों, किसानों, छात्र, युवाओं,महिलाओं के सवाल यदि सवाल ही नही हैं तो फिर यह चुनाव किसके लिए हो रहा है? कैलाश नाथ सिंह के बैनर में सवाल उठाया कि सरकार जब मजदूरों की मदद नहीं कर रही तो मजदूर उसे वोट क्यों दें? यह सबसे मौजूं सवाल है, हर भारतीय को उठाना चाहिए, जो सरकारी उपेक्षा का शिकार है। 

(लेखक इन्द्रेश मैखुरी सीपीआई (एमएल) के लोकप्रिय नेता हैं।)

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