आगामी विधान सभा चुनावों में शिक्षा को मुख्य मुद्दा बनाएगा बिहार आरटीई फोरम : अम्बरीष राय

पटना। बिहार आरटीई फोरम आगामी विधानसभा चुनावों में शिक्षा को चुनावी मुद्दा बनाएगा। यह बात राइट टू एजुकेशन फोरम की ओर से ‘सामाजिक बदलाव में बालिका शिक्षा और युवाओं की अहम भूमिका’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार में किया गया। राज्य स्तरीय संवाद का यह आयोजन एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में किया गया था। संवाद में शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक संगठनों और शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 

वक्ताओं ने शिक्षा के सम्पूर्ण परिदृश्य पर बात करते हुए आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में शिक्षा के सार्वभौमीकरण, विशेषकर बालिका शिक्षा और युवाओं के मुद्दे को बहस के केंद्र में लाने के लिए विभिन्न रणनीतियों पर विस्तार से चर्चा की। 

वक्ताओं ने बिहार में सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था (पब्लिक एजुकेशन सिस्टम) में बालिकाओं की उपस्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो पाने को लेकर गहरी चिंता जाहिर की। उन्होंने एकमत से सभी जनप्रतिनिधियों, चाहे वे किसी भी दल के हों, से शिक्षा का अधिकार क़ानून को मजबूत करने, शिक्षा का सार्वभौमीकरण करने और समान शिक्षा प्रणाली को लागू करने की दिशा में तत्काल कदम बढ़ाने की मांग की।

संवाद की शुरुआत करते हुए, राइट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय ने कहा, “ बिहार समेत पूरे देश में अभी भी लाखों स्कूली बच्चे स्कूल के दायरे से बाहर हैं। स्कूल के दायरे से बाहर रहने वाले इन बच्चों में लड़कियों की संख्या बहुत ही ज्यादा है, जो कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिहाज से बेहद शर्मनाक है। सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि शिक्षा अधिकार कानून, 2009,  जो कि प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लिए एक बेहद अहम औज़ार है और 6 से 14 वर्ष के हर बच्चे के लिए संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार है, के लागू होने के एक दशक के बावजूद ऐसी हालत बनी हुई है। आंकड़े गवाह हैं कि भारत में लड़कियों के 4 साल की स्कूली शिक्षा हासिल कर पाने की संभावना लड़कों की तुलना में आधी से भी कम है। गरीब परिवारों से आनेवाली 30 फीसदी लड़कियां ऐसी हैं, जिन्होंने स्कूल का कभी मुंह तक नहीं देखा है। और तो और, 15-18  वर्ष की 40 फीसदी किशोरियां किसी भी शिक्षा संस्थान में नहीं जा रही हैं।”

बात को आगे बढ़ाते हुए, श्री राय ने कहा, “ महज साईकिल और स्कूल- ड्रेस बांटने देने भर से बालिका शिक्षा की हालत नहीं सुधरने वाली। समस्या कहीं अधिक गहरी है। शिक्षा पर हो रहे मौजूदा सार्वजनिक खर्च से लेकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए जरुरी आधारभूत संरचना, योग्य शिक्षकों की पर्याप्त संख्या, घर से स्कूल तक आने-जाने में लड़कियों की सुरक्षा तथा परिवार और समाज में हर स्तर पर मौजूद लैंगिक भेदभाव जैसे मुद्दों पर बात करनी होगी और उन पर बिना समय गंवाए काम करना होगा।”

इससे पहले सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए राइट टू एजुकेशन फोरम, बिहार के संयोजक अनिल राय ने कहा, “शिक्षा, विशेषकर बालिका शिक्षा के मुद्दे से आंखें चुराकर न तो बिहार तरक्की कर सकता है और न ही देश। शिक्षा की चिंता हर व्यक्ति, हर जनप्रतिनिधि, हर पार्टी और हर सरकार को करनी ही होगी। आज़ादी के 70 सालों के बाद भी अभी तक शिक्षा हमारे शासन-व्यवस्था के मुख्य एजेंडे में शामिल नहीं हो पायी है। हम सबको मिल कर इस दिशा में काम करना होगा। हमें अपने जनप्रतिनिधियों पर इस बात के लिए जोर डालना होगा कि वे यह सुनिश्चित करायें कि सरकार अपने बजट में शिक्षा के मद में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराते हुए कोठारी आयोग की अनुशंसा के अनुरूप सार्वजानिक शिक्षा व्यवस्था में आमूल सुधार करे।”

इस राज्य स्तरीय संवाद में सर्वसम्मति से यह तय किया गया कि शिक्षा के अधिकार क़ानून को मजबूत कराने, शिक्षा के सार्वभौमीकरण को सुनिश्चित कराने और समान शिक्षा प्रणाली को लागू कराने की मांग को लेकर राज्य के कोने-कोने में जागरूकता अभियान चलाया जायेगा और आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान सभी दलों के प्रत्याशियों एवं प्रतिनिधियों को एक स्मार-पत्र सौंप कर इस दिशा में काम करने के लिए जन-दबाव बनाया जायेगा। 

इस मौके पर बिहार बाल आवाज़ मंच के प्रांतीय संयोजक राजीव रंजन ने राइट टू एजुकेशन फोरम, बिहार की अबतक की उपलब्धियों और आगे की गतिविधियों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। 

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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