‘सखुआ’ ने की मंत्री जोबा मांझी से झारखंड महिला आयोग को सुचारू से रूप से चलाने की अपील

2 दिसंबर, 2022 को जब पूरा विश्व इन्टरनेशनल एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वीमेन (International Elimination of Violence against Women) सप्ताह मना रहा था। उसी समय “सखुआ” की फाउंडर मोनिका मरांडी ने महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा मंत्री जोबा मांझी के आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की और मंत्री से झारखंड महिला आयोग को सुचारू रूप से पुनः चलाने अपील की।

बताना जरूरी हो जाता है कि पिछले 3 सालों से झारखंड का महिला आयोग सुचारू रूप से काम नहीं कर पा रहा है। अतः इस मुलाकात के दौरान मोनिका ने जोबा मांझी के सामने झारखंड की महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों को सामने रखा। जिनमें डायन बिसाही, रेप, यौनिक हिंसा, घरेलू हिंसा, किडनैपिंग, कार्यस्थल पर होने वाली यौनिक हिंसा और बच्चों के प्रति बढ़ते अपराध शामिल थे। सखुआ की टीम ने पिछले 2 सालों में आदिवासी महिलाओं की बातचीत और केसों का डाटा भी जोबा मांझी से साझा किया। जिसे देखकर जोबा मांझी ने आश्वासन दिया कि झारखंड में महिला आयोग को फिर से शुरू किया जाएगा। सखुआ की टीम ने एक प्रतिलिपि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी भेजा।

उल्लेखनीय है कि झारखंड में महिला आयोग में कोविड के बाद से ही कोई नियुक्ति नहीं हुई है। अगर झारखंड में पुलिस के पास आए डायन बिसाही के मामलों के आंकड़े देखा जाए तो पिछले सात वर्षों में डायन-बिसाही के नाम पर झारखंड में हर साल औसतन 35 हत्याएं हुई हैं। अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में डायन बताकर 46 लोगों की हत्या हुई।

साल 2016 में 39, 2017 में 42, 2018 में 25, 2019 में 27, 2020 में 28 और 2021 में 22 हत्याएं हुई हैं। इस वर्ष अब तक डायन के नाम पर 23 हत्याएं हुई हैं। इस तरह साढ़े सात वर्षों का आंकड़ा कुल मिलाकर 250 से ज्यादा है। डायन बताकर प्रताड़ित करने के मामलों की बात करें तो 2015 से लेकर 2020 तक कुल 4,556 मामले पुलिस में दर्ज किये गये। यानी हर रोज दो से तीन मामले पुलिस के पास पहुंचते हैं।

एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के आंकड़ों के मुताबिक रेप की घटनाओं के मामले में झारखंड देश में आठवें नंबर पर है। वर्ष 2021 में राज्य में बलात्कार के 1,425 मामले दर्ज किए गए। यानी औसतन हर 6 घंटे में दुष्कर्म की एक घटना हो रही है। ये वो आंकड़े हैं जो पुलिस थानों में रजिस्टर्ड हुए हैं। इसके अलावा झारखंड में महिलाओं पर हमला करने के 164 मामले दर्ज हुए हैं।

इसी वजह से चिंतित होकर और हजारों आदिवासी महिलाओं से बात करके सखुआ की टीम ने ठाना कि वो इस विषय पर सरकार से बात करेंगी।

“सखुआ” पूरी तरह से आदिवासी महिलाओं द्वारा संचालित एक पोर्टल है। जो मुख्य रूप से आदिवासी महिलाओं के सवालों पर केंद्रित है। साथ ही देश-दुनिया में हो रहे दमन-शोषण के खिलाफ चल रहे तमाम राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक बहसों तथा आंदोलनों पर आदिवासी महिलाओं के विचारों पर प्रकाश डालने का काम करता है। ये आदिवासी महिलाओं का संदेश वाहक है जो उनकी आवाज़ को जन-जन तक पहुँचाने का काम करता है।

सखुआ की फाउंडर मोनिका मरांडी की माने तो इस पोर्टल के जरिए आदिवासी महिलाओं की दुनिया को जानने-समझने का मौका मिलता है और साथ ही परिचय सहित आदिवासी इतिहास, संघर्ष, विरासत, ज्ञान-परम्परा से भी करवाया जाता है।

‘सखुआ’ के माध्यम से देश-दुनिया-समाज में आम आदिवासी महिलाओं के जीवन संघर्ष से लेकर अपने मेहनत से विभिन्न क्षेत्रों में मुकाम तक पहुँचने वाली आदिवासी महिलाओं से भी रूबरू करवाया जाता है।

बता दें ‘sakhua.com‘  पोर्टल की नींव आदिवासी महिलाओं ने रखी है। ये सभी महिलाएं भारत के अलग-अलग आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। “सखुआ” के बारे में बता दें कि इस पोर्टल में मोनिका मरांडी (फाउंडिग एडिटर), ज़ोबा हांसदा (रिसर्च हेड), करूणा केरकेट्टा (टेक्निकल टीम हेड), रजनी मुर्मू (चीफ प्रोड्यूसर), रोज़ी कामेई (एग्जीक्यूटिव एडिटर), लूसी हेमब्रम (मॉडरेटर) और प्रियंका सांडिल्य (इन्फ्लुएंसर डिपार्टमेंट हैड), एलिन लकड़ा (पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट हैड) हैं।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
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