मध्य प्रदेश में सपा का आक्रामक चुनावी अभियान, 25 सीटों पर कांग्रेस के नुकसान का दावा

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी बड़े जोर-शोर से अपने प्रत्याशियों का प्रचार कर रही है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख एवं यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में 24 रैलियों को संबोधित और 3 रथयात्रा निकाल चुके हैं। राज्य में अखिलेश यादव, उनकी मैनपुरी से सांसद पत्नी डिंपल यादव, शिवपाल यादव, चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव, लालजी वर्मा, रामअचल राजभर और घोसी उपचुनाव में विजयी हुए विधायक सुधाकर सिंह को मध्य प्रदेश के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव अभियान को संचालित करने के लिए भेजा गया है।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के व्यवहार से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपने आहत महसूस कर रहे हैं। कांग्रेस के इस व्यवहार को वह ‘विश्वासघात’ बता रहे हैं। जब कांग्रेस ने सपा के तीन सीटें देने का वादा करके मुकर गई। सपा अब प्रदेश में अपनी ताकत दिखाना चाह रही है, और लोकसभा चुनाव के समय इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे के समय अपने पक्ष को मजबूत करना चाह रही है। लेकिन बात इतनी भर नही है। समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश में कांग्रेस को सबक सिखाना चाह रही है। वह भाजपा विरोधी मतों में बंटवारा करके कांग्रेस का नुकसान करने की रणनीति पर चल रही है।

मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामायण सिंह पटेल कहते हैं कि “ समाजवादी पार्टी के आक्रामक चुनाव अभियान से कम से कम 25 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान होगा। सपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस बार बहुत अधिक प्रचार किया क्योंकि उसका स्थानीय संगठन अच्छी स्थिति में है और 2018 की तुलना में अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारा गया है। सपा ने 2018 में 52 की तुलना में इस साल 72 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। 2018 में सपा का एक उम्मीदवार जीता था।”

रामायण सिंह पटेल कहते हैं कि कांग्रेस द्वारा इसे विश्वासघात कहे जाने से स्तब्ध हूं। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में गठबंधन के लिए समाजवादी पार्टी की मांग को नजरअंदाज कर दिया था। जिसके बाद पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राज्य में आक्रामक अभियान चलाया। अपने कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ अपनी सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाने के लिए यह चुनाव लड़ा जा रहा है।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए गठबंधन पर मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि “गठबंधन पर कोई भी चर्चा तब होगी जब लोकसभा चुनाव नजदीक होंगे।” सपा प्रमुख ने कांग्रेस पर भी हमला बोलते हुए कहा कि उसके और भाजपा के बीच सिद्धांतों और कार्यक्रमों में कोई अंतर नहीं है।

मध्य प्रदेश में सपा नेताओं ने स्वीकार किया कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य में प्रचार में कभी शामिल नहीं हुआ था। इस बार सपा का पूरा कुनबा चुनाव प्रचार में उतर गया है। खुद अखिलेश यादव ने 20 विधानसभा सीटों पर 24 सार्वजनिक रैलियों को संबोधित किया, इसके अलावा तीन “रथ यात्रा” का नेतृत्व किया। मैनपुरी से सांसद डिंपल यादव भी अभियान में शामिल हुईं और महिला मतदाताओं के साथ बेहतर जुड़ाव सुनिश्चित करने के लिए रैलियों को संबोधित किया। यह पहली बार था जब उन्होंने यूपी के बाहर प्रचार किया था। दंपति ने पार्टी उम्मीदवारों की जीत के लिए मंदिरों में पूजा-अर्चना भी किया।

इतना ही नहीं अखिलेश ने अपने चाचा और सपा महासचिव शिवपाल सिंह यादव और चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को भी यूपी की सीमा से लगे एमपी निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार के लिए भेजा। राजपूत जाति के विधायक सुधाकर सिंह, जो हाल ही में यूपी के मऊ जिले के घोसी से सपा विधायक चुने गए थे, उन्हें यूपी के वरिष्ठ ओबीसी नेताओं राम अचल राजभर और लालजी वर्मा के साथ एमपी के देवतालाब विधानसभा क्षेत्र में तैनात किया गया।

इस साल की शुरुआत में, सुधाकर की उपचुनाव जीत को इंडिया गठबंधन की जीत के रूप में पेश किया गया था, जिसमें कांग्रेस सहित उसके सभी घटक सपा उम्मीदवार का समर्थन कर रहे थे।

मध्य प्रदेश में सपा के चुनावी अभियान को लेकर एक अलग राय भी है। कुछ नेताओं का कहाना है कि मध्य प्रदेश में सपा अस्तित्व बचाने के संकट से जूझ रही थी। कांग्रेस द्वारा तीन टिकट देने से इंकार करने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा फाल गयी। लिहाजा राज्य में पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव को स्वयं कमान संभालना पड़ा।

सपा के एक नेता ने कहा कि कांग्रेस से गठबंधन की स्थिति में समाजवादी पार्टी ने 5-6 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई थी। सपा कार्यकर्ता, जो अन्य सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते थे, उन्होंने तटस्थ रहने का फैसला किया था क्योंकि गठबंधन विफल होने की स्थिति में सपा उन्हें मैदान में नहीं उतारने जा रही थी। उनमें से कुछ दूसरे दलों में भी शामिल हो गए। जब कांग्रेस ने अंतिम क्षण में गठबंधन करने से इंकार कर दिया, तो सपा के पास लड़ने के लिए केवल 15 दिन थे। फिर भी बड़े नेताओं ने आक्रामक अभियान चलाने के लिए कई दिनों तक एमपी में डेरा डाला और कार्यकर्ताओं से संवाद किया। राज्य कांग्रेस प्रमुख कमल नाथ की कुछ टिप्पणियों ने भी अखिलेश को व्यक्तिगत रूप से आहत किया।

सपा नेता ने यह भी कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी कार्यकर्ताओं पर पकड़ बनाए रखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि “अगर कांग्रेस फिर से लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन करने से इंकार करती है, तो सपा मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने के लिए तैयार होगी। इसके लिए, पार्टी को जमीन पर संगठनात्मक ताकत बनाए रखने की जरूरत है।”

उन्होंने कहा, “अगर समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश में कुछ सीटें जीतती है, या कुछ सीटों पर कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाकर अपनी ताकत दिखाने में कामयाब होती है, तो यूपी में लोकसभा चुनावों और यूपी की सीमा से लगे मध्य प्रदेश में सीटों के लिए उसकी सौदेबाजी की शक्ति बढ़ जाएगी।”

पार्टी प्रवक्ता उदयवीर सिंह ने कहा कि “मध्य प्रदेश में कांग्रेस द्वारा हमें धोखा देने के बाद पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी; इसलिए भी कि हम हर चुनाव पूरे समर्पण के साथ लड़ने में विश्वास करते हैं।”

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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