नूंह हिंसा और किसान आंदोलन: अब सामाजिक मुद्दों पर बढ़ रही खाप पंचायतों की सक्रियता

नूंह/गुरुग्राम। नूंह में जो आग बाकायदा साजिश के तहत लगाई गई थी, तकरीबन एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी वह यदा-कदा सुलग रही है। बेशक हाईकोर्ट के हस्तक्षेप तथा सख्ती के बाद वह कुछ धीमी होने लगती है तो कभी तेज। सोच-समझ कर फिरकापरस्ती का माहौल बनाने वाले कहीं न कहीं मायूस भी हैं कि अपने लक्ष्य में वे पूरी तरह से सफल नहीं हो सके। मौजूदा हालात बताते हैं कि सियासी प्रेत उन्हें लंबे अरसे तक जारी रखना चाहते हैं। मकसद किसी से छिपा नहीं है और न मेवात का ध्रुवीकरण करने वाले तत्व। खैर, हरियाणा में जब भी ऐसी कोई बड़ी घटना होती है तो लोगों की निगाह खाप या सर्वखाप पंचायतों पर रहती है। यह सिलसिला सदियों पुराना है।

1947 को देश आजाद हुआ। अपना संविधान बना लेकिन खापों ने गणतंत्र को मानने से साफ इनकार कर दिया और उसकी उपेक्षा की। खापों को आप जाट संस्थान भी कह सकते हैं। इसलिए कि खापें एक किस्म से जाति आधारित- गोत्र-केंद्रित पंचायतें हैं। अब आलम बदल रहा है और खाप पंचायतों का ढांचा-सांचा भी। खाप-व्यवस्था ने साकारात्मक और समावेशी भूमिका निभाई है। इस भूमिका की कल्पना कुछ साल पहले नहीं की जा सकती थी बल्कि असहमत होकर आलोचना ही की जा सकती थी।

खाप पंचायतों के रूढ़िवादी फैसलों और बंद समाज को मजबूत करने की चर्चा देश तो क्या अंतरराष्ट्रीय मीडिया में होती थी। खासतौर पर लड़के-लड़की द्वारा प्रेम विवाह को लेकर। इस मुद्दे पर खाप पंचायतें कबीलाई जमात में तब्दील हो जाती थीं। प्रेम विवाह पर मौत तक के फतवे जारी होते थे। उन पर अमल भी होता था लेकिन बहुधा शासन-व्यवस्था और कानून का पालन करने वाली एजेंसी पुलिस की आंखें बंद रहती थीं। अदालती आदेशों के बाद ही थोड़ी बहुत ही खुलती थीं।

हरियाणा से बाहर के लाखों लोग खापों के निर्णयों से नावाकिफ थे और उसकी तथाकथित कार्यप्रणाली से भी। कुछ साल हुए, अभिनेता-निर्माता आमिर खान ने समकालीन सामाजिक मुद्दों को स्पर्श करता एक टीवी साप्ताहिक कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ शुरू किया था। उसका एक एपिसोड खाप पंचायतों पर आधारित था। उस एपिसोड को देखकर लोग सिहर उठे थे। उसके बाद बदलाव का चक्र भी शुरू हुआ। खाप पंचायतें किसी भी किस्म के फैसलों में खुद को राजनीति से दूर रखती हैं। राजनीति जरूर उन्हें औजार के तौर पर इस्तेमाल करने की कवायद में रहती है।

हाल के सालों में खाप पंचायतों ने तेजी से बदलते वक्त के साथ खुद को भी बदला, भले थोड़ी कम रफ्तार के साथ। वजह यह भी कि पढ़ी-लिखी और कुछ चेतन युवा पीढ़ी का हस्तक्षेप होने लगा। वहां तर्क और विचार ने अपनी जगह ली और फिर बनाई। चंद वर्ष पहले तक अपनी मर्जी से शादी करने वाले जोड़े को सरेआम मौत की सजा सुनाने और उसके घर वालों के सामाजिक बहिष्कार करने वाली खाप पंचायतों ने जाट आरक्षण आंदोलन की हिंसा के खिलाफ और विराट किसान आंदोलन के पक्ष में रचनात्मक भूमिका का निर्वहन किया। अब नूंह हिंसा पर खाप पंचायतों ने कमोबेश प्रगतिशील भूमिका निभाई है। इसकी सराहना की जानी चाहिए। एक (लगभग) ‘कबीलाई समूह’ कैसे वक्त के साथ बदलता है, यह इसका एक बड़ा उदाहरण है।

हरियाणा की फोगाट व सांगवान पंचायतों ने मेवात की हिंसा (क्यों न इसे दंगा कहा जाए?) का खुला विरोध किया है। हिंदुत्ववादी संगठनों की पेशानी पर बल हैं कि खापों ने सूबे के नूंह की हालिया हिंसा के बाद हिंदू- मुस्लिम, दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली की बात की है और कहा है कि जिन लोगों की वजह से माहौल बिगड़ा, कानून उनके खिलाफ कार्रवाई करे।

खाप पंचायतों ने नूंह में निकाली गई उस शोभा यात्रा के औचित्य को लेकर शंका जताई, जिससे वहां हिंसा भड़की। साथ ही पंचायतों ने उन कथित गौरक्षकों की भी गिरफ्तारी की मांग की है जिनकी भूमिका मॉब लिंचिंग के एक मामले में संदिग्ध रही है। उनका इशारा इस साल की शुरुआत में भिवानी में कथित रूप से दो लोगों की हत्या के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर था। वहीं दूसरी ओर चरखी दादरी जिले में खापों की अलग-अलग बैठकों में, वरिष्ठ सदस्यों का कहना था कि राज्य में विभिन्न खापें हरियाणा में सांप्रदायिक एजेंडा बढ़ाने की कोशिश करने वाले तत्वों पर लगाम लगाने के मुद्दे पर एकजुट हैं।

खापों ने नूंह में ब्रज मंडल यात्रा के आयोजन को लेकर भी सवाल उठाए और इसे साफतौर पर सांप्रदायिक/ राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिश बताया। बड़ी बात है कि तमाम खाप पंचायत में अलग-अलग मंचों से और एक पंचायत में कहा गया कि सभी समुदाय अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। बैठक में नूंह व गुरुग्राम की हिंसा की निंदा भी की गई। वहीं दूसरी सांगवान खाप ने हालिया हिंसा के प्रति कड़ा आक्रोश जताते हुए कहा कि हरियाणा में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

कई खाप पंचायतों ने अपने-अपने तईं प्रण भी लिया है कि अल्पसंख्यक समुदाय का पलायन रोका जाएगा और जो अपना घर और स्थान छोड़कर जा चुके हैं, उन्हें वापस लाया जाएगा। विभिन्न खाप पंचायतों ने यह भी कहा है कि अगर सियासतदान उनका फायदा उठाने की कवायद करेंगे तो उनका सार्वजनिक बहिष्कार किया जाएगा। राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं की खाप पंचायतों के करीब आने की कोशिश इसलिए भी है कि इसी साल हरियाणा में आम विधानसभा चुनाव होने हैं। फिलहाल हर दल की स्थिति कमजोर है। हर किसी को बड़े ‘सहारे’ की दरकार है।

आसन्न चुनावी विधानसभा महासागर और सन् 2023 के चुनावी समर के लिए मेवात को जलाया गया। देश में जहां-जहां अल्पसंख्यक बड़ी तादाद में हैं, वहां ध्रुवीकरण का खुला खेल खेलने के लिए कतिपय संगठन यकीनन किसी भी हद तक जा सकते हैं और जाएंगे। खाप पंचायतों ने राज्य सरकार की ‘बुलडोजर नीति’ का भी खुला विरोध किया। दीगर है बुलडोजर जैसा ही कुछ नया सामने आ सकता है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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