पंजाब: राज्यपाल और मुख्यमंत्री में फिर बढ़ी तल्खी

पंजाब में राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच टकराव बेतहाशा बढ़ गया है और राज्य में इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच आम आदमी पार्टी सरकार के गठन के वक्त से ही ठनी हुई है। ताजा टकराव कुछ ज्यादा तल्ख है।

कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या केंद्र के इशारे पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री भगवंत मान को निशाना बनाते हुए राज्य सरकार के खिलाफ एक के बाद एक रिपोर्ट दिल्ली भेज रहे हैं। कहीं यह पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की कोई कवायद तो नहीं?

अतीत ने पंजाब कई बार राष्ट्रपति शासन के हवाले हो चुका है। मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनके मंत्रियों का सीधा आरोप है कि राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित पंजाब में समानांतर सत्ता चलाने की कोशिश कर रहे हैं। राज्यपाल अफसरशाही को सीधे निर्देश देते हैं और लगातार सूबे का दौरा करते वक्त अपने भाषणों में मान सरकार को घेरते हैं। यह कतई शुभ संकेत नहीं।

ताजा विवाद में राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर ‘कड़ी चेतावनी’ दी है। गौरतलब है कि यह पत्र पहले मीडिया के जरिए सामने आया और फिर मुख्यमंत्री को भेजा गया। बीते दिनों भगवंत मान सरकार ने चयनित कुछ स्कूलों के मुख्य-अध्यापकों को विशेष प्रशिक्षण के लिए सिंगापुर भेजा था।

मान को भेजे पत्र में राज्यपाल पुरोहित ने कहा है कि प्रिंसिपल को प्रशिक्षण के लिए सिंगापुर भेजने के लिए हुए चयन को लेकर उन्हें शिकायतें मिली है। आरोप है कि चयन प्रक्रिया में भेदभाव किया गया। राज्यपाल ने राज्य सरकार से कहा है कि मानदंड और संपूर्ण चयन प्रक्रिया के विवरण के साथ ही इस यात्रा और सिंगापुर में मुख्य-अध्यापकों के रहने और प्रशिक्षण पर हुए खर्च का विवरण दिया जाए।

राज्यपाल ने पंजाब सूचना व संचार और प्रौद्योगिकी निगम लिमिटेड के अध्यक्ष के तौर पर गुरविंदरजीत सिंह जावंदा की नियुक्ति पर भी कड़े सवाल उठाए हैं। राज्यपाल ने लिखा कि जावंदा के खिलाफ अपहरण और जमीन कब्जाने के केस दर्ज हैं। चंडीगढ़ के पूर्व एसएसपी और अब जालंधर के पुलिस कमिश्नर कुलदीप चाहल की नियुक्ति और तरक्की पर भी राज्यपाल ने एतराज जताया है।

चंडीगढ़ प्रशासन के मुखिया के तौर पर पंजाब के राज्यपाल ने कुलदीप चाहल को कार्य अवधि पूरी होने से पहले ही वहां से रुखसत कर दिया था। वह पंजाब कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं और मान सरकार ने उन्हें तरक्की देते हुए जालंधर का पुलिस आयुक्त नियुक्त कर दिया। राज्यपाल की शिकायत के आधार पर कुलदीप चाहल के खिलाफ सीबीआई जांच भी शुरू हो गई है।

राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से कहा कि यह पुलिस अफसर आपकी आंखों का तारा है, इसलिए मेरे ऐतराज के बावजूद इसे तरक्की देकर जानबूझकर उस जिले में तैनात किया गया, जहां 26 जनवरी को राज्य स्तरीय गणतंत्र दिवस होना था। जिक्रेखास है कि राज्यपाल ने पंजाब के डीजीपी को सख्त हिदायत दी कि जालंधर में होने वाले राज्य स्तरीय गणतंत्र दिवस पर वहां के पुलिस आयुक्त कुलदीप चाहल को उनसे दूर रखा जाए। अपने आप में कम से कम पंजाब में यह पहला मामला है।

बनवारीलाल पुरोहित ने भगवंत मान को लिखे पत्र में यह भी कहा है कि स्कॉलरशिप न मिलने से दो लाख अनुसूचित जाति के छात्रों की पढ़ाई बाधित हुई है और उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि पंजाब खेती-बाड़ी विश्वविद्यालय, लुधियाना के वाइस चांसलर को हटाने के लिए कहा गया था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से पूछा है कि सुरक्षा और गोपनीय मामलों की बैठकों में दिल्ली से आए नवल अग्रवाल किस हैसियत से शामिल होते हैं।

ताजा पत्र पर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि राज्यपाल का पत्र उन्हें मीडिया के जरिए मिला और इसमें लिखे विषय राज्य की शासन व्यवस्था से संबंधित हैं। मान का कहना है कि वह तीन करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह हैं। केंद्र के ‘नुमाइंदे’ राज्यपाल के प्रति नहीं! मान ने यहां तक कहा है कि वह केंद्र के प्रति भी इन विषयों के लिए जवाबदेह नहीं हैं। तल्ख भाषा का इस्तेमाल करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यह भी कहा कि इसे ही मेरा जवाब समझा जाए।

सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता अहबाब ग्रेवाल कहते हैं, “देश के जिन राज्यों में गैरभाजपाई सरकारें हैं, वहां के राज्यपाल हमेशा खुद को दिल्ली का लेफ्टिनेंट गवर्नर समझते हैं। उन्हें लगता है कि उनके हस्ताक्षर के बिना कुछ नहीं होना चाहिए। संविधान के मुताबिक राज्य की चुनी हुई सरकार जो कहेगी, उसी पर राज्यपाल बात कर सकते हैं। संविधान में स्पष्ट है कि भारत एक सेंट्रल स्टेट होगा और राज्यों व केंद्र के अलग-अलग अधिकार हैं।”

इससे पहले जनवरी में राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने ‘कानून व्यवस्था की स्थिति जानने के लिए’ पंजाब के कई जिलों का दौरा किया था। कई जगह उन्होंने अपने भाषणों में सरकार पर आरोप लगाए। जवाब में वरिष्ठ मंत्री अमन अरोड़ा ने कहा कि राज्यपाल समानांतर सत्ता चला रहे हैं। इशारों-इशारों में अमन अरोड़ा ने यह भी कहा कि राज्यपाल को अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए। राज्यपाल की तरफ से कहा गया था कि वह राजभवन में बैठने वाले राज्यपाल नहीं है बल्कि जनता के बीच जाएंगे और कोई उन्हें रोक नहीं सकता।

राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच सोमवार से चल रहे ताजा टकराव में मुख्य विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल और भाजपा भी सक्रिय हो गए हैं। भाजपा नेता और प्रदेश प्रवक्ता अनिल सरीन के अनुसार, “राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख हैं और पंजाब सरकार उनके सवालों का जवाब नहीं दे रही है। आप नेताओं की बौखलाहट बताती है कि दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है।”

शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डॉ दलजीत सिंह चीमा कहते हैं, “मान सरकार के असंवैधानिक फैसलों से पंजाब में संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गई है। राज्यपाल की ओर से मांगी गई जानकारी सरकार को देनी चाहिए।”

तय है कि राज्यपाल और पंजाब सरकार के बीच तनातनी आने वाले दिनों में और गहराएगी। राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने दो-टूक कहां है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दो हफ्तों के भीतर मेरे पत्र का जवाब नहीं दिया तो मैं ‘कानूनी सलाह’ लूंगा। जबकि मुख्यमंत्री भगवंत मान अब बाजिद हैं कि वह राज्यपाल के इस पत्र का जवाब नहीं देंगे। वह भी कानूनी विशेषज्ञों से राय ले रहे हैं।

चंडीगढ़ स्थित पंजाब मामलों के गहरे जानकार एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि, “ताजा प्रकरण में कोई भी पक्ष साफ सुथरा नहीं है। लेकिन राज्यपाल जिस तरह हस्तक्षेप कर रहे हैं वह यही बताता है कि यह सब केंद्र के इशारे पर हो रहा है। मुख्यमंत्री भगवंत मान को चाहिए कि वह केंद्र को ऐसा कोई मौका ना दें जो राज्य को राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाए। इसकी आहटें महसूस हो रही हैं।”

राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने पहले दिन से ही आम आदमी पार्टी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। वह किसी न किसी बहाने भगवंत मान सरकार पर बरसते रहते हैं और केंद्र को राज्य सरकार के खिलाफ बाकायदा पत्र भी लिखते रहते हैं। इस सब पर फिलहाल केंद्र खामोश है।

सरगोशियां हैं कि कुछ महीनों के बाद अचानक केंद्र की गाज भगवंत मान सरकार पर गिर सकती है। राज्यपाल केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर ऐसे हालात बयान कर रहे हैं कि पंजाब में आंतरिक सुरक्षा और खुद की अवहेलना को मुख्य मुद्दा बनाते हैं।

पंजाब एक सरहदी सूबा है और आंतरिक सुरक्षा में केंद्रीय सुरक्षा बलों का भी बराबर योगदान है। तमाम सरहदी जिलों में बीएसएफ और अन्य अर्धसैनिक बलों की तैनाती है। बहुधा वे केंद्रीय गृह राज्य मंत्रालय के प्रति जवाबदेह हैं। राज्य सरकार का उनके काम में कभी-कभार का हस्तक्षेप कोई बहुत बड़ा मसला नहीं है।

भगवंत मान कई बार खुद राज्य के आला पुलिस अधिकारियों को आदेश दे चुके हैं कि केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ तालमेल बेहतर रखा जाए। प्रसंगवश, यह सही है कि पंजाब में कानून-व्यवस्था की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं है। ‘गैंगस्टर कल्चर’ अभी भी कायम है और कोई दिन ऐसा नहीं बीतता, जो विभिन्न इलाकों से नशों की वजह से हुई मौतों की सुर्खियां न लाता हो।

जाहिर है कि नशा सौदागरों का सफाया करने में अभी पंजाब पुलिस ज्यादा कामयाब नहीं हो पाई है। बनवारीलाल पुरोहित इसे भी अहम मुद्दा बनाते रहे हैं और अब भी बना रहे हैं। मुख्यमंत्री आए दिन इस पर नकेल कसने के दावे करते हैं लेकिन वे दावे भी जमीनी स्तर पर हांफते नजर आते हैं।

खैर, मुख्यमंत्री भगवंत मान को राज्यपाल की चेतावनी पर ‘अतिरिक्त सावधान’ होना चाहिए क्योंकि अतीत बताता है कि इसी मानिंद राज्यपालों की नकारात्मक रपटों को आधार बनाकर रातो-रात चुनी हुईं सरकारें गिराई जाती रहीं हैं। पंजाब में यह चार बार हो चुका है। कहीं इतिहास खुद को न दोहराए।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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