उत्तर प्रदेश में खून बहाती शराब

पिछले दिनों अलीगढ़ में नकली शराब पीने की वजह से 100 से अधिक ग्रामीणों द्वारा जान गंवाने की घटना ने यह साबित कर दिया कि भले ही योगी सरकार शराब माफियाओं पर शिकंजा कसने का लाख दावा करती रहे लेकिन सच यही और यही है की न तो सरकार नकली शराब का कारोबार रोकने में सफल हो पा रही है और न ही शराब माफियाओं पर नकेल कस पा रही है, अलबत्ता मौतों के आंकड़ों पर पर्देदारी जरूर होती रही है।

अलीगढ़ शराब कांड के बाद वहां नकली शराब का कारोबार चलाने वालों की गिरफ्तारियां जरूर हुई हैं और कुछ शराब के ठेकों को सील भी कर दिया गया है। इसमें दो राय नहीं कि जब भी इस तरह के कांड होते हैं तो पुलिस द्वारा त्वरित कर्रवाइयां भी होती है, गिरफ्तारियां भी होती हैं, पर सवाल यह उठता है कि इतनी मुस्तैदी के बावजूद फिर आख़िर कैसे शराब माफिया प्रदेश में धडल्ले से नकली शराब का कारोबार फैला रहे हैं? क्या इसका जवाब यही हो सकता है कि कहीं न कहीं इन माफियाओं के तार राजनीति से भी जुड़े हैं। जानकार कहते हैं बिना राजनैतिक नेटवर्क के इतना बड़ा कारोबार फैलाना संभव नहीं, जबकि हर कदम पर पुलिस का खतरा हो।

अलीगढ़ कांड के बाद पुलिस शराब कारोबारी अनिल चौधरी और उसके करीबी ऋषि शर्मा के नेटवर्क की भी जांच कर रही है, जिनके कथित तौर पर मजबूत राजनैतिक संबंध हैं। अलीगढ़ के जिलाधिकारी चंद्रभूषण सिंह ने पत्रकारों को बताया कि प्रशासन दोषियों के खिलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) लगा सकता है। घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश के बाद पांच आबकारी अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। इस घटना के बाद अलीगढ़ के कई गांवों में मातम पसर गया है तो वहीं इस शराब कांड के बाद राज्य में शराब बंदी की मांग भी उठने लगी है। इस मांग को उठाने वाले अलीगढ़ के कजरौठ गांव के दो युवक तहसील के सामने भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं।

पिछले पांच महीनों में ही नकली शराब पीने की वजह से प्रदेश में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा बैठे हैं। सरकार द्वारा आवंटित शराब के ठेकों पर भी मिलावटी, जहरीली शराब का कारोबार फल फूल रहा है। पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट के समय से ही प्रदेश में तेजी पकड़े मिलावटी शराब का कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा। पिछले दिनों ऐसा मंजर सामने रहा जिसने यह साबित कर दिया कि प्रदेश और प्रदेश की राजनीति किस हद तक शराब माफियाओं के आगे बौनी पड़ती जा रही है।

एक तरफ पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी होती है और दूसरी तरफ नकली शराब का कारोबार फलने फूलने लगता है। चुनाव एक ऐसा समय होता है जब शराब की खपत कई गुना बढ़ जाती है तब ऐसे में शराब माफिया इस सुनहरी मौके को भला कैसे गंवाते और जब बहुत सस्ते में शराब उपलब्ध हो जा रही हो तो दावेदार भी भला पीछे क्यों रहते, और रही शराब शौकीनों की बात तो मुफ्त की शराब उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं। चुनाव और शराब के इसी गठजोड़ ने एक तरफ़ अवैध शराब के कारोबार को बढ़ाया तो दूसरी तरफ़ मौतों का सबब बना।

पंचायत चुनाव के समय नकली शराब का सेवन करने की वजह से प्रदेश के कई जिलों के गांवों से ग्रामीणों की न केवल मरने की खबरें सामने आईं बल्कि कई लोगों की आंख की रोशनी भी चली गई। चित्रकूट, प्रयागराज, बरेली, बंदायू, प्रतापगढ़, मिर्जापुर आदि जिलों में मौत का तांडव देखने को मिला जिसने सूबे की राजनीति को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया। इस बात से इंकार नहीं कि खासकर पंचायत चुनाव शराब माफियाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं होता क्योंंकि यहां मामला गांवों से सम्बन्धित होता है और नकली शराब की खपत गांवों या कस्बों में करना बेहद आसान होता है तो जब इतने बड़े प्रदेश में पंचायत चुनाव हो तो शराब माफियाओं की सक्रियता बढ़नी लाज़िमी थी।

पंचायत चुनाव के मद्देनजर मिलावटी शराब के कारोबार ने तेजी पकड़ी। किसी भी तरह से चुनाव में जीत हासिल करने के लिए उम्मीदवारों द्वारा यही मिलावटी शराब ग्रामीण पुरुष मतदाताओं को परोसी गई, जिसका नतीजा बहुतों के मौत के रूप में सामने आया। चुनाव के समय मौतों की जितनी खबरें विभिन्न जिलों से सामने आईं, उन सब में एक बात समान रूप से देखी गई कि ग्राम प्रधान पद के दावेदारों द्वारा दी जाने वाली पार्टी में मरने वाले ग्रामीण शामिल थे और वहां जो शराब दी गई थी सबने उसका सेवन किया था। इतना ही नहीं कच्ची शराब भी अवैध रूप से बनाने की खबरें गांवों से सामने आती रहीं। हालांकि लगातार कार्रवाई से शराब माफियाओं में हड़कंप तो मचा , बावजूद इसके अभी भी कारोबार चरम पर है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, हरियाणा सहित अन्य प्रांतों की कच्ची शराब खपाने के लिए शराब माफिया जुट गए।

इसमें दो राय नहीं कि शराब तस्करी और अवैध शराब के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए सरकार  पुलिस महकमें को जितना हाईटेक करने की बात करती है, शराब तस्कर उससे ज्यादा ही हाईटेक होकर अपने काम को अंजाम तक पहुंचा रहे हैं। खबरों के मुताबिक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस की मदद से शराब तस्कर मानिटरिंग कर पड़ोसी राज्यों से शराब की तस्करी करने में सफल हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में शराब माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए भले ही पुलिस ने कमर कस ली हो लेकिन सवाल यह उठता है कि इतनी चाक चौबंद होने के बावजूद आख़िर शराब माफिया कैसे अपने मंसूबों में सफल हो रहे हैं।

पिछले दिनों ग्रेटर नोएडा के अलग अलग थाना क्षेत्र में पुलिस और आबकारी की टीम द्वारा छापा मार कर दर्जन शराब तस्करों को गिरफ्तार किया गया। इनके पास से लग्जरी गाड़ियां और भारी मात्रा में अवैध शराब बरामद हुई। खबर यह सामने आई की जिला पंचायत और ग्राम प्रधान प्रत्याशी की डिमांड पर शराब माफिया साथ गांठ कर ग्रामीणों को लुभाने के लिए हरियाणा से शराब तस्करी कर रहे थे। हर रोज अलग अलग जिलों से शराब माफियाओं की धड़पकड़ की खबरें इन दिनों उतर प्रदेश की सुर्खियां बनी हुई हैं, लेकिन जितनी धड़पकड़ हो रही हैं उससे कई गुना अवैध शराब विभिन्न जिलों तक पहुंच रही है।

जगह-जगह पुलिसिया कार्रवाई तो हो रही है, इस बात से इंकार नहीं लेकिन सच यह भी है कि पुलिस की कार्रवाई में जब कच्ची शराब पकड़ी जाती है तो मात्र ड्राईवर और सहयोगी पर कार्रवाई कर पुलिस अपना काम पूरा समझ लेती है और जो इस अवैध कारोबार के मास्टर माइंड होते हैं वे आबकारी विभाग और पुलिस की ढिलाई के कारण बच निकलते हैं। ठेके से मिलने वाली शराब से ये कच्ची शराब करीब पचास से साठ प्रतिशत सस्ती होती है। 

पुलिस सूत्रों की माने तो शराब माफिया भूसा, फल और अनाज से लदे वाहनों के जरिए शराब की खेप लाते हैं। उत्तर प्रदेश उन राज्यों में शामिल है जहां शराबबंदी लागू नहीं है उसके बावजूद इतने बड़े पैमाने पर यदि यहां अवैध शराब का कारोबार हो रहा है तो यह योगी सरकार के उस “सुशासन” पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है, जिसका गुणगान हर अवसर पर करने से सरकार नहीं चूकती। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन शराब माफियाओं पर अपना सख्त रूप दिखाते हुए उन पर न केवल गैंगस्टर एक्ट लगाने की बल्कि उनकी संपत्ति भी जब्त करने की बात कहते हैं, साथ ही आला अधिकारियों को ऐसे लोगों पर कड़ी नजर रखने के निर्देश भी दिए गए हैं जो प्रतिबंध के बावजूद बिना लाईसेंस के अवैध तरीके से शराब बनाकर धडल्ले से बेच रहे हैं।

मुख्यमंत्री कहते हैं अवैध शराब पीने की वजह से प्रदेश में यदि एक भी व्यक्ति की मौत होती है तो न सिर्फ शराब बेचने वालों पर कड़ी कार्रवाई होगी बल्कि उस क्षेत्र के जिम्मेदार अधिकारियों और पुलिस कर्मियों पर भी सख्त एक्शन लिया जाएगा। परंतु इतने सब प्रयासों और सख्ती के बावजूद आख़िर कैसे अवैध शराब की खेप जिलों तक पहुंच जा रही है, आख़िर कैसे दूसरे राज्यों से तस्कर बैखौफ यूपी के भीतर प्रवेश कर रहे हैं और कैसे गांव गांव तक ये मिलावटी कच्ची शराब मिल रही है।

‌उत्तर प्रदेश में नकली शराब (Fake Liquor) के कारोबार से हर वर्ष न केवल सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान होता है, बल्कि नकली शराब के सेवन से सैकड़ों लोग मौत के मुंह में समा जाते है.  इसे देखते हुए कुछ महीने पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर आबकारी विभाग ने नई आबकारी नीति के तहत यह कहते हुए एक ऐसा सिस्टम डेवलप किया जिसके जरिये प्रदेश में बनने वाली हर एक शराब की बोतल को ट्रैक एंड ट्रेस किया जायेगा।

माना गया कि इस सिस्टम की बदौलत  एक ओर सरकार को होने वाली राजस्व के नुकसान पर प्रभावी ढंग से रोक लगेगी और राजस्व में एक बड़ा इजाफा होगा तो वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में नकली शराब के करोबार को भी पूरी तरह से खत्म कर दिया जायेगा, बीते साल अक्टूबर में ही इस नई आबकारी नीति को योगी सरकार की कैबिनेट से पास भी कर दिया गया है. इस सिस्टम के तहत पंजाब-हरियाणा से बिना एक्साइज ड्यूटी के आने वाली शराब और कच्ची भठ्ठियों से बनने वाली शराब की सरकारी सिस्टम में खपत कराने से रोकने के लिये एक संस्था का चयन किया गया है.

जिस तरह से एक के बाद एक नकली शराब के सेवन से लोगों की मरने की खबरें सामने अा रही हैं उसने यह साबित कर दिया कि अभी भी शराब माफियाओं का नेटवर्क और कार्यप्रणाली सरकार के सिस्टम से ज्यादा बेहतर और हाईटेक है। निश्चित ही सरकार को अपनी पूरी कार्यप्रणाली का ईमानदारी से अवलोकन करना होगा और उन खामियों को तलाशना ही होगा जहां वह यह समझ सके कि आखिर तमाम कोशिशों के बाद भी शराब माफियाओं पर शिकंजा क्यूं नहीं कस पा रही। अगर सच में सरकार इस ओर गंभीरता से कुछ करना चाहती है तो सबसे पहले उसे अपनी जवाबदेही तय करनी ही होगी।

(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

सरोजिनी बिष्ट
Published by
सरोजिनी बिष्ट