भारतमाला परियोजना में भूमि अधिग्रहण कानून का उल्लंघन, किसानों को नहीं मिल रहा उचित  मुआवजा

चंदौली। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग भारतमाला परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण में भूमि अधिग्रहण कानून का पालन नहीं कर रही हैं। भाजपा सरकार विकास के नाम पर और जाम से मुक्ति दिलाने के नाम पर किसानों को भूमिहीन बना रही है। आईपीएफ के राज्य कार्यसमिति सदस्य अजय राय ने रेवंसा, बरहुली, कठौरी, नई कोट, खरगीपुर, लौदा, हिरावनपुर सहित कई गांवों के किसानों को भूमि अधिग्रहण के बाद उचित मुआवजा न मिलने पर किसानों की तरफ से मुआवजे की मांग उठाया।

उन्होंने कहा कि यह सरकार किसानों को छल रही है जहां रेवंसा के किसानों को मात्र 3.57 लाख की रेट दे रही है बरहुली के किसानों को 1.70 लाख, देवई के किसानों को 1.40 लाख, कठौरी के किसानों को 1.50 , लौदा के किसानों को 2.40 के रेट से मुआवजा मिल रहा हैं जोकि बहुत ही कम हैं।  

आईपीएफ राज्य कार्यसमिति सदस्य अजय राय व पूर्व जिला पंचायत सदस्य तिलकधारी बिन्द ने रेवंसा, बरहुली, कठौरी, लौदा सहित कई गांवों का दौरा किया और बरहुली में किसानों के बीच बोलते हुए कहा कि भाजपा सरकार किसानों को छलने का काम कर रही है। किसानों को उचित मुआवजा न देना किसानों का शोषण है। संसद में बनें  भूमि अधिग्रहण कानून का भी उलंघन हैं।

संसद में भूमि अधिग्रहण कानून बनाते समय सरकार ने वादा किया था कि भूमि अधिग्रहण उपजाऊ व कीमती जमीन का बहुत जन कल्याणकारी योजनाएं होंगी तभी अधिग्रहण होगा। भूमि अधिग्रहण जिन किसानों का हो रहा है उसमें बरहुली के किसान महेंद्र बिंद ने कहा कि अधिग्रहण की जा रही जमीन काफी उपजाऊ हैं और हम किसानों की जिन्दगी ज़ीने की सहारा है। लेकिन हमारी जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है वहीं बाजार दर से बहुत कम मुआवजा दिया जा रहा है। और अधिग्रहण की जा रही जमीन की नोटिस से ज्यादा जमीन ली जा रहीं हैं।

जमीन के रेट के मूल्यांकन को लेकर है। 2013 में जब जमीन अधिग्रहण कानून बना था, तब उसमें लिखा था कि जब कभी सरकार या निजी क्षेत्र जमीन अधिग्रहण करेगा तो बाजार रेट का 4 गुना अधिक मुआवजा के तौर पर दिया जाएगा। नियम अनुसार बाजार मूल्य निर्धारण का अधिकार राज्य सरकारों को हैं। अब यहां सरकार में बैठे लोगों ने किसानों को दोनों हाथों से लूट की खुली छूट की पैरोकारी करते हुए 2013 से 2023 तक, पिछले दस सालों में, कृषि जमीन के मूल्यांकन को बढ़ाया ही नहीं। बाजार मूल्य 2013 के रेट को ही रखे हुए है। इसका खामियाजा चंदौली समेत कई जिलों या कहें कि  हर जगह के किसानों को उठाना पड़ रहा है।

सरकार की नजर में कृषि भूमि की कीमत मात्र 3 से 4 लाख रुपये एकड़ मात्र है और इसका 4 गुना 12 लाख रुपये एकड़ होता है, जबकि चंदौली जिला की कृषि भूमि की कीमत कहीं भी 30 लाख रुपये एकड़ से कम नहीं। ऐसे में बाजार भाव से मुआवजा 1 करोड़ रुपये से ऊपर हो जाता है। अब एक करोड़ रुपये की जगह सरकार 12 लाख रुपया देना चाहती है, यही असहमति का बिंदु है हमारे लिए।  

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