क्या हेमंत सोरेन अबुआ बीर दिशोम अभियान से नए इतिहास की रचना करेंगे?

पिछले दिनों झारखंड में एक अहम ऐतिहासिक अभियान शुरू हुआ। झारखंड राज्य बनाने के 23 साल बाद प्रदेश के आदिवासियों के जंगल जमीन के ऊपर स्थायित्व और अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कुछ उल्लेखनीय निर्णय लिए। मुख्यमंत्री के निर्देश में एक अनोखा पहल अबुआ बीर दिशोम के नाम से एक अभियान 6 नवंबर, 2023 को शुभारंभ हुआ। इसके तहत राज्य में पहली बार एक व्यापक रीति से आदिवासी और वनों पर निर्भर रहने वाले लोगों को व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामुदायिक वन संसाधन वनाधिकार पट्टा मुहैया कराया जाएगा। जंगल, जमीन और इससे जु़ड़े संसाधनों की रक्षा के उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत हुई है। प्रदेश भर में आदिवासी और वन-आधारित समुदायों के द्वारा विगत डेढ़ दशक से गंभीर उग्र आंदोलन और कई दफा अदालतों के दरवाजे खटखटाकर इस मांग को रखा गया था।

15 नवंबर को 23वां राज्य दिवस का अवसर था, जो आदिवासी प्रतीक बिरसा मुंडा की जयंती भी है, उस अवसर पर हेमंत सोरेन सारे अधिकारियों को सख्त आदेश दिया कि लंबे समय से उपेक्षित योजना को पूरी गंभीरता के साथ लागू करें। ज्ञात हो कि महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर राज्य के 30 हजार से अधिक ग्राम सभाओं ने भाग लिया। जल, जंगल और जमीन तथा इसके संसाधनों की रक्षा के लिए समर्पित और संगठित प्रयास करने के लिए शपथ लिया।

वन अधिकार अधिनियम, 2006 के द्वारा दिये गये अधिकार का उपयोग करते हुए 3 अक्टूबर 2023 से 18 अक्टूबर 2023 तक ग्राम, अनुमंडल एवं जिला स्तर पर वनाधिकार समिति का गठन/पुनर्गठन किया गया है। यह समिति वन पर निर्भर लोगों और समुदायों को वनाधिकार पट्टा दिये जाने के लिए उनके दावा पर नियमानुसार अनुशंसा करेगी। साथ ही, अबुआ बीर दिशोम अभियान के सफल क्रियान्वयन के लिए मोबाइल एप्लीकेशन एवं वेबसाइट भी तैयार की गयी है जिससे आदिवासी और वनों पर निर्भर रहने वाले लोगों को व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामुदायिक वन संसाधन वनाधिकार पट्टा मुहैया कराया जा सके।

क्या है अबुआ बीर दिशोम अभियान?

यदि इसका शाब्दिक अनुवाद किया जाए तो अबुआ का अर्थ है हमारा, बीर का अर्थ है जंगल और दिशोम का अर्थ है देश। शिथिल रूप से अनुवादित करने पर अंग्रेजी में इस अभियान का अर्थ “Our Forest Hamlet” (आवर फॉरेस्ट हैमलेट) होता है। संयोग से, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा भी झारखंड से हैं और जनजातीय मामलों का मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर्स) देश भर में वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।

हेमंत सोरेन ने वरिष्ठ अधिकारियों को साफ तौर पर पिछले कुछ वर्षों में इस कानून के तहत हुए खामियों की ओर इशारा भी किया और विशेष रूप से डीसी और डीएफओ से सुधारात्मक उपाय करने की अपील की। सोरेन ने अधिकारियों को बताया कि यदि छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य इस क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं, तो झारखंड के पीछे रहने का कोई कारण नहीं है।

मुख्यमंत्री और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने डीसी और डीएफओ को “सरकार आपके द्वार” अभियान को फिर से शुरू करने के बारे में भी जानकारी दी। इस अभियान के तहत सरकारी मशीनरी गांवों में कैंप कर आम लोगों की समस्याओं का समाधान करेगी। इन दोनों अभियानों को बिरसा मुंडा की जयंती और राज्योत्सव के अवसर यानि 15 नवंबर को एक सार्वजनिक समारोह में “औपचारिक रूप से” लॉन्च किये।

अबुआ बीर दिशोम अभियान की शुरुआत करते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि “हमर जंगल, हमर अभियान” के तहत अबुआ बीर दिशोम अभियान की शुरुआत कर रहे हैं। इस योजना के तहत प्रदेश में पहली बार एक व्यापक अभियान चलाया जाएगा।  जिसके तहत आदिवासी और वन पर आश्रित रहने वाले लोगों को वनाधिकार पट्टा मुहैया कराया जा रहा है।

वन अधिकार समिति द्वारा चिन्हित लोगों को सरकार द्वारा वन पट्टा मुहैया कराने हेतु अभियान प्रथम चरण में दिसंबर, 2023 तक संचालित किया जायेगा। अबुआ बीर दिशोम अभियान की शुरुआत 06 नवम्बर को एक राज्यस्तरीय प्रशिक्षण एवं कार्यशाला से हुई। इसके तहत झारखंड राज्य अंतर्गत सभी जिलों के उपायुक्तों और वन प्रमंडल पदाधिकारियों को आवश्यक प्रशिक्षण दिया जायेगा। साथ ही, ग्राम स्तर पर वन अधिकार समिति, अनुमंडल स्तरीय समिति एवं जिला स्तरीय वनाधिकार समिति के सदस्यों को अभियान के सफल निष्पादन के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा। इस अभियान का लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिले, इस निमित्त विभिन्न माध्यमों से प्रचार-प्रसार को गति प्रदान की जायेगी।

2 अक्तूबर 2023 को महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर राज्य में ‘अबुआ वीर दिशोम अभियान 2023’ का शुभारंभ किया गया।

अभियान के प्रमुख बिंदु

  • इस अवसर पर ग्राम स्तर पर वनाधिकार समिति का गठन-पुनर्गठन करने, वन पर निर्भर लोगों और समुदायों को वनाधिकार पट्टा दिये जाने के लिये शपथ ली गई।
  • शपथ ग्रहण के साथ ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से वनाधिकार के लिये प्रस्तावित अबुआ बीर दिशोम अभियान, 2023 (वन अधिकार अभियान, 2023) के क्रियान्वयन और वन अधिकार नियम के अनुसार अनुशंसा करने, जल, जंगल और ज़मीन तथा इसके संसाधनों की रक्षा के लिये समर्पित और संगठित प्रयास करने की शपथ ली गई।
  • राज्य के 30 हज़ार से अधिक ग्राम सभाओं ने वन अधिकार अधिनियम के अतर्गत ग्राम स्तर पर वनाधिकार समिति का गठन-पुनर्गठन 3-18 अक्तूबर के बीच हुआ।
  • उपायुक्त अपने-अपने ज़िलों में अक्तूबर के प्रथम और द्वितीय सप्ताह में ज़िलास्तरीय वन प्रमंडल पदाधिकारी और राजस्व अधिकारियों के साथ बैठक कर ग्रामस्तरीय वनाधिकार समिति में की जाने वाली कार्रवाई के लिये सभी प्रकार के भू-अभिलेख फॉरेस्ट मैप की उपलब्धता सुनिश्चित किये। आगे की कार्य योजना भी तैयार करना शुरू किये।
  • ज़िला, अनुमंडल और प्रखंड स्तर पर एफआरसी सेल का गठन सुनिश्चित किया जाएगा।
  • ग्रामस्तरीय वनाधिकार समिति की ओर से पेश किये गए दावों पर ग्रामसभा द्वारा लिये गए निर्णय से एसडीएलसी को अनुशंसित दावों की एक प्रति प्रखंडस्तरीय एफआरए सेल में दी जाएगी।

वन अधिकार अधिनियम क्या है?

आदिवासी अथवा अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006, आमतौर पर वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के रूप में जाना जाता है। एफआरए वन अधिकारों और वन भूमि पर कब्जे के अधिकारों को वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों को मान्यता देने और निहित करने का प्रयास करता है जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में रह रहे हैं लेकिन जिनके अधिकारों को दर्ज नहीं किया जा सका है।

आदिवासी मूलनिवासी देश के सबसे गरीब लोगों में से हैं। कई आदिवासी लोगों और अन्य वन समुदायों के लिए, जंगल आजीविका, पहचान, रीति-रिवाजों और परंपराओं का स्रोत हैं। हालांकि, उनकी पैतृक भूमि और उनके आवासों पर उनके अधिकारों को पर्याप्त रूप से मान्यता नहीं दी गई है, बावजूद इसके कि ये उनके अस्तित्व और वन पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता के लिए अभिन्न अंग हैं। इस ऐतिहासिक अन्याय में सुधार की आवश्यकता थी और इसलिए, तब के कांग्रेस सरकार ने वन अधिकार अधिनियम बनाया। अधिनियम के प्रावधानों को क्रियान्वित करने के लिए 01-01-2008 को नियमों की अधिसूचना के साथ अधिनियम लागू हुआ।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में आने वाले सालों में यदि अबुआ बीर दिशोम अभियान सफल हुआ तो झारखंड अधिवासी जन-वन अधिकार के संदर्भ में एक नए इतिहास को ही नहीं रचेगा बल्कि संसार भर के इंडिजिनीयस दुनिया के लिए एक नई उम्मीद की किरण को भी जगाएगा।  इसके अलावा राजनीतिक स्तर पर अगले साल के लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनावों से पहले सोरेन के आदिवासी-मूलनिवासी वोट बैंक को जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

(गोल्डी एम. जॉर्ज की रिपोर्ट।)

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