प्रयागराज में ड्रॉप्सी से एक परिवार के 3 सदस्यों की मौत, 3 अस्पताल में भर्ती, सरसों का तेल बना काल

प्रयागराज। महक (तीन साल) और आयुष (छः साल) गुमसुम बैठे हैं। खेलने-खाने की उम्र में इन्होंने अपनी बहन, बाबा और दादी की मौत को देखा है। मां, पिता और चाचा अस्पताल में ज़िन्दग़ी और मौत के बीच जूझ रहे हैं। खुद ये दोनों अभी बीमारी से पूरी तरह नहीं उबरे हैं, तीनों वक्त दवा खा रहे हैं, पैर में सूजन और पेट पर चकत्ते अभी बाकी हैं। महक, शकुन्तला देवी की गोद में और आयुष बगल में बैठे सबकी बातें सुन रहे हैं। गांव में सन्नाटा पसरा है।

शकुन्तला देवी अस्पताल से लौटकर आई हैं। गांव की महिलाएं और लड़कियां उन्हें घेरे बैठी हैं। शकुन्तला तीनों मरीजों के हाल की जानकारी दे रही हैं। शुक्रवार को आईसीयू में भर्ती रामकुमार और इन्द्र कुमार की तबीयत बिगड़ गई, दोनों की सांसें फूलने लगीं। रामकुमार तो बोल भी नहीं पा रहे हैं।

डॉक्टर ने दोनों को उठने-बैठने से सख्त मना किया है, बोला है जितना आराम करोगे उतना ठीक रहेगा। जबकि ललिता देवी की तबीयत में सुधार है उन्हें जनरल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया है। शकुन्तला देवी बताती हैं कि परिवार के दो लोग अस्पताल गए हैं, तभी वो घर आई हैं, जब वह अस्पताल जाएंगी तो वो लोग घर आएंगे।

यह हरखपुर, गांव जोगीपुर (जोगी का पुरवा) की घटना है। तमन्ना उम्र 13 साल, कक्षा छः में पढ़ती थी। तमन्ना की तबीयत बिड़गने पर परिवार उसे मेजर कल्शी अस्पताल में भर्ती कराने ले गया। वहां से जवाब मिलने के बाद प्राची हॉस्पिटल फाफामऊ ले गए, वहां 5-6 दिन इलाज चला। इलाज के दौरान ही 28 जनवरी को तमन्ना की मौत हो गई। तमन्ना सहदेव सरोज की पोती और रामकुमार-ललिता देवी की बेटी थी।

12 दिन बीते होंगे कि 12 फरवरी को दादी जानकी देवी (65 वर्ष) की तबीयत अचानक से बिगड़ गई। परिजन उन्हें सोरांव के एक निजी अस्पताल लेकर गये। वहां मरीज को भर्ती नहीं किया गया और इलाहाबाद में बड़े अस्पताल ले जाने को कहा गया। रास्ते में ही जानकी देवी की मौत हो गई। इसके ठीक तीसरे दिन यानि 14 फरवरी को तमन्ना के बाबा सहदेव सरोज (70 वर्ष) की भी अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में मौत हो गई।

ड्रॉप्सी पीड़ित बच्चा

इन लोगों को क्या तकलीफ़ थी पूछने पर मरहूम सहदेव सरोज औऱ जानकी देवी की बेटियां निर्मला और प्रमिला जनचौक को बताती हैं कि दोनों पैर में बहुत सूजन था, सांस बहुत ज़्यादा फूल रहा था, पूरे शरीर पर लाल चकत्ते पड़ गए थे, हालांकि दर्द नहीं हो रहा था। तो नज़दीकी किसी डॉक्टर को दिखाया नहीं, पूछने पर वो लोग बताती हैं कि यहां क्षेत्र में कोई अच्छा डॉक्टर या दवाख़ाना नहीं है।

शकुन्तला देवी आगे बताती हैं कि यही लक्षण जब तमन्ना के दोनों छोटे भाईयों महक और आयुष में दिखा तो दोनों को ठीक उसी दिन जिस दिन सहदेव की मौत हुई यानि 14 फरवरी को ही रमेश चाइल्ड केयर गोविन्दपुर में भर्ती किया गया। 15-20 दिन भर्ती रहने के बाद दोनों घर पर आ गए हैं अभी दोनों की दवा चल रही है।

इसी दौरान घर के बाक़ी तीन सदस्यों यानि मरहूम सहदेव सरोज के बेटों राम कुमार सरोज (35 वर्ष) इन्द्र कुमार सरोज (18 वर्ष) और बहू ललिता देवी (32 वर्ष) की हालत गंभीर होने पर स्वरूपरानी अस्पताल में भर्ती किया गया है। जहां रामकुमार और इन्द्र कुमार आईसीयू में भर्ती हैं और ललिता देवी जनरल वार्ड में।

परिवार में डेढ़ साल पहले हुई थी एक और मौत

घर से लेकर अस्पताल तक मरहूम जेठ सहराम के परिवार की तीमारदारी में लगी शकुन्तला देवी अपने बेटे को यादकर भावुक हो जाती हैं। वो बताती हैं कि ठीक डेढ़ साल पहले उनके बेटे प्रदीप (25 वर्ष) की भी इन्हीं लक्षणों के साथ मौत हो गई थी। वो बताती हैं कि कई दिन इलाज करने के बाद डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। थक-हारकर घर ले आईं और फिर बेटे की मौत हो गई।

शकुन्तला देवी बताती हैं कि डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनके बेटे की दोनों किडनी खराब हो गई हैं और उनमें पानी भर गया है, शरीर में ख़ून खत्म हो गया। जबकि 5 यूनिट ख़ून इलाज के दौरान चढ़ा था। प्रदीप के परिवार में एक चार साल का बेटा और बीबी मंजू हैं।

ड्रॉप्सी के लक्षण

शकुन्तला देवी बताती हैं बेटा चला गया, एक बीघा खेत अभी गहन पड़ा है। बेटे के इलाज के लिये 75 हजार रुपये में गिरवी रखा था। कुछ गांव देश और रिश्तेदरी से कर्ज़ लिया, कुछ अपना गहना बेचा। कुल मिलाकर बेटे के इलाज पर 3 लाख रुपये खर्च कर दिये लेकिन बेटा हाथ नहीं आया।

अन्य भाईयों के परिवार की जांच नहीं हुई

सहदेव के परिवार के बाक़ी बचे 5 सदस्यों की जांच में पूरे परिवार के ड्रॉप्सी के चपेट में होने की पुष्टि हुई है। जबकि सहदेव का परिवार तेल बाज़ार से नहीं ख़रीदता, वो अपने खेत में पैदा हुई सरसों को अपनी आंखों के सामने पेराई करवाकर ले आते हैं और उसी से खाना बनता है। सवाल यहां यह उठता है कि प्रशासन से मरहूम सहदेव सरोज के अन्य पांच भाईयों के परिवारों की जांच क्यों नहीं करवाया जबकि डेढ़ साल पहले सहदेव सरोज के भतीजे (भाई के बेटे) की बिल्कुल इन्ही लक्षणों के साथ मौत हुई है। सभी भाईयों के खेत आस-पास ही हैं और सब के सब खेत में सरसों उगाकर उसी के तेल का इस्तेमाल करते हैं।

बता दें कि मरहूम सहदेव सरोज अनुसूचित जाति में आते हैं। इस जाति का मुख्य पेशा श्रम कार्य और कृषि मज़दूरी आदि है। सहदेव सरोज 6 भाई है। सब खेती-बाड़ी और मजदूरी का काम करते हैं। सिर्फ़ सहदेव नौकरी करते थे। वो सेवा समिति में बड़े बाबू थे। खपरैल और मिट्टी के घर के आगे दो कमरा पक्का बनवा लिया है उसी में परिवार रहता है। मरहूम के घर से दस कदम पहले एक यादव परिवार रहता है, जो बिल्कुल सड़क से सटाकर ही दर्जनों जानवर बांधते हैं। जानवरों के गोबर मूत्र और नहलाने, नाद साफ करने आदि के क्रम में पास की सड़क और नाली में पानी और गंदगी लगातार बनी रहती है।

सहदेव सरोज का मकान

परिवार के तीन लोगों की मौत की दुखद घटना के बाद स्वास्थ्य और सफाई महकमे के लोग नालियों में छिड़काव करके गए हैं। घर के सामने पांच नंबर का हैंडपम्प सहदेव ने खुद लगवाया था और परिवार उसी का पानी पीता है।

नन्हें पटेल जोगीपुर गांव के प्रधान हैं। मरहूम सहदेव सरोज सरकारी नौकरी में थे लिहाजा उनके परिवार को कोई कॉलोनी या शौचालय नहीं मिला है। न ही राशन कॉर्ड बना है। शकुन्तला देवी बताती हैं कि बाद में खुद को परिवार से अलग दिखाकर किसी तरह से बहू ललिता देवी ने पत्नी रामकुमार सरोज के नाम पर राशन कॉर्ड बनवा लिया है। जबकि परिवार के पास पूंजी के नाम पर एक भैंस और आधा दर्जन बकरियां हैं।

सहदेव के सभी भाईयों के पास 2-3 बीघा ज़मीनें हैं। अपने खेतों के अलावा यह लोग दूसरों के खेतों में भी मज़दूरी करते हैं। यहां ज़मीनें ऊसर हैं तो गेहूं, सरसों और धान के सिवाय और कुछ नहीं पैदा होता। इन खेतों में दलहन और सब्जियां नहीं पैदा होती हैं। हरखपुर सोरांव से लगभग 10 किलोमीटर और मऊआईमा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यह इलाका बेहद पिछड़ा है।

पीड़ित परिवार को अभी तक किसी भी तरह की आर्थिक सहायता नहीं दी गई है। मरहूम सहदेव सरोज की बेटी निर्मला और प्रमिला अपना घर ससुराल छोड़कर भाई के परिवार की देख-रेख करने आई हुई हैं। गांव की महिलाएं बीमारी के बाद कर्ज़ में घिरे परिवार के लिए सरकार से आर्थिक मुआवजे की मांग कर रही हैं।

जांच रिपोर्ट में ड्राप्सी की पुष्टि

परिवार के जीवित सदस्यों के सैंपल जांच के लिए राजकीय लैब में भेजा गया तो उसमें पुष्टि हुई कि यह सभी ड्रॉप्सी नामक बीमारी से ग्रसित हैं और घरेलू सरसों के तेल में आर्जीमोन के बीज का कुछ अंश पाया गया है।

मऊआइमा CHC के अधीक्षक डॉ. राम गोपाल वर्मा के मुताबिक पीड़ित परिवार का सैंपल जांच के लिए राजकीय लैब भेजा गया था। रिपोर्ट में ड्रॉप्सी बीमारी होने की पुष्टि हुई है। डॉ. राम गोपाल वर्मा का कहना है कि ड्रॉप्सी बीमारी ऐसी होती है कि धीरे- धीरे असर करती है। परिवार के लोग घर के सरसों की पेराई कराए थे और उसी तेल का प्रयोग कर रहे थे। उसमें कुछ खराबी थी जिससे वह सभी ड्रॉप्सी की चपेट में आ गए हैं।

खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग को सौंपे गए अपनी रिपोर्ट में सहायक आयुक्त (खाद्य), ममता चौधरी ने बताया है कि पीड़ित परिवार ने सरसों का तेल बाहर से नहीं लिया था बल्कि उनके खेत में तैयार सरसों की पेराई कराये थे। घर में रखे तेल की जांच कराई गई तो उसमें आर्जीमोन पाया गया है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि घर के तेल में आर्जीमोन के आने के कारणों की पड़ताल की जा रही है। इसके लिए गांव के आठ घरों से तेल के सैंपल लिये गये हैं। ममता चौधरी के मुताबिक संभावना है कि उस परिवार के खेत में आर्जीमोन आदि खरपतवार रहे होंगे जिससे यह दिक्कत हुई है। पूरे मामले पर प्रदेश की स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.लिली सिंह ने प्रयागराज के सीएमओ डॉ. आशु पांडेय को पत्र लिखकर रिपोर्ट मांगा है।

हरखपुर क्षेत्र के किसान राजीव पांडेय बताते हैं कि पहले भड़भांड़ ख़ूब होता था, हर जगह ही होता था, अब तो दवाई के लिए भी ज़रूरत पड़े तो ढूंढना पड़ता है। इलाके में अब केवल बड़ी नहर के किनारे मिलता है लेकिन इतना ज्यादा नहीं।

क्या यह खेतों में विशेषकर सरसों के खेतों में इतना होता है कि वो सरसों में मिल जाए। इस सवाल पर किसान राजीव बताते हैं कि भड़भांड़ का पौधा दो से तीन फीट लंबा होता है जबकि सरसों का पौधा चार से पांच फीट लंबा होता है। यानी लंबाई में आधे-आध का फर्क होता है। मिक्स होने का चांस बहुत कम होता है। किसान काटते समय ही अलग कर देता है। क्योंकि उसके पौधे और पत्तियों में कांटा होता है।

राजीव आगे कहते हैं कि, किसान थोड़ा लापरवाह होता है तो माना जा सकता है कि कुछ पौधे सरसों के साथ चले भी गये होंगे और मड़ाई में एक साथ मिक्स हो गये होंगे। लेकिन इतनी ज़्यादा मात्रा में मिल गए होंगे कि पूरे परिवार को बीमार कर दें, 3 लोगों की मौत हो जाए ये मुमकिन नहीं है। क्योंकि क्षेत्र में, खेत या मेड़ पर अब यह बीमार करने लायक तादात में पैदा ही नहीं होते।

क्या है ड्रॉप्सी बीमारी

ड्रॉप्सी बीमारी को हिन्दी में जलशोफ कहते हैं। यह सत्यानाशी के जहरीले तेल के कारण होता है। सरसों आदि में सत्यानाशी के बीज मिले हों और उससे तेल निकालकर उसका सेवन किया जाय तो ड्रॉप्सी बीमारी होती है। सबसे पहले सन 1877 ई. इस बीमारी का उत्पात हुआ था, इसके बाद यह बीमारी कई जगहों पर फैल गई।

सत्यानाशी (Argemone Mexicana ) के तेल का सेवन इसका प्रधान कारण और चावल का सेवन इसका सहायक कारण है। इस बीमारी में सबसे पहले पैरों में सूजन दिखाई देता है, जो रोग बढ़ने पर ऊपर फैलता है, चेहरा बच जाता है। जिगर, पित्ताशय, गुर्दे और हृदय आदि अंग कमज़ोर हो जाते हैं। पीड़ित व्यक्ति को पानी भी नहीं पचता है और शरीर में दूषित पानी जमा होने लगता है। पेट फूल जाता है, हाथ-पैर और मुंह में सूजन आ जाता है। बुखार, शरीर में दर्द, त्वचा में सुई चुभने की सी पीड़ा और जलन, चकत्ते पड़ना आदि इसके लक्षण होते हैं। मौत हृदय या सांस के अटैक से अचानक हो जाती है।

कैसा होता है भड़भाड़ का पौधा

आर्जीमोन का स्थानीय नाम भड़भाड़, सत्यानाशी और घमोई है। इसका वानस्पतिक नाम Argemone Mexicana है। यह मूल रूप से एक अमेरिकी वनस्पति है, जिसके बीज सरसों आदि के साथ भारत में आ गये। अब यह भारत में सब जगहों पर पैदा होती है। सत्यानाशी के किसी भी अंग को तोड़ने से उसमें से सोने की तरह पीले रंग का दूध निकलता है।

भड़भांड़ का पौधा

सत्यानाशी का फल चौकोर, कांटेदार, प्याले-जैसा होता है, जिनमें राई की तरह छोटे-छोटे काले बीज भरे रहते हैं, जो जलते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। इसी कारण उत्तर प्रदेश में इसको भड़भांड़ या भड़भड़वा भी कहते है। अवध क्षेत्र में इसे कुटकुटारा कहते है। इस वनस्पति के तने, पत्ते, फल, और फूल यानि सारे अंगों पर कांटे होते है।

इसके बीज जहरीले होते हैं। सरसों में इसे मिला देने से और उसके तेल का उपयोग करने वालों की मौत भी हो जाती है। इसके बीज मिली हुई सरसों के तेल के प्रयोग करने वालो को पेट की झिल्ली (पेरिटोनियम) में पानी भरने का एक रोग एपिडेमिक ड्रॉप्सी भी हो जाता है।

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता हैं।)

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