क्यों कसमसा रहा है जुहापुरा ?

बसंत रावत

अहमदाबाद।जुहापुरा अहमदाबाद शहर का मशहूर, बहुचर्चित और चिरपर्चित अल्पसंख्यक लोगों की क़रीब पांच लाख की आबादी वाली बस्ती नाम है जिसे, न सिर्फ़ भारत का बल्कि, समूचे एशिया का सबसे बड़ा मुस्लिम घेट्टो कहलाने का गौरव प्राप्त है।

हालांकि  इस बस्ती में रहने वाले जानते हैं कि अपने को जुहापुरा का रहवासी कहलाने में गर्व करने जैसी कोई बात नहीं है। उपेक्षा और बदहाली, यहां पसरी गंदगी, सब तरफ़ मौजूद कूड़े के ढेर जैसे सबको सौग़ात में मिली है। इसे जुहापुरा में रहने की सज़ा कहो या ईनाम।

पिछले तीन सालों से यह शहर, जिसे अहमद शाह ने 600 साल पहले बसाया था, ख़ुद को स्मार्ट सिटी कहलाने का नगाड़ा तो बजा ही रहा था, अब तो वर्ल्ड हेरिटिज सिटी का ख़िताब पाकर विश्व के मानचित्र पर इतराने भी लगा है। पर इसमें जुहापुरा कहीं नहीं है। जुहापुरा आज भी बुनियादी नागरिक सुविधाओं के लिए तरशता एक बहिष्कृत सी जगह, एक अनचाही औलाद  बन कर रह गया है। बहुत हद तक  मुस्लिम कम्यूनिटी का लुंज-पुंज नेतृत्व इसके लिए ज़िम्मेदार है।

पिछले 15 सालों में पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, आज के प्रधान सेवक के राजनीतिक उत्कर्ष के साथ अहमदाबाद के साथ-साथ जुहापुरा ने भी कई सुर्ख़ियां बटोरी। ज़्यादातर गलत वजहों से। ऐसा कभी जुहापुरा को पाकिस्तान से जोड़ कर किया गया। तो कभी-कभी प्रायोजित ख़बरें चला कर।

इन ख़बरों के शोरगुल के बीच जुहापुरा हमेशा की तरह आज भी एक लगातार अन्फ़ोल्डिंग, डिवेलपिंग स्टोरी जैसा है। जहां कभी कुछ नहीं बदला। बस्ती बढ़ने के सिवा यहां सब कुछ थम सा गया। गैर मुस्लिम की नज़र में जुहापुरा एक डाउन मार्केट इलाक़े का नाम है जो अहमदाबाद का हिस्सा ही नहीं है।

इस अर्थ में जुहापुरा हमेशा चलने वाले एक गॉसिप का ही दूसरा नाम है। या यूं कहिए नाम के लिए ही बदनाम है। ऐसे में अगर कोई अति उत्साही, राष्ट्रवादी देशभक्त जुहापुरा को “मिनी पाकिस्तान” कहे तो  इसमें हैरान होने की कोई बात नहीं। इस तरह की प्रतिक्रिया आना लाजिमी है।

लेकिन अब चीजें उसी तरह से नहीं रहेंगी। जुहापुरा में सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। क्योंकि यहां के कर्मशील जूझारू युवाओं को पता लग गया है कि उनका अपना जुहापुरा स्मार्ट सिटी का एक सौतेला बेटा बन कर रह गया। नाराज़गी तो होनी ही थी। ये अब और भी बढ़ती जा रही है। और एक आंदोलन का शक्ल ले रही है।बुनियादी सुविधाओं के लिए जन आंदोलन।

इसीलिए इन दिनों जुहापुरा में एक तरह का घमासान मचा है जब से ‘हमारी आवाज़’ नामक एक स्थानीय सामाजिक संस्था ने यहां ‘पानी आंदोलन’ शुरू किया है। बढ़ती लोक भागीदारी, खासकर महिलाओं के जन समर्थन ने कोरपोरेटरों की नींद गायब कर दी है। और वो अपनी इस बौखलाहट छुपा भी नहीं पा रहे हैं। वे खीझे हुए हैं। अनाप-शनाप वीडियो बना कर अपलोड कर रहे हैं और गालियां दे रहे हैं। अंजाम की परवाह किय बिना, गाली देने की अपनी विलक्षण कला का भव्य प्रदर्शन कर रहे हैं।

जुहापुरा के अंदर सबसे बेहाल 40000 आबादी वाली बस्ती फ़तेहवाड़ी है, जहां पानी की सबसे ज़्यादा क़िल्लत है, वहां के  चारों कांउसिलर हमारी आवाज़ के कन्वेनर कौशर अली सैयद को सोशल मीडिया में गाली गलौज कर धमाका रहे हैं। सचमुच अजीबोगरीब है। जिस मुद्दे का उनको समर्थन करना चाहिए था, वे सब सड़क छाप भाषा में अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।

दुखद बात ये है कि वे सब भाजपा शाषित अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन की ही तरह शर्मिंदा नही हैं पिछले 12 सालों में पीने का पानी उपलब्ध नहीं करा सकेने के लिए। यहां के ग़रीब मुसलमान, ज़्यादातर मज़दूर वर्ग के लोग, 1200 टीडीएस वाला ग्राउंड वाटर पीने के लिए मज़बूर हैं। जो खुलेआम बीमारियों को निमंत्रण देने के लिए जाना जाता है।  

ज़ाहिर है बाकी सिविक सुविधाओं का भी पानी जैसा हाल है। स्कूल, अस्पताल, रोड की सुविधाओं के लिए इन लोगों को शायद पाकिस्तान सरकार के पास आवेदन देना पड़ेगा।

अब ज़रूर कुछ हलचल तेज़ हुई है। ख़ासकर जब 27 अक्तूबर से जुहापुरा के फ़तेहवाड़ी इलाक़े में हमारी आवाज़ ने पानी आन्दोलन का शंखनाद किया-  म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में चहल-पहल तेज़ हो गयी है। पानी आन्दोलन में शिरकत करने के लिए मशहूर मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता संदीप पांडेय और पूर्व विधायक सबीर काबिली मौजूद थे। भारी संख्या में मौजूद महिलाओं का जोश देखने लायक था।

ये अभी शुरुआत भर है। अभी अंगड़ाई भर  ली है यहां के लोगों ने अपने जन अधिकारों के लिए। जुहापुरा से- जो कि गुजरात की मुस्लिम राजनीति का एक नया केंद्र बनने जा रहा है।

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