अकेले किन्नर ने झुका दी पूरी सरकार!

पल्लवी चक्रवर्ती कोलकाता में किन्नरों के संघर्ष की एक प्रतीक बन गई हैं। कोलकाता पुलिस में दरोगा के पद पर उनकी नियुक्ति हो पाएगी या नहीं यह तो नहीं मालूम पर इस प्रक्रिया में किन्नरों को भी शामिल करने में उन्हें सफलता मिली है। राज्य सरकार ने परीक्षा के आवेदन पत्र के मजमून को बदला है। अब उसमें पुरुष और महिला के साथ ही थर्ड जेंडर का कॉलम भी होगा।

पल्लवी की इस संघर्ष की झंडाबरदार एडवोकेट जवेरिया शब्बाह बताती हैं कि कोलकाता पुलिस में दरोगा पद पर भर्ती के लिए होने वाले इम्तहान का एक विज्ञापन निकला था। पल्लवी ने इस परीक्षा में बैठने का मन बना लिया, लेकिन जब उसने आवेदन पत्र डाउनलोड किया तो उसमें सिर्फ दो ही कॉलम थे एक पुरुष और दूसरा महिला। लिहाजा वह आवेदन पत्र नहीं पा रही थीं। एडवोकेट जोवेरिया शब्बाह ने उनकी तरफ से हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी। एडवोकेट शब्बाह ने 2014 के ट्रांसजेंडर कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए पुरजोर बहस की। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की तरफ से बहस कर रहे एडवोकेट से कहा कि इस मामले में राज्य सरकार का नजरिया पेश करें।

अगली तारीख को राज्य सरकार के एडवोकेट ने हाई कोर्ट को जानकारी दी कि राज्य सरकार आवेदन पत्र के प्रारूप में पुरुष और महिला के साथ ही ट्रांसजेंडर कॉलम रखने के लिए तैयार हो गई है। इसके बाद जस्टिस अरिंदम मुखर्जी ने कहा कि पिटीशनर की समस्या का निदान हो गया है इसलिए इस मामले का निपटारा किया जाता है। अब पल्लवी दरोगा बने या ना बने उसने एक खिड़की को तो खोल ही दिया है। पल्लवी बताती हैं कि वह कोलकाता पुलिस में सिविक पुलिस का काम करती हैं। जब दरोगा पद के लिए विज्ञापन निकला उन्होंने भी दरोगा के लिए आवेदन करने का मन बना लिया। वह कहती हैं कि वह स्नातक हैं और जब शैक्षिक योग्यता है तो फिर भला क्यों नहीं आवेदन करेंगी। पर मुश्किल जेंडर को लेकर था और इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

एडवोकेट जोवेरिया शब्बाह बताती हैं कि पल्लवी का लड़ने का यह जज्बा उन्हें भा गया और उन्होंने उस के पक्ष में मुकदमा करने का फैसला ले लिया। एडवोकेट शब्बाह कहती हैं उन्होंने इसके लिए कोई फीस नहीं ली। मुकदमा जम कर लड़ा और राज्य सरकार ने हाईकोर्ट से कह दिया उन्होंने आवेदन फार्म में तीसरा जेंडर का कॉलम रखने का फैसला ले लिया है। इस तरह हाई कोर्ट की राय उनके पक्ष में आ गई और आगे की राह खुल गई।

यहां अगर मानवी बंद्योपाध्याय का जिक्र ना करें किन्नरों के लिए संघर्ष के मामले में पल्लवी की कहानी अधूरी रह  जाएगी। मानवी भी एक किन्नर हैं और कृष्णानगर वीमेंस कॉलेज में प्रिंसिपल हैं। उन्हें भी इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था, अब यह बात दीगर है कि उन्हें लिंग भेद की समस्या से नहीं जूझना पड़ा था। पल्लवी का थर्ड जेंडर कॉलम के लिए संघर्ष की यह कहानी भगवान राम से जुड़ी यह गाथा की याद दिला देती है। भगवान राम जब वनवास पर जा रहे थे तो अयोध्यावासी उन्हें विदा करने आए थे। उनमें किन्नर भी शामिल थे। भगवान राम ने जाते समय पुरुषों और महिलाओं से कहा था वे अपने घर लौट जाएं। भगवान राम जब वन से लौट कर आए तो उन्हें किन्नर वहीं खड़े मिले। भगवान राम ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि आपने तो पुरुषों और महिलाओं से लौट जाने को कहा था हमें तो नहीं कहा था।

आज तक भगवान राम ने किन्नरों की इस तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे जिसे भी दुआ देंगे वह फलेगा फूलेगा। भगवान राम ने किन्नरों को दुआ देने की ताकत दी तो पल्लवी और  शब्बाह ने किन्नरों को कोलकाता पुलिस में स्थान पाने की एक राह आसान कर दी। त्रेता युग में भी किन्नरों का जिक्र आता है पर उस समय उन्हें हिकारत की निगाह से नहीं बल्कि सम्मान के साथ देखा जाता था। उन्हें विवाह या जन्म जैसे समारोह में आमंत्रित किया जाता था। वैदिक युग में उन्हें तृतीय लिंग कहा जाता था। आज तक जब अंग्रेजों की सत्ता आई उन्होंने किन्नरों को आपराधिक समूह के दर्जे में डाल दिया। इसके बाद से उनकी सामाजिक स्थिति की अवनति होती गई। देश आजाद होने के बाद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। आज के दौर में उनके पास जीने का बस एक ही साधन है।

ट्रेनों, बसों या सड़क पर लोगों के सर पर हाथ फेरते हुए दुआ देते हैं और पैसे मांगते हैं। बद्दुआ का खौफ कुछ लोगों को पैसे देने के लिए मजबूर करता है पर यह उनकी समस्या का हल नहीं है। किन्नर के रूप में जन्म लेने के लिए वे कसूरवार तो नहीं हैं। इस देश की डेढ़ सौ करोड़ की आबादी में कुछ करोड़ के किन्नर होंगे ही, क्या उन्हें इस हाल पर ही छोड़ दिया जाए। क्या उनके कल्याण के लिए कोई योजना नहीं बनाई जा सकती है। यह अधिकार तो सरकार के पास है। लिहाजा इसका जवाब भी सरकार के पास है। कानून तो है पर इससे क्या फर्क पड़ता है। इससे उनकी तकदीर नहीं बदलती है इसके लिए लोगों को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी।

(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

जेके सिंह
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