ग्राउंड रिपोर्ट: बस्तर में 9 साल में बनी 23 किमी सड़क, दो दिन की दूरी दो घंटे में हो रही पूरी

दंतेवाड़ा। बस्तर के अंदरूनी इलाकों में सड़क निर्माण का कार्य लगातार चल रहा है। इसी क्रम में बस्तर संभाग के तीन जिलों को जोड़ने वाले जगरगुंडा गांव में सड़क मार्ग का काम लगभग पूरा हो गया है। जिसकी वजह से जिला मुख्यालय की दूरी कम हो गई है। इस रास्ते के बनने से दूर दराज में रहने वाले आदिवासी ग्रामीणों को खासी सुविधा प्राप्त हुई है। पहले यह दूरी दो दिनों में तय होती थी अब सड़क बनने के बाद इसे दो घंटे में तय किया जा सकता है। पहाड़ी को काटकर यह सड़क बनाई गई है जिससे दूरी कम हो गई है।

केशकाल घाटी की तर्ज पर ही जगरगुंडा के रास्ते में पड़ने वाली घाटी में पहाड़ी पर सड़क मार्ग का निर्माण किया गया है। दंतेवाडा से जगरगुंडा की दूरी 75 किलोमीटर के आसपास है। जिसमें आखिरी के 23 किलोमीटर की सड़क पर 18 किलोमीटर का निर्माण हो चुका है। जबकि पांच किलोमीटर का निर्माण कमारगुंडा से जगरगुंडा तक बाकी है। जिसमें छह पुलों का निर्माण होना भी शामिल है। यहां फिलहाल मोरम डालने का काम हुआ है। जिसे अगले साल के मार्च-अप्रैल तक खत्म करने का सरकार का प्लॉन है।

जनचौक की टीम इस नए सड़क मार्ग का जायजा लेने के लिए गई। हम जगदलपुर से पहले लगभग 70 किलोमीटर दूर गीदम गए और वहां से बाइक से दंतेवाड़ा, नकुलनार, अरनपुर होते हुए जगरगुंडा गांव गए। जिसको पार करने के लिए पुलिस कैंप में एंट्री करवानी पड़ती है।

अरनपुर में अब भी दिखता है ब्लास्ट के बाद का दृश्य

मेरे साथ अऩ्य पत्रकार भी थे। प्रकृति के सुंदर नजारे के बीच जगरगुंडा तक पहुंचने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दरअसल जिस दिन हम गए थे उस दिन बस्तर के कई इलाकों में बारिश हो रही थी। पिछले एक साल में अरनपुर से आगे की तरफ निर्माण किया गया है। जिसमें घाटी की पहाड़ी भी शामिल है। बस्तर के कई हिस्सों में सड़क की हालत बहुत ही खस्ता है। ऐसे में यहां सड़क का निर्माण एक सकरात्मक पहलू है। इस यात्रा के दौरान कई चीजों ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींचा।

इसी साल अप्रैल में नक्सलियों द्वारा अरनपुर में किए गए ब्लास्ट की तस्वीरें इस रास्ते से जाते वक्त ताजा हो गईं। जहां नक्सलियों ने ब्लास्ट किया था, वहां की सड़क अलग सी नई दिखाई देती हैं। दूसरा वहां की मिट्टी अभी भी खुदी हुई है। लाल मिट्टी के बीच ब्लास्ट की जगह एकदम ताजा है। अरनपुर से आगे जाते ही सुदंर सी घाटी दिखाई देती है। इसी घाटी को पार कर ग्रामीण दो दिनों तक सफर करते हुए दंतेवाड़ा पहुचते थे।  

इसी घाटी पर एक पुलिस कैंप बनाया गया है। जहां से आते-जाते लोगों पर निगरानी रखी जाती है। यह पहाड़ी का सबसे ऊपरी हिस्सा है। यहां से पहाड़ी की ढलान शुरू होती है जो नीचे की ओर जाती है। जिस वक्त हम वहां पहुंचे थे घाटी में बहुत तेज बारिश हो रही थी। जिस बस्तर की खूबसूरती को हमलोग सोशल मीडिया में देखते हैं। वैसा ही कुछ नजारा वहां था। जहां नीचे तेज बारिश की आवाज और आसमान में ऊपर काले घने बादल सुकून दे रहे थे।

पहाड़ी को काटकर बनाई गई सड़क

बारिश बंद होने के बाद हमलोग जगरगुंडा के लिए निकले। पहाड़ी पर बारिश के दौरान हमें जगरगुंडा में काम करने वाले दो सरकारी कर्मचारी मिले। उन्होंने हमें बताया कि यहां से जगरगुंडा की दूरी 15 किलोमीटर है। हम उसी सड़क पर थे जिसका निर्माण पिछले एक साल में हुआ था। सड़क के दोनों तरफ कहीं जंगल था तो कहीं खेत। कही-कहीं जंगल के रास्ते में दोनों तरफ के पेड़ों को काटकर मोरम डाला गया था।

इससे पहले नई बनी पक्की सड़क के किनारे कई गांव भी हैं। पहाड़ी से नीचे उतरने के बाद सड़क किनारे कोंडासंवाली गांव दिखाई दिया। इसी गांव के बाहर हमें एक झोपड़ी में बुजुर्ग मिले, वे महुआ बेचते हैं। उनके पास कुछ बकरियां और गाय-बैल थे।

हमने उनसे पूछा कि सड़क बन जाने से कैसा लग रहा है? उनका बड़ा ही सरल सा जवाब था “सड़क बन गई है हमलोग बस इस बात से खुश हैं कि हमतक यह सुविधा पहुंची है”। इसी दौरान साइकिल चलाता एक युवक अपनी धुन में आ रहा था। हमने उसे रोककर बात की। उसने बताया कि उसका नाम सिंदा हड़मा है और इसी गांव के स्कूल पारा का रहने वाला है।

हमने उससे पूछा कहां से आ रहे हैं? उसने कहा “धान कटाई का सीजन है खेत से आ रहा हूं”। सड़क बनने के बारे जब उससे पूछा तो उसने कहा कि “हां मैं खुश हूं”। सिंदा हड़मा की पत्नी भी खेतों में काम करती हैं। दो बेटियां हैं जो बहुत छोटी हैं और फिलहाल स्कूल नहीं जातीं। उसके गांव में 67 घर हैं।

हमने सिंदा से गांव में आधारभूत सुविधा के बारे में जानने की कोशिश की। सड़क बनने से क्या अन्य सुविधाएं भी आदिवासियों तक पहुंच रही हैं कि नहीं? उन्होंने बताया कि “फिलहाल यहां अस्पताल तो बना है लेकिन डॉक्टर नहीं है। आंगनवाड़ी स्कूल कुछ समय पहले ही खुला है।” पानी के बारे पूछने पर बताया कि “गांव में हैंडपंप लगा हुआ है। बाकी बिजली के लिए गांव में पोल लगा दिए गए हैं लेकिन बिजली अभी नहीं आई है। मेरे घर में तो सोलर लाइट लगा हुआ है”।

इसके बाद हम जगरगुंडा की तरफ बढ़े। रास्ते में कुछ लोग नदी से मछली पकड़कर ला रहे थे। हमने उनसे सड़क के बारे में बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन सब नशे में लग रहे थे। आगे बढ़ते हुए लगभग एक साल पहले बनी सड़क कई जगह पर टूटी हुई नजर आई।

धान बेचने में हो रही सुविधा

सड़क के किनारे ऊंगा अपने परिवार के साथ खेत में काम कर रहे थे। हमने पूछा सड़क बनने से आपके जीवन में कोई बदलाव आया है क्या? उनका जवाब था बाजार हाट जाने में सुविधा होती है। वह इस बात से खुश थे कि अब धान बेचने जाने के लिए उन्हें दिक्कत नहीं होती है। धान को बेचने के लिए मंडी के अलावा हाट-बाजार जाना आसान हो गया है।

यहां से थोड़ा आगे बढ़ने पर मुमरीकरण वाली सड़क की शुरुआत होती है। यह रास्ता लगभग पांच किलोमीटर का है। जगरगुंडा पहुंचते ही पुलिस कैंप पर हमें रोक लिया जाता है। यहां कैंप के पास सड़कें बनाने वाली मशीनें खड़ी थी।

दूसरी तरफ जाने के लिए हमें पुलिस कैंप का यह गेट पार करना था। यहां से आगे जाने के लिए प्रत्येक शख्स को इस गेट में एंट्री करानी पड़ती है। बिना गेट पार किए आप आगे नहीं जा सकते हैं।

अन्य लोगों की तरह हमें भी यहां रोका गया। पूरा ब्योरा लिया गया और फिर हमें आगे जाने दिया। गेट पार करते ही जगरगुंडा गांव शुरू हो जाता है।

व्यापारियों के लिए सामान लाना ले जाना हुआ आसान

यहां पर कुछ घर पक्के और कुछ कच्चे थे। रौशन गुप्ता की किराने की दुकान है। किसी जमाने में यह गांव नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। रौशन ने छह साल पहले ही अपनी दुकान खोली है। अपने छह साल के अनुभव के बारे में वह बताते हैं कि “पहले दोरनापाल से सामान मंगवाते थे। लेकिन जब से यह सड़क बनी है तो सीधा दंतेवाड़ा से सामान मांगा रहा हूं। चूंकि पहले जिले से सामान मंगवाने की कोई सुविधा नहीं थी इसलिए दिक्कत होती थी। अब सड़क बन गई है तो यहां तक सीधा सामान आ-जा रहा है।”

60 फीसदी हो चुका है काम

नक्सल प्रभावित इलाके में बनी इस सड़क पर हमने बस्तर के आईजी सुदंरराज पी से बातचीत की। उन्होंने बताया कि फिलहाल सड़क का 60 फीसदी काम पूरा हो चुका है। उम्मीद है कि अगले साल मार्च-अप्रैल तक पूरा हो जाएगा। सड़क का काम 2014 में शुरू हुआ था।

लगभग नौ साल बाद तक भी काम पूरा नहीं होने पर आईजी का कहना है कि यह सारा क्षेत्र नक्सल प्रभावित है। जिसके कारण सड़क बनाने में कई तरह की परेशानियां हुई हैं। सड़क निर्माण का तरह-तरह से विरोध किया गया है। आईईडी ब्लास्ट हुए हैं। यह कोई सामान्य सड़क नहीं है, जैसा कि बाकी के शहरों में काम शुरू होता है और सड़क बन जाती है।

इस सड़क को बनाने के लिए कई जवानों और नागरिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी है। सुंदरराज पी के अनुसार साल 2017 में बुरकपाल में 25 जवान और तालमेटला में 76 जवानों की शहादत हुई है।

फिलहाल इस सड़क पर दंतेवाडा से एक बस और दोरनापाल से एक बस जगरगुंडा की तरफ आती है। सड़क बन गई है। लेकिन ट्रांसपोर्ट की कोई खास सुविधा नहीं है। आज भी हाट बाजार के लिए ट्रैव्हलर पर लोग लटक कर जाते हैं। सड़क पर हाट से आते हुए कई लोग मुझे इसी अवस्था में दिखे। जिसमें महिलाएं भी थी। जो बिना डरे ट्रैव्हलर पर लटक कर जा रही थीं।

हमने ट्रांसपोर्ट को लेकर आईजी से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि पहले बसें चलती थीं। लेकिन जला दी गईं। फिलहाल सड़क बनी है। दो बसें चल रही हैं। उम्मीद है आने वाले समय में और बसों को भी जनता की सुविधा को देखते हुए चलाया जाएगा।

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि सड़क निर्माण से आम आदिवासी जनता को बाहर की दुनिया से जोड़ा जा रहा है। ताकि उनकी आनी वाली पीढ़ी स्कूल जा सकें। बिजली, पानी, फोन की सुविधा लोगों तक पहुंच पाए।

चार फेज में बनी सड़क

आपको बता दें कि जगरगुंडा में जहां तक सड़क बन रही है, वो कभी नक्सली कमांडर हिड़मा का क्षेत्र हुआ करता था। इसे ‘नक्सलियों की पहाड़ी’ कहा जाता था। यहां नक्सलियों की हुकूमत रही थी। अब सड़क बनाने के लिए पांच पुलिस कैंप बिठाए गए हैं। इसके साथ ही निर्माण के दौरान 200 से ज्यादा आईईडी रिकवर की गई हैं।

इस सड़क का चार फेज में निर्माण होना है। निर्माण कार्य साल 2014 से शुरू हुआ जो 2024 तक खत्म होगा।

(जनचौक की संवाददाता पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)

पूनम मसीह

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