7 अप्रैल के पश्मीना मार्च को रोकने के लिए प्रशासन ने लद्दाख में लगाया धारा 144

3 फरवरी, 2024 को लद्दाख उस समय सुर्खियों में आ गया जब कारगिल और लद्दाख में हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए और अपनी मांगों के लिए आवाज बुलंद की। बीते साल से ही कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) और एपक्स बाडी लेह (ABL) पूर्ण राज्य की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं।

बीते कई महीनों से लद्दाख और कारगिल की जनता शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से पूर्ण राज्य का दर्जा देने, संविधान की छठवीं अनुसूची लागू करवाने और अलग से सर्विस कमीशन लागू करने की मांग को लेकर संघर्ष कर रही है। हाल ही में वैज्ञानिक और पर्यावरणविद सोनम वांगचुक सहित सैकड़ों लद्दाखी जनता ने भूख हड़ताल समाप्त की थी और लद्दाखी महिलाओं ने उसके बाद भूख हड़ताल जारी रखी है। 

लेकिन लद्दाख संघ शासित प्रदेश प्रशासन के जिला मजिस्ट्रेट लेह द्वारा 5 अप्रैल 2024 को एक आदेश जारी कर धारा 144 लागू कर दी गयी है। इसके लिए बहाना बनाया जा रहा है कि जिले में मानव जीवन को खतरा है और सार्वजनिक शांति भंग होने की सूचनाएं मिल रही हैं।

इस आदेश के तहत बिना जिला मजिस्ट्रेट लेह की पूर्व अनुमति के किसी भी तरह के जलसे, जुलूस, रैली और मार्च आदि पर रोक लगा दी गयी है। इतना ही नहीं कोई न कोई बहाना बना कर किसी भी तरह से लोगों के एकत्रित होने, किसी तरह की स्टेटमेंट तक देने की मनाही की जा रही है। हो सकता है कल को इंटरनेट बैन कर के पूरे इलाके को ही देश से अलग-थलग कर लोगों पर मनमानी ज्यादतियां की जाएं। 

आखिर मामला क्या है और मांगें क्या हैं? 

केंद्र सरकार द्वारा लाखों की संख्या में सेना, अर्ध सैनिक बलों का इस्तेमाल करते हुए, जनता की आकंक्षाओं के विरुद्ध जम्मू और कश्मीर से 2019 में धारा 370 और 35ए को हटा कर वहां की जनता के अधिकारों को कुचल दिया गया। भारतीय संविधान में मौजूद इन धाराओं की वजह से जम्मू-कश्मीर के कारगिल और लद्दाख में बसी आदिवासी जनता के अधिकार भी संरक्षित रहे थे। जब धारा 370 और 35ए के हटाने के बुरे नतीजे आने शुरू हुए तो कारगिल व लद्दाख की जनता को समझ आ गया कि सरकार द्वारा लिया गया वह निर्णय उसके जल-जंगल-जमीन, भाषा, विलुप्त होते वन्य प्राणियों, आबो-हवा के लिए सही नहीं है।

पहले कारगिल और लद्दाखी जनता ने अलग-अलग आवाज उठाई लेकिन अब दोनों क्षेत्रों की जनता ने मिलकर संघर्ष का आगाज किया है। हजारों की संख्या में दोनों इलाकों की जनता धरने-प्रदर्शन कर रही है और संघर्ष का सबसे शांतिपूर्ण तरीका भूख हड़ताल कर रही है। केंद्र सरकार के गृहमंत्रालय के साथ हुई वार्ता से कोई सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने नहीं आए हैं। 

कारगिल और लद्दाख को पूर्ण राज्य बनाना क्यों जरूरी है?

जम्मू और कश्मीर जब पूर्ण राज्य था तो उस समय विधानसभा में कारगिल-लद्दाख से 4 विधायक और 2 विधान परिषद के सदस्य चुने जाते थे। जनता अपने नुमाइंदे चुन कर भेजती थी। लेकिन रिआर्गेनाइजेशन एक्ट 2019 के तहत इस क्षेत्र को यूनियन टेरिटरी (यूटी) का दर्जा दे दिया गया। पूर्ण राज्य न होने के चलते हर छोटे-बड़े काम के लिए केंद्र सरकार की तरफ देखना पड़ता है।

अगर यहां विधानसभा होगी और राज्य का पूरा प्रशासन होगा तो वह अपने क्षेत्र की विशेषताओं, ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सही योजनाएं बना सकता है। केंद्र सरकार की तरफ से लगने वाला प्रशासन, नौकरशाही, सैन्य अधिकारी यहां की जनजातियां, आदिवासी परंपराओं के अनुकूल सही निर्णय नहीं ले सकते। 

कारगिल-लद्दाख को अगर पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाता है तो वहां के लिए अलग सर्विस कमीशन का गठन भी होगा जिससे वहां के पढ़े-लिखे बेरोजगार नौजवानों को नौकरियां मिल पाएंगी और उनके जीवन स्तर में सुधार होगा। 

छठीं अनुसूची की लद्दाख और कारगिल को जरूरत 

भौगोलिक रूप से कारगिल और लद्दाख क्षेत्र बहुत ही संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा है। वह हिमालय की सबसे कठिन जलवायु परिस्थितियों वाला इलाका है। ऐतिहासिक रूप से वहां पर बसे लोगों की सामाजिक-आर्थिक, कृषि, संस्कृति, भाषा, रहन-सहन, रीति-रिवाज अपने ही हिसाब से विकसित हुए हैं। बाहरी आक्रमणकारियों से बचते हुए उन्होंने अपने पर्यावरण के अनुकूल अपनी जीवन परिस्थितियों को ढाला है। उन्होंने भारत की ऐतिहासिक विशेषता यानी विविधता को बचा कर रखा है।

प्रकृति पूजक आदिवासी जनता को भारतीय संविधान ने पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत खुद की संस्कृति, रीति-रिवाज, भाषा, रहन-सहन, पूजा पद्धति, मेले-त्यौहार, वेश-भूषा आदि के संरक्षण का अधिकार दिया है। उनके पारंपरिक शासन को मान्यता प्रदान की गयी है। उन पर देश के बाकी हिस्सों की तरह केंद्र या राज्य द्वारा बनाए गये कानून सीधे-सीधे उनकी सहमति के बिना नहीं लागू किये जा सकते। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रावधान उक्त सूचियों में है। 

कारगिल और लद्दाख न केवल भौगोलिक रूप से अति दुर्गम और पिछड़े क्षेत्र हैं बल्कि जनजातीय हिसाब से भी छठी अनुसूची लागू करने की तमाम योग्यताएं रखते हैं। वहां की 97 प्रतिशत आबादी जनजातीय आबादी है जिसमें मुस्लिम धर्म और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग दोनों शामिल हैं। इस लिए उनकी यह मांग बिल्कुल जायज है।

पर्यावरण का विनाश करने वाली परियोजनाएं रद्द होनी चाहिए

पूरे हिमालय का पारिस्थितिक तंत्र बहुत की कमजोर और संवेदनशील है। बढ़ते वैश्विक तापमान और सरकारों द्वारा बनाई गयी अवैज्ञानिक और मुनाफाखोर नीतियों के कारण हिमालय आपदाओं का गढ़ बनता जा रहा है। सिक्किम से लेकर जम्मू तक पूरे हिमाचल में भूस्खलन, बाढ़, बादल फटना, ग्लेशियर फटना डरावनी सच्चाई बन चुके हैं। इससे न केवल पर्यावरण का नुकसान हो रहा है बल्कि जनता के आर्थिक संसाधन भी नष्ट हो रहे हैं। इसका सबसे अधिक बुरा असर यहां के बेजमीन दलितों और महिलाओं पर होता है।

हजारों की संख्या में इन आपदाओं में लोग मारे जा चुके हैं, कई शहर धसते जा रहे हैं, हजारों घर उजड़े हैं। इन सबके पीछे यहां पर लगने वाले हाइड्रो प्रोजेक्टस, बड़े बांध, अवैध खनन, डंपिंग साइट्स, फोर-लेन रोड, रेल लाइन, सुरंगें, अंधाधुंध ट्रैफिक और पर्यटन, प्लास्टिक कचरा, केमिकल्स की वजह से बढ़ती टाक्सिसिटी आदि जिम्मेदार हैं। कारगिल और लद्दाख में कई ट्रांसमिशन लाइन, हाइड्रो और सोलर पावर प्लांट प्रस्तावित हैं, रेल और रोड प्रस्तावित हैं। यूरेनियम, लिथियम जैसे खनिजों के लिए खनन होगा। इस सब से हिमालय और लद्दाख बर्बाद हो जाएगा। 

भाजपा की वादाखिलाफी 

कारगिल और लद्दाख की जनता जिन मांगों के लिए इतना बड़ा संघर्ष करने के लिए मजबूर है दरअसल इन सब का वादा अक्तूबर 2020 में खुद भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में किया था। इसमें छठी अनुसूची लागू करने की बात भी थी, भोटी भाषा को 8वीं अनुसूची में डालने की बात भी थी और चीन के साथ चानगठान के जरिए व्यापार को कानून रूप देने की घोषणा भी की गयी थी। लेकिन चुनाव के बाद वह अपने वादों से खुद मुकर गयी। 

हमने देश की सुरक्षा में अपना सब कुछ सौंप दिया – जब सरकार को देने की बारी आई तो वह पीठ दिखा रही है – सज्जाद कारगिली 

कारगिल डेमोक्रेटिक एलयांस और एपेक्स बॉडी लेह पिछले साल से ही इन मांगों को लेकर सड़कों पर हैं। कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के सज्जाद हुसैन कारगिली ने यूथ फॉर हिमालय द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता में बोलते हुए कहा था कि दशकों से हम बार्डर पर अपने देश की सुरक्षा में जी-जान लगाए हुए हैं, हमने देश के लिए सब कुछ दे दिया लेकिन जब हमें कुछ देने की बारी आ रही है तो केंद्र सरकार अपनी पीठ दिखा रही है। कारगिल और लद्दाख की 97 प्रतिशत आबादी आदिवासी आबादी है।

पिछले चार सालों से एक भी गजटेड पोस्ट लद्दाखियों को नहीं मिली है। चार साल से भर्तियां बंद पड़ी हैं। पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार हो गए हैं। धर्म के नाम पर भी हमें लड़ाने की कोशिश की गयी। लद्दाख और कारगिल में बुद्धिस्ट और सिया मुस्लिम आबादी है, हमें देश की राजनीति में बहुत कम प्रतिनिधित्व मिला है।

अगर हमें पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जाता, छठी अनुसूची लागू नहीं की जाती तो हमारा तो अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि केंद्र सरकार के गृहमंत्रालय के साथ कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस और एपेक्स बॉडी लेह की वार्ता हुई थी लेकिन यह विफल रही। केंद्र सरकार ने उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होंने देश के लोगों से लद्दाख के आंदोलन का समर्थन करने की बात कही। 

दिल्ली अपने विकास के नजरिए को लद्दाख पर थोपना चाहती है – आशीष कोठारी

विकल्प संगम से जुड़े और लद्दाख मामलों के विशेषज्ञ आशीष कोठारी ने आंखें खोलने वाले तथ्य पेश करते हुए कहा कि दिल्ली अपने विकास के नजरिए को लद्दाख पर थोपना चाहती है जो वहां के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है। जमीन का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा है। अगर संवैधानिक उपचारों के तहत छठी अनुसूची लागू होती है, जमीन पर अधिकार आदिवासियों का होगा और सरकारों को जमीन अधिग्रहण में बहुत समस्याएं आएंगी। अभी लद्दाख में 20 हजार एकड़ में मेगा सोलर पावर प्लांट प्रस्तावित है, ट्रांसमिशन लाइनें, इलेक्ट्रोनिक व्हिकल, इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनना है, टनल्स, रेलवे, बलास्टिंग, माइनिंग ये दिल्ली के विकास का नजरिया है।

ये नजरिया लद्दाख को बर्बाद कर देगा। उन्होंने आशंका जताई कि अपने विकास के नजरिए के लिए हिमालय को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। उनका मानना था कि चांगथांग देश की सबसे नाजुक, संवेदनशील जमीन है। वह इतनी बड़ी परियोजनाओं को नहीं झेल पाएगी। वहां पर वैकल्पिक विकास की जरूरत है। उन्होंने जानकारी दी कि पिछले साल 5 लाख पर्यटक वहां पर आए। यह चिंता का विषय इसलिए भी है कि यह स्थानीय आबादी से दो गुना संख्या है। इतने संसाधन लद्दाख में नहीं हैं। लोगों का रुझान पर्यटन की तरफ बढ़ रहा है जिस कारण बहुत सारे आधुनिक भवन, होटल, होम स्टे बन रहे हैं जो वहां की जलवायु के अनुकूल नहीं हैं। 

(गगनदीप सिंह पर्यावरण कार्यकर्ता हैं।)

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