जनचौक की रिपोर्ट का असर: 54 आदिम जनजाति परिवारों को मिला 3 महीने का राशन, 5 महीने से नहीं मिला था सरकारी अनाज

पलामू। 10 दिसंबर को ‘जनचौक’ ने झारखंड के पलामू जिला अंतर्गत रामगढ़ प्रखण्ड के बांसडीह पंचायत के पीढ़े गांव पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि, मुख्‍यमंत्री डाकिया योजना के अंतर्गत सरकार की ओर दिया जाने वाले राशन आदिम जनजाति परहिया के 54 परिवारों को विगत पांच महीने से नहीं मिला है। जिसके चलते सभी परहिया परिवारों के समक्ष खाद्य संकट गहरा गया है। सरकारी अनाज न मिलने की वजह से परिवार के सदस्य भोजन में आधी मात्रा से ही गुजारा करने को विवश हैं।

‘जनचौक’ की रिपोर्ट में बताया गया था कि राशन के अभाव में आदिम जनजाति परिवारों से मजदूरी करने योग्य पुरुष 2 से 3 माह पूर्व गांव छोड़कर शहरों में मजदूरी की तलाश में पलायन कर गए हैं। सिर्फ परहिया परिवारों से पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या 90 से अधिक है। गांव में सिर्फ महिलाएं, बुजुर्ग और उनके बच्चे शेष रह गए हैं।

ग्रामीणों की इस समस्या पर ‘जनचौक’ में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद झारखंड का खाद्य एवं आपूर्ति विभाग हरकत में आया और विभाग द्वारा 12 दिसंबर को आनन फानन में करीब 40 लोगों को दो महीने का राशन दिया गया। वहीं 16 दिसंबर को बाकी 40 लोगों को एक महीने का और अन्य बाकी 18 लोगों का तीन महीने का बकाया राशन दिया गया। इसके साथ ही विभाग ने बताया कि जल्द ही बाकी दो महीने का राशन भी दिया जाएगा।

इस बाबत जब ‘जनचौक’ ने पीढ़े गांव की दीप्ती देवी से पूछा कि राशन मिलने से आप कैसा महसूस कर रही हैं? तो दीप्ती ने कहा कि “क्या महसूस करेंगे आधा पेट में, जब तक पूरा पेट नहीं भरेगा। जब पूरा पेट भरेगा तब मन खुश होगा। पता नहीं बाकी का कब मिलेगा।”

अपनी भाषा में दीप्ती ने आगे कहा, “आप लोगों का आभार जो इतना भी मिला, आप लोग प्रयास नहीं करते तो शायद अभी तक बाबू लोग सोये ही रहते।” गांव की किरन और देवंती देवी ने भी ‘जनचौक’ का आभार व्यक्त किया और खुशी जाहिर की।

गांव की 18 महिलाएं, जिन्हें 16 दिसंबर को तीन महीने का राशन मिला, उनमें से कुसुमरी देवी, महेश्वरी देवी और कालवा देवी को पूरा राशन नहीं मिला है। इसको लेकर वो उदास नजर आईं। उनका कहना था कि “जबतक पूरा राशन नहीं मिलता है हम लोग खुश कैसे होंगे। क्या पता हम लोगों को बहलाने के लिए इतना दिया गया है। आगे फिर मिलेगा कि नहीं कहना मुश्किल है।”

गांव की महिलाओं का कहना था कि “अभी तो गेंठी भी नहीं मिलता है कि उसे खाकर पेट भरा जा सके। क्योंकि जंगल में आग लग जाने से उसका ऊपर वाला तना जल गया है जिसके कारण वह कहां है, पता नहीं चल पा रहा है। वहीं जंगल में पहले तरह तरह के कंद-मूल होते थे अब वो भी नदारद होते जा रहे हैं।”

बता दें कि गेठी एक जड़ होता है जिसे जमीन से निकाल कर और पानी में दो से तीन बार उबालकर पकाया जाता है जंगल क्षेत्र में रहने आदिवासी समुदाय के लोग इसके खाकर अपनी भूख मिटाते हैं।

महिलाओं ने कहा कि “दूसरा कोई रोजगार नहीं है जिससे हम अपनी जरूरतें पूरी कर सकें। मनरेगा में भी काम नहीं है। गांव के लोग इसीलिए बाहर काम करने जा रहे हैं, लेकिन वहां भी जितना पैसा मिलता है उससे पूरे परिवार का भरण-पोषण संभव नहीं है। उन लोगों का भी तो अपना खर्चा है।”

बता दें कि झारखंड सरकार द्वारा आदिम जनजातियों के संरक्षण के लिए आदिम जनजाति डाकिया खाद्यान्न योजना को लागू किया गया है। इस योजना के माध्यम से आदिम जनजाति परिवारों को हर महीने 35 किलो चावल मुफ्त दिए जाते हैं।

खाद्य एवं आपूर्ति विभाग से जुड़े अधिकारियों द्वारा इस योजना के तहत जनजाति परिवारों के घर तक अनाज पहुंचाया जाता है। जिसे नियमित देना विभाग की बाध्यता है। लेकिन राज्य के लगभग सभी गांवों के आदिम जनजातियों को यह व्यवस्था नियमित नहीं दी जा रही है।

ग्राउंड रिपोर्ट: पलामू के पीढ़े गांव के 54 आदिम जनजाति परिवारों को अगस्त महीने से नहीं मिला राशन

(विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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