ऐपवा ने नीतीश सरकार से महिलाओं के अधिकारों की गारंटी के साथ उनके पोषण और सुरक्षा की मांग की

पटना। ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव व राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे ने आज बिहार के मुख्यमंत्री को बिहार की महिलाओं की ओर से ईमेल के जरिए एक ज्ञापन भेजा है। ज्ञापन में लाॅक डाउन में महिलाओं पर हमले की घटनाओं में हुई बढ़ोतरी पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। उन्होंने बिहार सरकार से महिलाओं के पोषण, सुरक्षा व उनके अधिकारों की गारंटी की मांग की है। कहा है कि लाॅकडाउन के नाम पर महिला अधिकारों में कटौती को हम सहन नहीं करेंगे।

नेताद्वय ने अपने ज्ञापन में कहा है कि कोरोना महामारी को रोकने के लिए भारत सरकार ने 3 मई तक लाॅकडाउन की अवधि को बढ़ा दिया है। 20 अप्रैल को सीमित गतिविधियों के साथ छूट देने की बात कही गई है, लेकिन व्यवहार मे लाॅकडाउन को और कड़ा कर दिया गया है। लाॅक डाउन के पहले चरण में पूरे देश में महिलाओं पर हमले की घटनाओं में बाढ़ सी आ गई है। बिहार में भी हमले तेज हुए हैं। दूसरी ओर, आशा कर्मियों, रसोइयों व अन्य कामकाजी हिस्से के प्रति सरकार अभी भी उदासीन बनी हुई है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि 3 मई तक के लाॅकडाउन में सरकार महिलाओं के लिए कौन से कदम उठा रही है।

ज्ञापन में आगे नेताओं ने कहा कि विगत 25 दिनों में महिलाओं को तमाम भयावह स्थितियों से गुजरना पड़ा है। बिहार के जहानाबाद में इलाज और एम्बुलेंस के अभाव में एक मां बेबस होकर अपने बच्चे को मरते हुए देखती रही। बिहार के ही गया जिले में पंजाब से लौटी और क्वारंटाइन वार्ड में भर्ती एक टीबी की मरीज महिला का बलात्कार और उसकी मृत्यु (जांच में कोरोना निगेटिव पाई गई) की खबर आई। हम चाहते हैं कि लाॅक डाउन में इस प्रकार की घटनाओं पर रोक लगाने की सरकार व्यवस्था करे। जिससे ऐसी घटनाएं दुबारा न हो सकें। ऐपवा की ओर से हम कहना चाहते हैं कि महामारी से बचाव और महिलाओं व बच्चों का अत्याचार व भुखमरी से बचाव एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं। इसलिए निम्नलिखित मुद्दों पर आपसे कार्रवाई की मांग करते हैं-

1 .यह आश्चर्यजनक है कि केंद्र सरकार ऐसे फैसले ले रही है जो महिलाओं के साथ भेदभाव को स्थापित करते हैं। अखबारों में हम यह पढ़कर हतप्रभ हैं कि केंद्र सरकार ने जून महीने तक के लिए पीएनडीटी एक्ट के प्रावधानों को ढीला कर दिया है जिसे सीधे शब्दों में कहा जाए तो भ्रूण निर्धारण परीक्षण पर लगी रोक को हटा दिया है। इस निर्णय के पीछे लॉक डाउन के दौर में अल्ट्रासाउंड कराने वाली महिलाओं, डाक्टरों, अस्पतालों, प्राइवेट क्लिनिकों का समय बचाने जैसा हास्यास्पद तर्क दिया गया है। हम आप से मांग करते हैं कि किसी भी सूरत में कानून में कोई ढील अपने राज्य में नहीं दी जाए और उसका सख्ती से पालन किया जाए।

2. लॉक डाउन के दौरान महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा से बचाव व राहत के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। हम मांग करते हैं कि हर जिले में 24×7 काम करने वाली हॉट लाइन सेवा मुहैया करायी जाए और जरूरतमंद महिलाओं तक पहुंचने के लिए विशेष टीमें गठित की जाएं। इस कार्य में महिला संगठनों के प्रतिनिधियों की मदद भी ली जा सकती है।

3. केंद्र सरकार व आपकी सरकार का दावा है कि देश में अन्न और दवा की कमी नहीं है फिर लोग भूख से क्यों मर रहे हैं ? यहां तक कि आंगनबाड़ी केन्द्रों से जिन बच्चों, गर्भवती और धात्री माताओं को पोषण आहार मिलता था, आधा अप्रैल बीत जाने के बाद भी अधिकांश जगहों पर उन्हें  पोषाहार नहीं मिला है। कुछ राज्यों में (उदाहरण के लिए बिहार) में सरकार ने आहार के बदले लाभुकों के खाते में राशि देने की बात की है और आंगनवाड़ी सेविकाओं को इनकी सूची बनाने के लिए इनका खाता नं, मोबाइल नंबर, आधार नंबर जमा करने के काम में लगाया गया है।

आंगनवाड़ी केन्द्रों से सबसे बदतर हालत में रहने वाली महिलाओं, बच्चों को पोषाहार मिलता है। तब सरकार कैसे उम्मीद कर रही है कि इनके पास ये सारे नंबर मौजूद होंगे? दूसरे, भोजन और पोषाहार की जरूरत तत्काल होती है। तीसरे इन्हें अन्न के बदले सरकारी दर पर राशि मिलेगी और बाजार से इन्हें महंगा खरीदना पड़ेगा। इसलिए हम मांग करते हैं कि तत्काल पोषाहार का वितरण हो और पहले जितना दिया जाता था उससे दोगुना दिया जाए क्योंकि अभी इनका परिवार इनकी देखभाल के लिए कुछ भी खर्च करने की स्थिति में नहीं है।

4. आशा कार्यकर्ताओं व फैसिलिटेटरों को अविलंब मास्क, साबुन, सैनिटाइजर व अन्य सुरक्षात्मक सामग्रियां मुहैया कराई जाएं।

5. आशाकर्मियों के लिए स्वास्थ्य विभाग के संकल्प संख्या 789 (12) दिनांक 09.08.19 के आलोक में अप्रैल, 19 से देय/बकाया मासिक पारितोषिक (मानदेय) का अविलंब भुगतान किया जाए। उनके अन्य दावों का भी भुगतान किया जाए।

6. राज्य सरकार की घोषणा व निर्णयानुसार अन्य कर्मियों की तरह आशाओं-फैसलिटेटरों को भी एक महीने का अग्रिम प्रोत्साहन व मानदेय राशि प्रदान किया जाए।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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