रामदेव के लिए तोड़े गए शिक्षा बोर्ड के सारे नियम-कायदे

मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 2019 लोकसभा चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट के हाथों में भारतीय शिक्षा बोर्ड की कमान सौंपे जाने के मामले का पर्दाफाश होने के बाद कई गंभीर सवाल उठ खड़े हुये हैं। गौरतलब है कि शिक्षा के “स्वदेशीकरण (indigenisation)” के लिए सीबीएसई की तर्ज पर एक राष्ट्रीय स्कूल बोर्ड स्थापित करने का विचार साल 2015 में रामदेव ने केंद्र की मोदी सरकार के समक्ष रखा था।

जिसे शिक्षा मंत्रालय साल 2016 में ख़ारिज़ भी कर दिया गया था। जैसा कि ज्ञात है रामदेव ने नरेंद्र मोदी सरकार के सामने अपने हरिद्वार स्थित वैदिक शिक्षा अनुसंधान संस्थान (वीईआरआई) के माध्यम से, “महर्षि दयानंद की पुरातन शिक्षा” और आधुनिक शिक्षा के मिश्रण की पेशकश करके शिक्षा का भारतीयकरण करने में मदद करने के लिए एक स्कूल बोर्ड स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था।

तब 13 अप्रैल 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में तत्कालीन स्कूल शिक्षा सचिव एससी खुंटिया ने इस आधार पर प्रस्ताव का विरोध किया था कि एक निजी बोर्ड के लिए राज्य की मंजूरी अन्य लोगों के समान अनुरोधों के लिए दरवाजे खोल देगी। जिसके बाद मंत्रालय ने एमएसआरवीवीपी के तहत “वेद विद्या’ (वैदिक शिक्षा) के लिए अपना स्कूल बोर्ड स्थापित करने की योजना बनाई। हालांकि, इसे जनवरी 2019 में फिर से चर्चा में आने से पहले तक होल्ड पर रखा गया था। जब एमएसआरवीवीपी की तरफ से बैठक कर बोर्ड स्थापित करने की बात कही गयी तो, इसे निजी क्षेत्र को सौंपे जाने पर विचार हुआ।

एक अनुमान है कि अभी पारंपरिक पाठशालाओं में लगभग 10,000 “वेद विद्या” छात्र पढ़ रहे हैं। इसके साथ ही इसमें रामदेव के आचार्यकुलम को संबद्ध करने की संभावना है। आरएसएस द्वारा संचालित विद्या भारती स्कूल और आर्य समाज द्वारा संचालित स्कूलों को भी इस बोर्ड के अंदर लाने की योजना है। क्योंकि यह उन्हें बारहवीं कक्षा तक शिक्षा के अपने मॉडल को बनाए रखने की अनुमति देगा, जिसे सीबीएसई जैसे स्कूल बोर्ड अभी अनुमति नहीं दे रहे हैं।

9 मार्च, 2019 को अनुमोदन के बाद से, बीएसबी को एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया है और हरिद्वार में एक कार्यालय स्थापित किया गया है। इसके बैंक खाते में कॉर्पस फंड और विकास निधि के रूप में 71 करोड़ रुपये की राशि जमा की गई है और बीएसबी के कार्यकारी बोर्ड का भी गठन किया गया है, जिसके अध्यक्ष रामदेव हैं। बोर्ड अब अपने पाठ्यक्रम का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में है।

आपत्ति जताने वाले अधिकारी को हटाकर दूसरे पदाधिकारी से रातों-रात करवायी गयी साइन

बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट द्वारा वैदिक शिक्षा पर एक राष्ट्रीय स्कूल बोर्ड, भारतीय शिक्षा बोर्ड (बीएसबी) की स्थापना की जा सके इसके लिए केंद्र सरकार की तरफ से एक स्वायत्त संस्थान की आपत्तियों को 2019 में खारिज कर दिया गया था। जनवरी 2019 में आयोजित अपनी गवर्निंग काउंसिल की एक बैठक में, एमएसआरवीवीपी की तरफ से एक बोर्ड स्थापित करने की बात की गयी। लेकिन बैठक में उसे बीएसबी के लिए एक निजी प्रायोजक निकाय नियुक्त करने के लिए कहा गया। उस बैठक की अध्यक्षता तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने की थी, जो उस समय एमएसआरवीवीपी के प्रमुख भी थे।

पूरे मामले पर इंडियन एक्सप्रेस की जांच रिपोर्ट के मुताबिक रामदेव को फायदा पहुंचाने के लिए परिषद की बैठक के रिकॉर्ड में एक महत्वपूर्ण एजेंडा को भी सरकार की तरफ बदला गया, ताकि इस पूरी प्रक्रिया को दो महीने में पूरा किया जा सके। जिससे कि 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले मंजूरी मिल जाए।

इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने दावा किया है कि इस प्रक्रिया को रोकने का यह असफल प्रयास शिक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले एक स्वायत्त संगठन उज्जैन स्थित महर्षि संदीपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान (एमएसआरवीवीपी) की ओर से किया गया था। बता दें कि उज्जैन स्थित महर्षि संदीपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान (MSRVVP), शिक्षा मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है, जो “वेद विद्या” को प्रोत्साहित करने और संरक्षित करने का काम करता है।

तत्कालीन एमएसआरवीवीपी के सचिव वी. जद्दीपाल, जो वहां प्रमुख शैक्षणिक और कार्यकारी अधिकारी के रूप में  नियमों और उपनियमों के अनुपालन के लिए जिम्मेदार हैं, ने इसको लेकर बार-बार कानूनी चिंताएं जतायी थी। और सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने शिक्षा मंत्रालय (तब मानव संसाधन विकास मंत्रालय) को तीन बार पत्र लिखकर पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को केंद्र से स्पष्ट आदेश के बिना बीएसबी की स्थापना के लिए अंतिम अनुमोदन पत्र जारी करने की अनिच्छा व्यक्त की थी।

हालांकि, जद्दीपाल की आपत्तियों को नजरअंदाज़ कर दिया गया और मंत्रालय ने एसएमआरवीवीपी के एक अन्य अधिकारी तत्कालीन उपाध्यक्ष रवींद्र अंबादास मुले को 9 मार्च, 2019 को, चुनाव आचार संहिता लागू होने से कुछ घंटे पहले ही पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट के अनुमोदन पत्र पर मोहर लगाने का आदेश दिया था। द इंडियन एक्सप्रेस समूह द्वारा संपर्क किए जाने पर जद्दीपाल ने कोई भी प्रतिक्रिया देने से इन्कार करते हुये कहा कि वे इस मामले पर बोलना नहीं चाहते हैं।

वहीं, तत्कालीन उपाध्यक्ष रवीन्द्र अंबादास मुले ने बताया है कि वह अनुमोदन पत्र जारी करने के लिए अधिकृत थे क्योंकि जद्दीपाल उस दिन पहुंच से बाहर थे। हालांकि जद्दीपाल की आपत्तियों के बारे में जानकारी होने से मुले ने स्पष्ट इनकार कर दिया।

वहीं इसके बाबत अधिक जानकारी के लिये इंडियन एक्सप्रेस द्वारा सूचना और प्रसारण मंत्री जावड़ेकर को भेजे गये सवालों का उन्होंने जवाब देने से मना करते हुये सुझाव दिया है कि सवाल शिक्षा मंत्रालय से पूछे जायें। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट ने भी कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।

(जनचौक के विशेष संवादाता सुशील मानव की रिपोर्ट)

सुशील मानव
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