तुलनात्मक अध्ययन करते समय विवेकशील व्यक्ति तर्क का सहारा लेता है। तुलनात्मक अध्ययन की परिभाषा भौतिक शास्त्र में दी हुई है:- एक ही वायुमंडलीय दबाव तथा ताप पर वस्तुओं के गुणों का आकलन तुलनात्मक अध्ययन है अर्थात जब हम तुलना करें तो परिस्थितियां एक समान होनी चाहिए।
तर्क दो प्रकार के होते हैं एक विवेकानुसार तर्क और दूसरा अपनी बात को सही ठहराने के लिए कुतर्क। नौवीं फेल को भद्रता के शौकीन व्यक्ति उपहास का पात्र बनाते हैं तो वहीं 12वीं फेल के मंत्री बनने पर उन्हें कोई एतराज नहीं है। तथ्यात्मक पढ़ाई का राजनीति के साथ कोई संबंध नहीं है। राजनीत सीधे तरीके से प्रशासनिक क्षमता व चीजों की समझ को संबोधित करती है। कबीरदास पढ़े-लिखे नहीं थे। समाज को अच्छी तरह समझते थे तथा सुधार की प्रक्रिया भी बताते थे। एक आदमी बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा हो किंतु अंधविश्वास व कुतर्कों में फंसा हुआ हो तो बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता।
मैं न तो नौवीं फेल का समर्थक हूं और न ही 12वीं फेल से बैर है। पत्रकार का सांचा शीशा होता है जो कमजोर होने के बावजूद वास्तविकता दिखाने से डरता नहीं है। हम 9वीं फेल वाले के नाम से नाक टेढ़ी इसलिए करते हैं क्योंकि वह उस परिवार से आता है। जिसकी नफरत करना हमारे समाज में फैशन है तथा अनेकों बुद्धिहीनों को स्वीकार इसलिए करते हैं क्योंकि वे उस संगठन से आते हैं जिनके वक्ता हमें पौराणिक कहानियां सुनाते हैं।
धरातल की हकीकत को समझने की जिसने कभी कोशिश ना की हो वह ना तो जीवन चैन से जी पाएगा और ना ही समाज को बदलने की ताकत पैदा कर पाएगा। मुझे नौवीं फेल भी कभी-कभी हास्यप्रद लगा जब तमाम प्रशासनिक क्षमताओं से भरपूर होने के बावजूद उसने समाज की कृत्रिमता को दिखाने के लिए अंग्रेजी बोली। वह नौवीं कक्षा में फेल तब हुआ जब उसके पिता बिहार के सबसे ताकतवर शासक थे। इतनी ताकत पर लोग अपने बच्चों को मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज तक में भर्ती करा देते हैं और उसके पिता ने ऐसा नहीं किया और न ही कोई डिग्री प्राप्त कराने के लिए फर्जी प्रक्रिया चलवाई। इसे उस लड़के की स्ट्रेंथ के रूप में देखा जाना चाहिए।
उसको बिहार की समस्याएं मालूम हैं। उसको जानकारी है कि अर्थव्यवस्था का सबसे ज्यादा दबाव बेरोजगार के ऊपर पड़ता है। उसने किसी भी भाषण में धर्म की आड़ नहीं ली। कभी विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र बिहार आज अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए पलायन करने वाला हो गया है। उस 31 वर्षीय 9वीं फेल ने इस तथ्य को समझ लिया और वादा किया कि बिहार को शिक्षा के पुराने स्तर पर लाने का प्रयास किया जाएगा। रोजाना 17 -18 रैलियां करने वाले उस युवा के मुंह से कभी भी कोई शब्द न रपटा, न उखड़ा। यह उसकी बौद्धिक पढ़ाई का प्रमाण है। मंत्रिमंडल बनने के बाद भारत ने दो उप मुख्यमंत्रियों की बाइट भी सुनी।
(गोपाल अग्रवाल समाजवादी नेता हैं और मेरठ में रहते हैं।)