अब की दशहरे पर किसान किसका पुतला जलायेंगे?

देश को शर्मसार करती कई तस्वीरें सामने हैं। 

एक तस्वीर उस अन्नदाता प्रीतम सिंह की है जिसने अभी दो दिन पहले अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल के महल के बाहर कृषि विधेयकों के ख़िलाफ़ ज़हर खाकर जान दे दी थी।

दूसरी तस्वीर राज्यसभा में हो रहे बम्पर हंगामे की है, जिसमें सरकार जम्हूरियत की धज्जियाँ उड़ाते हुए धक्के से वॉयस वोट से बिल को पास करवा रही है। 

प्रीतम सिंह।

तीसरी तस्वीर प्रधानमंत्री मोदी के एक और झूठ की है जो उन्होंने किसानों के लिए पंजाबी में लिखा है- ‘मैं पैहलां  वी केहा सी ते इक वार फिर कैहंदा हाँ, एमएसपी दी विवस्था जारी रवेगी, सरकारी खरीद जारी रवेगी। असीं इत्थे किसानां दी सेवा लई हाँ। असीं किसानां दी मदद लई हर संभव यतन करांगा….’। (मैंने पहले भी कहा था और एक बार फिर कहता हूँ, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की व्यवस्था जारी रहेगी, सरकारी खरीद जारी रहेगी। हम यहाँ किसानों की सेवा के लिए हैं। हम किसानों की मदद के लिए हर संभव यतन करेंगे…..’।)

जब यह झूठ प्रधानमंत्री मोदी परोस रहे थे तो उस वक़्त पंजाब के मालवा क्षेत्र की मंडियों में ‘सफ़ेद सोना’ (कपास) केंद्र द्वारा तय किए भाव 5,825 रुपये के बजाए 4000 रुपये में बिक रहा था। मोदी सरकार की शह पर कम कीमत पर कपास खरीदने के लिए तमाम निजी कंपनियाँ सरगर्म थीं। सीसीआई (भारतीय कपास निगम) वालों ने अपने दफ्तरों के ताले नहीं खोले थे। ऐसे में प्रधानमंत्री का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) आम आदमी को समझ में आए या ना आए किसानों को समझ में आ रहा था। 

हरियाणा के किसानों ने कृषि विधेयकों के ख़िलाफ़ सड़कों पर शांतिपूर्ण ढंग से धरने-प्रदर्शन किए। भारतीय किसान यूनियन की हरियाणा इकाई के आह्वान पर किए इन रोष प्रदर्शनों के दौरान सूबे में कई जगह राजमार्ग पर भारी संख्या में किसान शामिल हुए और दोपहर 12 से 3 बजे तक जाम लगाए रखा। कई जगह प्रदर्शनकारी हरियाणा पुलिस के बेरिकेड आदि जैसे पुख्ता प्रबंधों को तोड़ने में कामयाब रहे। 

द्रोहकाल में लिखी गई अनेक शर्मनाक कलंक-कथाओं में एक और कलंक-कथा शामिल कर दी गई है। राज्यसभा में किसानों के अस्तित्व पर संकट बनकर छाए दो कृषि विधेयक पास कर दिये गए हैं। इसके विरोध में अब पंजाब और हरियाणा के हजारों किसान सड़कों पर उतर आए हैं। पंजाब के 1500 गावों  में मोदी के पुतले फूंके गए हैं। कई जगह ट्रैक्टर रैलियाँ निकाली गईं। 25 सितंबर के ‘पंजाब बंद’ की रणनीति तैयार करने के लिए 31 संगठन लामबंद हो गए हैं। 

किसान-मजदूर यूनियन ने भी माझा क्षेत्र के सैकड़ों गावों में अर्थी-फूँक प्रदर्शन किए हैं। किसान-मजदूर यूनियन के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू और महासचिव सरवन सिंह पंधेर के मुताबिक 24 से 26 सितंबर तक 48 घंटे के लिए रेल यातायात रोकने का कार्यक्रम तय कर लिया है लेकिन यह यातायात कहाँ रोका जाएगा इस बात का खुलासा अभी उन्होंने नहीं किया है। वैसे किसानों ने जेलों के आगे पहले से ही डेरा डाल लिया है। 

हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के नाटक के बावजूद बादल गाँव में पिछले छह दिन से धरने पर बैठे किसानों के रोष में कोई कमी नहीं आई है क्योंकि अकाली दल अभी भी एनडीए गठबंधन का जन्म-जन्म का साथ टूटा नहीं है। धरने में किसान प्रीतम सिंह की आत्महत्या के बाद किसानों के अंदर जोश और लड़ने का जज़्बा और बुलंदी पर है। ग्रामीण महिलाओं की भी इसमें शमूलियत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। एक खबर के मुताबिक बादल गाँव में धरने पर बैठी महिलाओं का कहना है-‘क़र्ज़ में पति मरे, घुटन भरी जिंदगी जी रहे अब यह अत्याचार नहीं सहेंगे’।   

इस बीच, केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा के अध्यक्ष दर्शन बुट्टर और महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा ने किसानों के इस आंदोलन को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की है। उन्होंने अपील की है कि पंजाबी लेखक, बुद्धिजीवी और संस्कृतिकर्मी पंजाब बंद में शामिल हों। बिना इस बात की परवाह किए कि भविष्य में उन पर भी रेप या देशद्रोह का केस दर्ज़ हो सकता है, बुद्धिजीवियों के साथ-साथ किसानों के समर्थन में दलजीत दोसांझ, अमी विर्क और सरगुन मेहता जैसे पंजाबी फिल्मों के गायक और अभिनेता भी उतर आए हैं। 

कोरोना महामारी के चलते मंदी की मार झेल रहे यूपी, बिहार आदि राज्यों से आकर पंजाब में रावण के पुतले बनाने वालों के लिए यह अच्छी खबर हो सकती है क्योंकि कुछ किसान नेता इस बार दशहरे पर रावण की जगह मोदी के पुतले जलाने की भी योजना बना रहे हैं। यह बताने के लिए तैयार नहीं हैं कि पुतला कब और कहाँ जलायेंगे?

रब ख़ैर करे। अगर किसानों ने दशहरे पर रावण की जगह मोदी के पुतले को फूंका तो शामत बेचारे अज़हर अली जैसे कारीगरों पर आ जाएगी जो पिछले बीस सालों से आगरा से लुधियाना आकर रावण के पुतले बनाते हैं। इस बार उन्हें एक भी रावण का ऑर्डर नहीं मिला है। 

(देवेंद्र पाल वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल लुधियाना में रहते हैं।)

देवेंद्र पाल
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