राजद्रोह कानून पर लगी रोक जारी रहेगी, संसद सत्र में कानून में बदलाव संभव

राजद्रोह कानून पर लगी रोक अभी जारी रहेगी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सुनवाई टालने के आग्रह को स्वीकार लिया है। सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस मसले पर वो कुछ करने जा रही है। यानी कुछ बदलाव हो सकता है। ऐसे में तब तक केंद्र को उच्चतम न्यायालय के राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के आदेश का पालन करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बैच को जनवरी, 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया। सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मई महीने में राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि पुनर्विचार तक राजद्रोह कानून यानी 124ए के तहत कोई नया केस दर्ज ना किया जाए। केंद्र इस बाबत राज्यों को निर्देशिका जारी करेगा।साथ ही कोर्ट ने पुराने मामलों के बारे में भी कहा था कि जो लंबित मामले हैं, उन पर यथास्थिति रखी जाए। कोर्ट ने उस वक्त नागरिकों के अधिकारों की रक्षा को सर्वोपरि बताया था और कहा था कि देश में इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है।

एक जानकारी के मुताबिक 2010 से 2020 के बीच करीब 11 हजार लोगों के खिलाफ देशद्रोह के 816 केस दर्ज किए गए। इनमें सबसे ज्यादा 405 भारतीयों के खिलाफ नेताओं और सरकारों की आलोचना करने पर राजद्रोह के आरोप लगे हैं। यूपीए-2 सरकार की तुलना में एनडीए सरकार के कार्यकाल में हर साल राजद्रोह के मामलों में 28 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। धारा 124 ए का सबसे ज्यादा इस्तेमाल आंदोलनों को दबाने में किया गया।

आईपीसी की धारा 124 (ए) के अनुसार, राजद्रोह एक अपराध है। राजद्रोह के अंतर्गत भारत में सरकार के प्रति मौखिक, लिखित या संकेतों और दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने के प्रयत्न को शामिल किया जाता है। हालांकि, इसके तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किए बिना की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं लिया जाता। राजद्रोह गैरजमानती संज्ञेय अपराध है। राजद्रोह के अपराध में तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और इसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस कानून के तहत आरोपी व्यक्ति को सरकारी नौकरी करने से रोका जा सकता है।

वर्ष 1870 में लागू हुए इस कानून को भारत के स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के लिए लाया गया था। 152 साल पुराना ये कानून धीरे-धीरे सत्ता का हथियार बन गया। ऐसे में सरकार पर लगातार आरोप लगे कि अंग्रेजों के जमाने के कानून का आजाद भारत में क्या काम है?

शुरुआत में ही भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि केंद्र आपराधिक कानूनों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है। उन्होंने कहा कि अगले संसद सत्र में कुछ हो सकता है। तदनुसार उन्होंने केन्द्र को अतिरिक्त समय दिये जाने का अनुरोध किया ताकि उचित कदम उठाये जा सकें।

सीजेआई ने पूछा कि क्या केंद्र द्वारा सभी लंबित कार्यवाही को स्थगित करने और इसके उपयोग को रोकने के लिए धारा 124ए के तहत किसी भी नए मामले को दर्ज करने से रोकने के लिए निर्देश जारी किया गया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सकारात्मक जवाब दिया और कहा कि इस संबंध में सभी मुख्य सचिवों को निर्देश भेज दिए गए हैं। सीजेआई यूयू ललित ने आदेश में कहा कि एजी ने प्रस्तुत किया कि इस अदालत द्वारा 11 मई, 2022 के अपने आदेश में जारी निर्देशों के संदर्भ में यह मामला अभी भी संबंधित अधिकारियों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।

उनका अनुरोध है कि अतिरिक्त समय दिया जाए ताकि सरकार द्वारा उचित कदम उठाए जा सकें। उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि अदालत द्वारा जारी अंतरिम निर्देशों के मद्देनजर, हर हित और चिंता सुरक्षित है। इस तरह कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा। उनके अनुरोध पर हम इसे जनवरी, 2023 के दूसरे सप्ताह के लिए स्थगित करते हैं। हमारे संज्ञान में लाया गया कि कुछ मामलों में नोटिस जारी नहीं किया गया। ऐसे मामलों में भारत संघ के वकील एके शर्मा को 6 सप्ताह के भीतर उचित हलफनामा दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया जाए।

पीठ सेना के दिग्गज मेजर-जनरल एसजी वोम्बटकेरे (सेवानिवृत्त) और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, पत्रकार अनिल चमड़िया, पीयूसीएल, पत्रकार पेट्रीसिया मुखिम और अनुराधा भसीन, और पत्रकार संघ असम द्वारा दायर रिट याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने 11 मई, 2022 को कई निर्देश पारित किए थे, जिसने प्रभावी रूप से राजद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से उक्त प्रावधान के तहत कोई भी एफआईआर दर्ज करने से परहेज करने का आग्रह किया, जबकि यह फिर से विचाराधीन है। आदेश में कहा गया कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी एफआईआर दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124 ए के तहत कठोर कदम उठाने से परहेज करेंगी। पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि धारा 124 ए के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मुकदमे, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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