बैंक कर्मचारियों की हड़ताल, आर-पार की लड़ाई की तैयारी

संसद का बजट सत्र प्रारंभ हो चुका है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला पूर्णकालिक बजट कल यानी कि एक फरवरी को संसद में पेश किया जाएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के जरिए सदन के पटल पर आर्थिक सर्वे पेश किया जा चुका है। बजट सत्र की शुरुआत में संसद के दोनों सदन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सरकार की नीतियों की सराहना करते हुए अन्य बातों के अलावा यह भी कहा कि मेरी सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया-भर से आने वाली चुनौतियों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत है, हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 450 बिलियन डॉलर से भी उपर के ऐतिहासिक स्तर पर है। दिवाला और दिवालियापन संहिता की वजह से बैंकों और अन्य संस्थानों के करीब साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये वापस भी आए हैं।

राष्ट्रपति के इस भाषण, जोकि सरकार का नीतिगत बयान ही होती है, के इतर देश के तमाम सार्वजनिक बैंकों के लगभग दस लाख कर्मचारी और अधिकारी ‘यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू)’ के बैनर तले दो दिवसीय (31 जनवरी से 01 फरवरी 2020) ‘राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल’ पर हैं।

मालूम हो कि बैंक कर्मचारी नवंबर 2017 से ही सैलरी बढ़ाने समेत कई सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (यूएफबीयू) के नौ घटकों के प्रतिनिधियों ने इंडियन बैंक संघ (आइबीए) के साथ कई दौर की द्विपक्षीय वार्ता की, जिसमें वेतन बढ़ोतरी समेत कई मांगों को ठुकरा दिया गया। आइबीए ने 12.25 और 13.50 फीसदी वेतन वृद्धि का ऑफर दिया, लेकिन बैंककर्मियों की 20 प्रतिशत वेतन वृद्धि, मूल वेतन के साथ विशेष भत्ते के विलय और हफ्ते में पांच दिन कार्य के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

‘यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (यूएफबीयू)’ बैंक के कई कर्मचारी और अधिकारी संगठनों का एक निकाय है, जिसमें ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआइबीओसी), ऑल इंडिया बैंक इंप्लाइज एशेसिएशन (एआइबीइए), नेशनल ऑर्गिनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स (एनओबीडब्लू), एनसीबीई, एआइबीओए, बीइएफआइ, आइएनबीइएफ, आइएनबीओसी और एनओबीओ शामिल है। उन्होंने 12 सूत्रीय मांगें रखी हैं।

‘‘पे-स्लिप कम्पोनेन्ट पर 20 प्रतिशत वृद्धि एवं उचित लोडिंग के साथ वेतन पुनरीक्षण समझौता, पांच दिवसीय बैंकिंग, मूल वेतन के साथ विशेष भत्तों का विलय, नई पेंशन योजना (एनपीएस) को समाप्त किया जाए, पेंशन को अपडेशन किया जाए, परिवार के पेंशन में सुधार किया जाए, ऑपरेटिंग लाभ के आधार पर कर्मचारी कल्याण निधि के लिए रकम जारी किया जाए, सेवानिवृति लाभों पर बिना किसी सीमा के आयकर में छूट दिया जाए और बैंक की सभी शाखाओं में व्यवसाय का समय व भोजनावकाश का समय आदि में एकरूपता लाया जाए, जैसी मांगें शामिल हैं।

इसके अलावा अवकाश बैंक को प्रारंभ किया जाए के साथ ही अधिकारियों के लिए कार्य का समय निश्चित किया जाए और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों और व्यापार प्रतिनिधियों को समान काम के लिए समान वेतन दिया जाए।

हड़ताल का झारखंड में प्रभाव
झारखंड के मुख्य सार्वजनिक बैंकों में से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 561 ब्रांच, बैंक ऑफ इंडिया की 492 ब्रांच, इलाहाबाद बैंक की 147 ब्रांच, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की सैकड़ों ब्रांच समेत सार्वजनिक बैंकों की लगभग 2500 शाखाओं पर कामकाज पूरी तरह से ठप्प है। हड़ताल में राज्य भर के लगभग 2800 बैंककर्मी और अधिकारी प्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। ये यभी बैंक के सामने अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी कर रहे हैं। ये सभी मोदी सरकार से इस बार आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं।

एआइबीओसी के झारखंड राज्य के महासचिव सुनील लकड़ा कहते हैं कि केंद्रीय कर्मियों के वेतन से जुड़े मुद्दों पर तुरंत निर्णय लिया जाता है, लेकिन भारतीय बैंक संघ के साथ 36 बैठकों के बाद भी बैंककर्मियों की मांगें नवंबर 2017 से ही लंबित हैं। भारतीय बैंक संघ के अड़ियल रुख के कारण हमारे पास हड़ताल पर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

इस हड़ताल के बाद एक बार फिर से बातचीत की कोशिश की जाएगी, अगर बातचीत नहीं बनती है, तो मार्च में 11, 12 और 13 को तीन दिनों की हड़ताल की जाएगी। उसके बाद भी शर्त नहीं मानने पर एक अप्रैल 2020 से राष्ट्रव्यापी अनिश्चितकालीन बैंक हड़ताल की जाएगी।’’

एसबीआई स्टॉफ एसोसिएशन के असिस्टेंट जेनरल सेक्रेटरी मंजीत साहनी ने कहा कि बैंक हड़ताल पूरे झारखंड में अभूतपूर्व है और यहां पर रामगढ़ में स्थित सभी बैंक के कर्मचारी और अधिकारी एकत्रित हुए हैं। हमारी मांगे जायज हैं और सरकार को हमारी मांगे माननी ही होंगी। उस वक्त वहां पर एसबीआई स्टाफ एसोसिएशन के जोनल सेक्रेटरी भरत साहू, इंदु कुमारी, शशि भूषण, एसके रजक, राजेश सहाय, डी. तरफदार, राजेन्द्र प्रसाद, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया के अशोक राय, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के बंशी साहू, मदन कुमार सिंह, बैंक ऑफ इंडिया के संजय बनर्जी, अंकिता गोराई, रानी सिंह, सुनीता कुमारी, अमित कुमार दूबे आदि मौजूद थे, जिनकी आंखों में सरकार के प्रति गुस्सा और अपनी मांगों के प्रति दृढ़ निश्चय दिखाई दे रहा था।

ठीक 2020-21 के आम बजट पेश होने के एक दिन पहले प्रारंभ हुई इस हड़ताल ने यह साबित कर दिया है कि सरकार के प्रति अब बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों का गुस्सा भी फूटने लगा है, जो भविष्य में सरकार के लिए गले की फांस बन सकती है। आठ जनवरी 2020 को केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल में भी ये लोग शामिल हुए थे और देश के करोड़ों मजदूर साथियों के साथ एकता का इजहार किया था।

आज जब देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है और सार्वजनिक बैंकों की कमर टूट चुकी है और सरकार झूठ बोलकर लोगों को भरमाने में लगी है। आज जब सरकार की उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण की नीतियों के कारण हमारे देश का बैंकिंग सेक्टर खतरे में है, तो हम कह सकते हैं कि यह हड़ताल राष्ट्रीयकृत बैंकों को बचाने के लिए की जा रही है।

सरकार अपने कर्मचारियों की हितैषी होने का लगातार दावा करते रहती है, ऐसे वक्त में बैंक कर्मचारियों व बैंक अधिकारियों की अपनी जायज मांगों के समर्थन में जारी यह हड़ताल सरकार के झूठ को बेनकाब कर दे रही है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

रूपेश कुमार सिंह
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