पाटलिपुत्र की जंगः पहले चरण का मतदान कल, झूठ फैलाने की मशीन हुई सक्रिय

बिहार में पहले चरण के मतदान में अब एक दिन बाकी रह गया है। 28 अक्तूबर को यहां पहले चरण में 71 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होना है। पहले चरण के चुनाव प्रचार भी आज सोमवार शाम को समाप्त हो गए। इस बीच चुनाव प्रचार के दौरान जहां एक तरफ तेजस्वी यादव और महागठबंधन की चुनावी रैलियों में भारी भीड़ और एनडीए की सभाओं में सन्नाटा देखने को मिला, वहीं बिहार की कई जगहों से बीजेपी और एनडीए के उम्मीदवारों को जनता द्वारा घेर कर सवाल करने, उनके खिलाफ नारे लगाने और सभाओं से वापस भेजने की खबरें भी आती रहीं जिस पर बहुत कम ध्यान गया।

एक चुनावी सभा में तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ़ नारे लगे। जिस पर नीतीश कुमार नाराज़गी जताते हुए मंच से गुस्से में चीखते हुए बोले, “वोट मत देना, तुम 15-20 हो, यहां हजारों लोग हैं हमें वोट देने वाले।”

इतना ही नहीं, इस विरोध से नीतीश कुमार अपना आपा इस कदर खो बैठे कि उनके बोल ही बिगड़ गए और कहा, “अगर पढ़ना चाहते हो तो अपने बाप से पूछो।” मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेगूसराय में एक चुनावी रैली के दौरान विपक्षी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार आरजेडी नेता तेजस्वी यादव पर निजी हमले करते हुए दिखे।

अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पर तीखा हमला करते हुए नीतीश कुमार ने कहा, “अपने बाप या माता से पूछें कि मौक़ा मिलने पर क्या उन्होंने कोई स्कूल या कॉलेज बनाया था। या सिर्फ ग़लत तरीक़े से पैसा बनाते रहे।”

अररिया में एक रैली में मंच के नीचे से लोगों ने नीतीश कुमार मुर्दाबाद के नारे लगाए तो नीतीश कुमार ने गुस्से में कहा, “काहे के लिए मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हो, जिसका जिंदाबाद कह रहे हो उसका सुनने जाओ।”

इस तरह से बिहार के कई हिस्सों में भाजपा-जदयू गठबंधन के उम्मीदवारों को लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। चुनावी सभाओं के दौरान जिन्हें कथित मुख्यधारा की मीडिया और टीआरपी के भूखे चैनलों के पट्टेदार एंकरों ने नहीं दिखाया। किंतु सच न तो दबता है, न ही मरता है। वह ज़िंदा रहता है।

इस बार बिहार की जनता में मौजूदा सरकार यानी बीजेपी-जदयू वाली गंठबंधन के खिलाफ़ भारी आक्रोश है। हालत यह है कि खाली सभाओं को छिपाने के लिए पुरानी तस्वीरें लगाकर सोशल मीडिया पर झूठा प्रचार तक किया गया। ट्वीटर पर एक तस्वीर के साथ लिखा गया, ‘योगी आदित्यनाथ को सुनने के लिए बिहार की एक रैली में उमड़ा जनसैलाब’, ‘जय श्री राम के नारों से गूंजा मैदान”। किंतु फैक्ट चेक में पाया गया कि वह तस्वीर 2014 में कोलकाता में प्रधानमंत्री मोदी की एक रैली की है। इसी तस्वीर को 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी वायरल किया गया था।

डर ही झूठ का प्रचार करवाता है। इस बार बिहार की जनता में सत्ताधारी गठबंधन के खिलाफ़ विरोध और आक्रोश को साफ़ महसूस किया जा सकता है। कोरोना काल में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की आपात घोषणा के बाद लाखों मजदूर सड़क पर आ गए थे। कई मजदूरों की मौत हो गई थी, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने से। इतना ही नहीं सड़क पर चलते हुए उन्हें पुलिस ने भी जमकर पीटा। कई जगहों पर मजदूरों पर कीटनाशक जैसा कुछ डालने की तस्वीरें सामने आई थीं। हजारों मजदूरों को गुजरात में पीटा गया, निकाला गया। इनमें बिहार के मजदूर भी भारी संख्या में शामिल थे।

अब सवाल है कि क्या इस बार बिहार की जनता जातिवाद को पीछे रखकर रोजगार और अपनी मांगों के मुद्दे पर मतदान करेगी? एक तरफ महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने बिहार के दस लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने का वादा किया है, तो वहीं बीजेपी-जेडीयू एनडीए ने बिहार में सबको फ्री कोरोना टीका के साथ 19 लाख नौकरी का वादा अपने संकल्प पत्र में किया है।

इससे पहले तेजस्वी यादव द्वारा दस लाख रोजगार की बात पर वर्तमान उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने सवाल उठाया था, किंतु बाद में उनके गठबंधन ने 19 लाख नौकरी का वादा कर दिया।

वादा तो 2014 में मोदी ने भी किया था हर साल दो करोड़ रोजगार और सबके खाते में 15 लाख रुपये देने का, जिन्हें बाद में जुमला घोषित कर युवाओं को पकौड़े तलने की सलाह दे दी गई।

(वरिष्ठ पत्रकार और कवि नित्यानंद गायेन का लेख।)

नित्यानंद गायेन
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