भीमा कोरेगांव हिंसाः गौतम नवलखा और तेलतुंबडे की 16 मार्च तक गिरफ्तारी पर रोक

उच्चतम न्यायालय ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे की गिरफ्तारी पर 16 मार्च तक रोक लगा दी है। उच्चतम न्यायालय इस मामले की सुनवाई 16 मार्च को ही करेगी। वहीं मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अब मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है।

जस्टिस अरुण मिश्रा और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि वह 16 मार्च को बाम्बे हाई कोर्ट के पिछले महीने के आदेश के खिलाफ नवलखा और तेलतुंबडे की ओर से दायर की गई अपील पर सुनवाई करेगी।

गौरतलब है कि एक जनवरी, 2018 को पुणे जिले के कोरेगांव भीमा गांव में हिंसा के बाद गौतम नवलखा और आनंद समेत अन्य कार्यकर्ताओं को पुणे पुलिस ने उनके कथित माओवादी लिंक और कई अन्य आरोपों के लिए आरोपी बनाया है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा और तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण को चार सप्ताह की अवधि के लिए बढ़ा दियास ताकि वे अपील में उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकें।

पुलिस ने आरोप लगाया है कि वो सम्मेलन माओवादियों द्वारा समर्थित था। तेलतुंबडे और नवलखा ने उच्च न्यायालय में पिछले साल नवंबर में गिरफ्तारी से पहले जमानत की मांग की थी, जब पुणे की सत्र अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। हालांकि पुणे पुलिस मामले की जांच कर रही थी, लेकिन केंद्र ने पिछले महीने जांच को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया था।

दरअसल उच्च न्यायालय ने नवलखा के खिलाफ एक जनवरी 2018 को पुणे पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था। एल्गार परिषद द्वारा 31 दिसंबर 2017 को पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव में कार्यक्रम के एक दिन बाद कथित रूप से हिंसा भड़क गई थी। पुलिस का आरोप है कि मामले में नवलखा और अन्य आरोपियों का माओवादियों से लिंक था और वे सरकार को उखाड़ फेंकने की दिशा में काम कर रहे थे।

मुंबई हाई कोर्ट ने 14 फरवरी को नवलखा और तेलतुंबडे की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी और उन्हें उच्चतम न्यायालय में अपील करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया था। सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से अपील करते हुए, अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने पीठ को बताया कि हाईकोर्ट द्वारा दोनों को दी गई सुरक्षा 14 मार्च को समाप्त हो जाएगी और उच्चतम न्यायालय को इसका विस्तार करना चाहिए।

पिछले दिनों महाराष्‍ट्र सरकार ने भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में दर्ज कुल 649 मामलों से से 348 को वापस लेने का फैसला लिया था। पहली जनवरी, 2018 को पुणे जिले के भीमा कोरेगांव में हिंसा के बाद गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबड़े और कई अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुणे पुलिस ने केस दर्ज किया था। उन पर माओवादियों से संबंध होने का आरोप है।

केंद्र ने पिछले महीने पुणे पुलिस से जांच एनआईए को स्थानांतरित कर दी थी, इस कदम की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की महाराष्ट्र विकास अघाडी सरकार ने आलोचना की थी। हालांकि, बाद में राज्य सरकार ने अपना रुख बदल दिया था और कहा था कि उसे केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच को लेकर कोई आपत्ति नहीं है।

बाद में मुख्यमंत्री और शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने बहुचर्चित भीमा कोरेगांव मामले पर यू-टर्न ले लिया। उद्धव ठाकरे ने कहा, “एलगार परिषद का मामला और भीमा कोरेगांव का मामला अलग-अलग है। भीमा-कोरेगांव का मामला दलित भाइयों से जुड़ा हुआ है। इसकी जांच केंद्र को नहीं दी जा सकती। इसे केंद्र को नहीं सौंपा जाएगा, जबकि एलगार परिषद के मामले को एनआइए देख रही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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