रसोई ईंधनों के दामों में वृद्धि के बाद कज़ाकिस्तान में भारी विरोध, प्रधानमंत्री का इस्तीफा, आपातकाल की घोषणा

क़ज़ाकिस्तान में तेल और एलपीजी की बढ़ती कीमतों के कारण भारी हिंसा और आगजनी हो रही है। क़ज़ाकिस्तान के सबसे बड़े शहर में सरकारी इमारतों पर हुए हमलों में दर्जनों लोग मारे गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी इमारतों में आग लगा दी और कम से कम आठ अधिकारी मारे गए हैं।

प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति निवास सहित कई सरकारी ऑफिस और नेताओं के घर में आग लगा दी। क़ज़ाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति और कुछ घंटे पहले तक सुरक्षा परिषद के प्रमुख नूर्सुल्तान नाज़र्बायव की प्रतिमा को अल्माटी क्षेत्र में ज़मींदोज़ कर दिया है।

क़ज़ाकिस्तान के गृह मंत्रालय के मुताबिक इस दौरान आठ पुलिस अधिकारी और नेशनल गार्ड के कुछ सदस्य मारे गए जबकि 300 से अधिक लोग घायल हो गए। हताहत हुए आम नागरिकों का कोई आंकड़ा जारी नहीं किया गया।

प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज के साथ आंसू गैस का इस्तेमाल किया और गोलियां दागी। सैंकड़ों प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया है। साथ ही शहर में मिलिट्री फोर्स उतार दिया गया है।

रूस के नेतृत्व वाला पूर्व सोवियत राज्यों का सुरक्षा गठबंधन क़ज़ाकिस्तान में शांति सेना भेजेगा, आर्मेनिया के प्रधानमंत्री ने क़ज़ाख राष्ट्रपति द्वारा घातक विरोध प्रदर्शनों को रोकने में उनकी मदद की अपील के बाद यह जानकारी दी है।

प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा और आपातकाल

इससे पहले कल बुधवार को क़ज़ाकिस्तान के प्रधानमंत्री अस्कर ममिन ने राष्ट्रपति कसीम-जोमार्ट तोकायेव को अपना इस्तीफा भेजा था, जिसे स्वीकार कर लिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रपति ने कहा- क़ज़ाकिस्तान रिपब्लिक के अनुच्छेद 70 के तहत मैं सरकार का इस्तीफा स्वीकार करता हूं। नई सरकार बनने तक वर्तमान सरकार के सदस्य अपने कर्तव्यों का पालन करते रहेंगे। इसके अलावा गरीब परिवारों को सब्सिडी देने पर भी विचार करने का आदेश दिया गया है।

राष्ट्रपति ने अलीखान समाईलोव को कार्यवाहक प्रधानमंत्री भी नियुक्त किया है। साथ ही राष्ट्रपति कसीम-जोमार्ट टोकायव ने प्रदर्शनकारियों से कई बार शांति की अपील की। इसका असर नहीं होने पर कई कठोर कदम भी उठाए। उन्होंने दो सप्ताह (5 जनवरी से 19 जनवरी तक) के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी है। राष्ट्रपति तोकायेव ने अल्माटी के साथ-साथ पश्चिमी मैंगिस्टाऊ राज्य में दो सप्ताह के आपातकाल की घोषणा की है। जहां हजारों प्रदर्शनकारियों को सरकारी भवनों पर धावा बोलते हुए और पुलिस अधिकारियों के साथ संघर्ष करते देखा गया है। इंटरनेट सेवाओं को तुरंत बंद कर दिया गया और मैसेजिंग ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया। साथ ही ऐक्टिंग कैबिनेट को लिक्विड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) पर मूल्य नियंत्रण बहाल करने का आदेश दिया। https://twitter.com/HannaLiubakova/status/1478825963203055616?s=19

हिंसक विरोध प्रदर्शन को लेकर राष्ट्रपति तोकायेव ने कहा है कि सरकारी ऑफिसों पर हमला करना पूरी तरह से ग़लत है। हम एक दूसरे के बीच भरोसा और बातचीत चाहते हैं, विवाद नहीं।

लोगों से घर में रहने की अपील

क़ज़ाकिस्तान में इमरजेंसी के दौरान हथियार, गोला-बारूद और शराब की बिक्री पर रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही आम लोगों से घर में ही रहने की अपील की गई है। गाड़ियों की आवाजाही पर भी रोक लगा दी गई है। राष्ट्रपति ने देश की फाइनेंशियल कैपिटल अल्माटी और मंगिस्टाऊ में भी रात 11 से सुबह 7 बजे तक कर्फ्यू का एलान किया है। सरकार को देश में तेल की कीमतों को रेगुलराइज करने का भी आदेश दिया गया है।

क्यों हो रहा है विरोध-प्रदर्शन

दरअसल 4 जनवरी मंगलवार को प्रधानमंत्री अस्कर ममिन के नेतृत्व वाली कज़ाकिस्तान की सरकार ने LPG की कीमतों पर लगी सीमा हटाकर इसे कंपनियों के हवाले कर दिया था। इसके बाद तेल की कीमतों में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। जिस वजह से देश में बहुत बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। आंदोलन की शुरुआत मांगिस्ताऊ प्रांत से हुई, जिसके बाद सारे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

क़ज़ाकिस्तान के लोग कोरोना महामारी की वजह से पहले ही आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। जब मंगलवार को ईंधन की कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई तो लोगों का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया।

मध्य एशियाई देशों में पेट्रोलियम पदार्थों की कोई कमी नहीं है। बल्कि तेल के मामले में ये धनी देश हैं। मगर यहां ईंधन की कीमतें दोगुनी हो गईं। इससे गुस्साए कज़ाख नागरिक सबसे पहले रविवार को सड़कों पर उतरे। तब सरकार ने वाहनों में इस्तेमाल होने वाले एलपीजी को बाज़ार के हवाले कर दिया था। ऑयल टाउन कहा जाने वाला झानाओज़ेन में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। इसके बाद पूरे देश में आग लग गई। प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतारू हो गए। इसे कजाकिस्तान के इतिहास में विरोध की सबसे बड़ी लहर कहा जा रहा है। प्रदर्शनकारियों ने सरकार के इस्तीफे और रसोई गैस की कीमतें कम करने की मांग की।

‘बूढ़े आदमी, चले जाओ’

क़ज़ाकिस्तान में इस समय हर गली में ‘बूढ़े आदमी, चले जाओ’ के नारे गूंज रहे हैं। ये बूढ़ा आदमी नूर्सुल्तान नाज़र्बायव है जो देश के पहले राष्ट्रपति रहे हैं। अधिकांश लोगों की नाराज़गी नूर्सुल्तान नाज़र्बायव की ओर है। जिन्हें अब भी देश का अंतिम शासक माना जाता है।

कज़ाकिस्तान में तेल और एलपीजी की कीमतों से शुरू हुआ प्रदर्शन चुनावों के बहिष्कार तक पहुंच गया। जहां नागरिक खुले तौर पर एक ऐसे देश में सरकार की आलोचना कर रहे थे, जहां सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष शायद ही कभी सहन किया जाता है। https://twitter.com/b_nishanov/status/1478762035919863817?s=19

दरअसल अल्माटी और मैंगिस्टाऊ में आपातकाल की स्थिति घोषित करने के कुछ घंटों बाद ही मौजूदा राष्ट्रपति तोकायेव ने देश के प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया। इसके बाद उन्होंने देश के पहले उपप्रधानमंत्री अलीखान स्माईलोव को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया। फिर एक टेलीविजन संबोधन में उन्होंने घोषणा की कि वो देश की सुरक्षा परिषद के नेता के रूप में नूर्सुल्तान नाज़र्बायव की जगह लेंगे। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति के भतीजे समेत अबीश को देश की राष्ट्रीय सुरक्षा सेवा के पहले उपप्रमुख के पद से भी बर्खास्त कर दिया।

गौरतलब है कि क़ज़ाकिस्तान सोवियत यूनियन का हिस्सा रहा है और साल 1991 में इस देश ने खुद को एक अलग देश घोषित कर दिया था। और नूर्सुल्तान नाज़र्बायव पहले राष्ट्रपति बने थे।

कोरोना महामारी और आर्थिक मार से बेहाल क़ज़ाख जनता

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ईंधन की कीमतों में बढ़ोत्तरी से खाने-पीने की चीजें महंगी हो जाएंगी। महंगाई से पहले से ही देश के लोग त्रस्त हैं। भुखमरी के हालात पैदा हो जाएंगे। पिछले साल ही देश में मुद्रास्फीति की दर नौ फीसदी थी। विरोध प्रदर्शनों में अब तक 200 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है। कहा जा रहा है कि सस्ता ईंधन तो सिर्फ बहाना है। बढ़ती महंगाई और आमदनी में असमानता को लेकर कजाकिस्तान के लोगों में भारी असंतोष है। जो कोरोना वायरस महामारी और लोकतंत्र की कमी के कारण बिगड़ गया। जबकि देश में लाखों डॉलर का विदेशी निवेश हुआ है।

क़ज़ाकिस्तान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर भी मौजूदा सरकार की व्यापक रूप से आलोचना की गई है। 2019 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान अनियमितताओं की ख़बरें आई थीं। नूर्सुल्तान नाज़र्बायव को उनके पद से हटने के बाद चुनाव हुआ था। उसके बाद तोकायेव राष्ट्रपति बने। जिन्हें उनके चुने हुए उत्तराधिकारी के रूप में माना जाता है। हालांकि, नूर्सुल्तान नाज़र्बायव और उनके परिवार की सियासी हैसियत कम नहीं हुई।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

सुशील मानव
Published by
सुशील मानव