भाजपा के पटना मार्च का मकसद रोजगार और महंगाई से ज्यादा सियासी माहौल बिगाड़ना था

पटना। दो साल पुरानी बात है। तब नीतीश कुमार के साथ भाजपा सत्ता में थी। बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस अधिनियम, 2021 का विरोध करने की वजह से विधानसभा में सत्ता और विपक्ष में तकरार हुआ था। बिहार विधानसभा में महागठबंधन के विधायकों को मार्शल और पुलिस ने घसीट घसीट कर मारा था। महिला विधायकों के कपड़े फाड़े गए थे। राजद विधायकों पर लाठियां चली थीं। कार्यकर्ताओं को पीट-पीटकर लहुलुहान किया गया था। भाजपा नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं ने ‘बिहार पुलिस लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं’ का नारा दिया था। तब तेजस्वी यादव ने बस इतना कहा था संघर्ष होगा। आज दो साल बाद इतिहास खुद को दोहरा रहा है।

बिहार के सहरसा जिला स्थित आरएम कॉलेज के प्रोफेसर शशि शेखर झा कहते हैं कि “बात अजीब है लेकिन सुखद है कि 2014 के बाद संप्रदाय के लिए लड़ने वाली बीजेपी रोजगार, महंगाई और जनता के दूसरे मुद्दों पर मार्च निकालने की घोषणा की। लेकिन इस मार्च को राज्य के युवाओं और आम जनमानस का बहुत अधिक समर्थन नहीं था। इसकी वजह है कि महंगाई और बेरोजगारी के सवालों पर आम लोग बीजेपी सरकार से जुड़ाव महसूस नहीं करते। क्योंकि केंद्र और जिन दूसरे राज्यों में भाजपा की सरकार है, वहां तो इन मसलों पर और बुरी हालत है। इसके बाद यह पूरा मार्च राजनीतिक हो गया। स्थानीय नेता दिल्ली को खुश करने के मकसद से जमकर हंगामा किए। फिर प्रशासन को अपना काम करना ही था।”

उन्होंने कहा कि “सरकार की ओर से शिक्षकों को पहले ही बातचीत करने का आश्वासन दे दिया गया था। इसके बावजूद भाजपा के नेताओं ने उन्हें मोहरा बनाकर पूरे राजधानी पटना में हुड़दंग करने की कोशिश की। लेकिन आंदोलन में शिक्षक नहीं थे। क्योंकि शिक्षक जानते थे, ये उनके लिए नहीं आए हैं।”

अजीब विडंबना है कि बीजेपी के नेताओं को 10 लाख नौकरी मांगने सड़क पर उतरना पड़ रहा है जबकि ख़ुद के 2 वर्षों के शासन में 19 लाख नौकरियों के वादे में से 19 भी न दे पाए। नीतीश-तेजस्वी सरकार ने तो 8 महीने के भीतर ही लगभग 3 लाख सरकारी नौकरियों का विज्ञापन जारी कर दिया है।

स्थानीय पोर्टल के पत्रकार सन्नी बताते हैं कि, “बीजेपी के पूरे अभियान का एक ही मक़सद था हुड़दंग करना। ये आंदोलन में लाल मिर्च पाउडर लेकर आते हैं। ये जनहित के मुद्दे पर सड़क पर आए होते, तो पुलिसिया कार्रवाई पर पूरे बिहार को दुख होता। लेकिन इनका मक़सद ही सियासी माहौल बिगाड़ना था। ये लोग आंदोलन के ज़रिए 24 के चुनाव के लिए हवा बना रहे हैं। इसीलिए बिहार की जनता इनके साथ नहीं है।”

बिहार विधानसभा तक विरोध मार्च निकालने के दौरान हुए लाठीचार्ज में एक बीजेपी नेता की मौत होने की जो जानकारी सामने आई थी। उस पर बिहार के वरिष्ठ पत्रकार रवि नारायण लिखते हैं कि “बीजेपी के विधानसभा मार्च की तस्वीरें सुर्खियों में हैं। खासकर बीजेपी कार्यकर्ता विजय सिंह की मौत ने सभी को सकते में ला दिया है। बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता, विजय सिंह की मौत को लेकर हंगामा कर रहे हैं। लेकिन जिला प्रशासन के मुताबिक बीजेपी के मृतक कार्यकर्ता विजय सिंह कार्यक्रम स्थल पहुंचे ही नहीं थे।”

रवि नारायण लिखते हैं कि “मृतक के शरीर पर कहीं कोई चोट के निशान नहीं है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक भगदड़ की खबर सुनते ही वे बेहोश होकर गिर पड़े थे, और उनको तारा हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था। बाद में पीएमसीएच ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित किया गया। पोस्टमार्टम की वीडियो ग्राफी भी कराई गई है।”

वहीं पटना प्रशासन ने भी इस मुद्दे पर बयान दिया है कि “जहानाबाद के एक व्यक्ति विजय सिंह छज्जू बाग में सड़क किनारे अचेत अवस्था में पाए गए थे, शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं है और उन्हें PMCH में भर्ती कराया गया है। पत्रकार और लेखक प्रियांशु कुशवाहा कहते हैं कि “बिहार भाजपा के नेताओं ने विधानसभा मार्च के दौरान पुलिस कर्मियों के चेहरे, आंख और शरीर पर लाल मिर्च पाउडर फेंका है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध का सबसे घटिया रास्ता है।”

(पटना से राहुल की रिपोर्ट।)

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