दंगे के बाद दिल्लीः मुआवजे के लिए अकेले बुलाए जाने से भयभीत हैं आरिफ़ा

नई दिल्ली। सभापुर मिलन गार्डन, राम-रहीम चौक की रहने वाली आरिफ़ा बेगम को अपने घर से भाग कर राजीव विहार समुदाय भवन में शरण लेनी पड़ी है। वो 24 फरवरी मंगलवार से अपने बीमार पति और बच्चों के साथ यहां पर रह रही हैं। आरिफ़ा अधिकारियों की शिकायत करते हुए कहती हैं, ‘‘पहले कहा कि फार्म भर दो पैसा मिलेगा। अब मेरा फार्म सभापुर पहुंचा दिया है। वहां कोई सुनवाई नहीं हो रही। न ही मैं डर की वजह से जा रही हूं। थाने से फोन आ रहे हैं कि आप अकेले आओ किसी को साथ लेकर मत आओ। कल शाम सात बजे थाने बुलाया था। अब बताओ मैं अकेली कैसे चली जाऊं कोई सेफ्टी है नहीं।’’

24 फरवरी के हमले के बारे आरिफ़ा बताती हैं, ‘‘मंगलवार दोपहर डेढ़ बजे। मेरा बेटा दूध लेने गया था। वो भागा-भागा आया और बोला, ‘‘अम्मी बाहर बहुत सारे आदमी हैं। जय श्री राम का नारा लगा रहे हैं। डंडा लेकर आ रहे हैं। जैसे हम खड़े थे वैसे ही भाग लिए।

आरिफा।

एक मुसलमान का चार मंज़िल का मकान है हम उसमें घुस गए। मैं कहीं, मेरे बच्चे कहीं। हमने झांक कर देखा वो लोग बंदूकें चला रहे थे। पत्थर फेंक रहे थे। मेरा घर-बार गाड़ी सब तोड़-जला गए। हमारे पैसे-जेवर जो भी था सब ले गए। तबसे मैं वापस नहीं गई। एक बार गई थी देखने, वहां के लोगों ने मना कर दिया कि अभी मत आना यहां ख़तरा है। 

आरिफ़ा अपने जले-टूटे, तहस-नहस हुए घर-सामान और बुरी तरह जलाई जा चुकी गली में खड़ी गाड़ी की तस्वीरें दिखाती हैं। उनका कहना है कि अब वो उस जगह फिर कभी रहने नहीं जाएंगी। हालांकि वो उनका अपना मकान है। 

अज़ीज़िया मस्जिद, गांवड़ी गांव, एक्सटेंशन, सुदामापुरी 

मोहम्मद सरफ़राज़ बताते हैं कि दंगा 25 फरवरी मंगलवार 12 बजे से शुरू हुआ और पूरे दिन फिर चला। वो चौक की तरफ से आए। हाथ में पत्थर, रॉड, डंडे थे। फायरिंग भी हुई। कइयों के सिर पर हेलमेट थे। शुरू में ढाई सौ, तीन सौ थे। फिर और आए। मस्जिद को चारों तरफ से घेर लिया। मेन गेट टूटा नहीं उनसे बहुत कोशिश की। पीछे से तोड़ कर घुस गए और अंदर से गेट खोला। फिर सारी मस्जिद जला दी। एसी, कूलर, पंखे, सीसी टीवी कैमरे, किताबों से भरी अलमारियां, कालीन, टंकी, कुरान,  चटाईयां, पानी की टंकी, समर सिबल सब जला-तोड़ कर तहस-नहस कर दिया। इतनी बर्बरता से काम किया उन्होंने कि हम सोच नहीं सकते थे। मस्जिद जैसी जगह में ऐसा हो सकता है। घर में मार लें पत्थर, नुकसान हो भी जाए पर मस्जिद में ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। ये काम अचानक हुआ। हमें नहीं लगता था कि ऐसा हो सकता है। पता होता तो मस्जिद बचाने की कोशिश करते। 

उन्होंने कहा कि हम इतने सालों से यहां रह रहे हैं। कोई 40 साल से, कोई 100 साल से यहां रह रहा है। इतना भाईचारा था आपस में कि ऐसा कभी हो नहीं सकता था। दंगाई हिंदू-मुसलमान नहीं देखता। पर यहां पर ज़्यादा नुकसान मुसलमानों का हुआ है, क्योंकि यहां मुसलमान माइनारिटी में हैं। करीब 50 से 60 घर हैं मुसलमानों के। वो भी बिखरे हुए। 

जब हमला हुआ हममें से कुछ लोगों ने अपनी सेफ्टी के लिए पत्थरबाज़ी की ताकि दंगाई घर में न घुस जाएं। हमारी जान बच जाए और घर में बहू-बेटियां सुरक्षित रहें। वो हेलमेट पहनकर, प्लाई लेकर फायरिंग करते हुए घरों में ताला तोड़कर घुसे। आदमी छतों से भागे। नीचे उन्होंने घरों में आग लगा दी। कम से कम पांच से छह घर और 15 से 20 दुकानें जला दी हैं। मुसलमानों की सब दुकानें जला दी गईं। पहले से उन्होंने मार्क किया हुआ था। 

हम सब ने 100 नंबर पर फोन किया, लेकिन कोई भी जवाब नहीं आया। पुलिस आती भी थी पर कुछ किया नहीं। पुलिस भी दंगाईयों के साथ थी। यहां से हम सबके परिवार जा चुके हैं। डर की वजह से हम यहां नहीं आते। यहां सिर्फ नमाज़ पढ़ने आते हैं और चले जाते हैं। आप जाकर देखिए सबके घर में ताला लगा है। अस्र की नमाज़ के बाद सब चले जाते हैं। फिर हमारे साथ ऐसा न हो जाए इस डर से लोग नहीं आ रहे। बिल्कुल भी सुरक्षा नहीं है। अब गिनती के 20-25 आदमी ही आ रहे हैं यहां वरना दोनों मंज़िल भरी रहती थीं नमाज़ियों से। 

राजू भाई की 84 साल की वालिदा का इंतकाल हुआ है जल जाने से। उनका घर पूरा बर्बाद हो चुका है। लिंटर टूट कर गिर गए हैं उनके घर के। दो-तीन और मकानों को भी इसी बुरी तरह से जलाया है। यहां लोगों के पास न पहनने को कपड़े हैं न खाने को कुछ। लोगों से ले-लेकर गुज़ारा कर रहे हैं। आज सात दिन हो गए हैं। सरकार ने कहा है कि मुआवज़ा मिलेगा। हम थाने में एफआईआर करवाने जा रहे हैं। मुआवजे के लिए लिखित एफआईआर मांग रहे हैं। और वो हमें मिल नहीं रही।

पहली बार जब वो आए तो 60-70 की संख्या में थे। तब हमने इकट्ठा होकर उन्हें वापस भगा दिया, लेकिन दोबारा वो 300-400 की तादात में आए तो हम उन्हें रोक नहीं पाए। फिर उन्होंने मस्जिद का दरवाज़ा तोड़कर जो चाहा वो किया। घन से मस्जिद के मोटे-मोटे ताले तोड़े हैं। छत पर जाकर जय श्री राम के नारे लगाए। पूरी मस्जिद में आग लगा दी।

गावड़ी गांव के लोग थे या बाहर के थे? पूछने पर बताते हैं कि इतनी भीड़ में कैसे पहचानेंगे कि बाहर के हैं या यहां के हैं। उन्होंने हेलमेट भी पहन रखे थे। 

पुलिस दो घंटे बाद आई। 10 मिनट रुकी और फिर चली गई। उन लोगों ने दोबारा फिर हमला किया। फिर पुलिस आई फिर जाने के बाद हमला कर दिया। एक ही दिन में तीन-चार बार हमला किया। पुलिस हमारी किसी की सुन नहीं रही थी। आती थी और यूं ही चक्कर लगा कर चली जाती थी। दंगाई अटैक के साथ गालियां दे-देकर बदतमीज़ी भी कर रहे थे। 

इमामुददीन सैफ़ी कहते हैं, ‘‘हम पर हमला हुआ है। ड्रोन लगा-लगा कर। हमीं पर इल्ज़ाम लगाए जा रहे हैं कि इनकी छतों पर पत्थर पड़े हैं। तुम घर में मारने आ जाओ हम कुछ नहीं करेंगे। इसका मतलब ये है कि तुम मारो हम मर जाएं। वैसे भी पत्थर हर ग़रीब की छत पर मिलेगा। कुछ भी बचता है तो गरीब रख लेता है। या तो सेफ्टी दो। वो आपके बस का नहीं है। फिर हम अपनी सुरक्षा कैसे करेंगे?

(जनचौक दिल्ली हेड वीना की रिपोर्ट।)

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