गंभीर अपराधों में आरोपितों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए केंद्र सरकार को नहीं दे सकते निर्देश: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को टिप्पणी की कि वह केंद्र सरकार को निर्देश नहीं दे सकता है कि गंभीर अपराधों के लिए चार्जशीट किए गए लोगों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाए। जस्टिस के.एम. जोसेफ और बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने  केंद्र सरकार से भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा।

गंभीर अपराध के आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोकने की मांग वाली याचिका पर पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को यह पहचान करने की जरूरत है कि कौन से अपराध गंभीर की श्रेणी में आते हैं। पीठ ने जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है।

पीठ ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन से कहा कि सबसे पहले केंद्र को गंभीर अपराधों की पहचान करने की जरूरत है। ये परिभाषित होने चाहिए। इसके बाद हम जुलाई में इस पर सुनवाई करेंगे। वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर शीर्ष अदालत ने पिछले साल 28 सितंबर को इस मामले में ‘विधि व न्याय मंत्रालय’, ‘गृह मंत्रालय’ और ‘चुनाव आयोग’ को नोटिस जारी किया था।

अश्विनी उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य में सुनवाई करते हुए पीठ ने यह भी संकेत दिया कि वह स्वयं इस आशय की घोषणा भी पारित नहीं कर सकती है। पीठ ने केंद्र सरकार से भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा। याचिका पर अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी।

केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन ने कहा कि एक आरोपी व्यक्ति दोषी साबित होने तक निर्दोष है और आरोप तय होने के बाद भी वह चुनाव लड़ सकता है। एएसजी ने कहा कि सीआरपीसी (आपराध प्रक्रिया संहिता) की विधायी संरचना उनके मामले को पेश करने के कई मौके देती है। परमादेश उचित नहीं होगा।

भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के वकील ने सूचित किया कि उसने चुनाव चिह्न आदेश अधिनियम में संशोधन की मांग वाली प्रार्थना के संबंध में अपना प्रतिवाद दायर किया था। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसने राजनीति से अपराधीकरण खत्म करने के लिए सक्रियता से कदम उठाए हैं और सिफारिशें भी की हैं। हालांकि राजनीति से अपराधीकरण को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए किसी भी अन्य कदम के लिए कानूनी संशोधनों की आवश्यकता होगी, जो उसके दायरे से बाहर है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में आयोग ने कहा कि उसने अपने ‘प्रस्तावित चुनावी सुधार 2016’ में अपनी 2004 की सिफारिश को दोहराया था कि अगर किसी व्यक्ति पर संज्ञेय अपराधों (जिसमें कम से कम पांच साल के कारावास का प्रावधान है) का आरोप लगाया गया हो और जहां आरोप तय किए गए हैं और जहां चुनाव से कम से कम छह महीने पहले मामले दायर किए गए हैं, उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित किया जाना चाहिए।

याचिका में संशोधन की मांग की गई है ताकि गंभीर अपराधों के आरोप पत्र में शामिल लोगों को मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों द्वारा टिकट दिए जाने से रोका जा सके। उपाध्याय ने तर्क दिया कि यह राजनीतिक दल थे जो वास्तव में नागरिकों के दैनिक जीवन के संदर्भ में शो चला रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में उपाध्याय की इसी तरह की याचिका पर नोटिस जारी किया था। उस याचिका में सजायाफ्ता व्यक्तियों के राजनीतिक दल बनाने और उसके बाद उसके पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने की मांग की गई थी।

याचिका में उपाध्याय ने केंद्र और चुनाव आयोग को यह निर्देश देने की मांग की कि गंभीर अपराध में जिन लोगों के खिलाफ आरोप तय हो चुके हैं और जिनके खिलाफ ट्रायल शुरू हो गया है, इन सभी को चुनाव लड़ने से रोके।

याचिका में दावा किया गया है कि विधि आयोग की सिफारिशों और अदालत के पूर्व के निर्देशों के बावजूद केंद्र तथा चुनाव आयोग ने इस सिलसिले में कदम नहीं उठाये हैं। याचिका में कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले 539 उम्मीदवारों में करीब 233 (43 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की चुनावी हलफनामे में घोषणा की थी।

गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों को रेखांकित करते हुए याचिका में कहा गया है कि घोषित गंभीर आपराधिक मामलों की संख्या में 2009 से 109 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें कहा गया है कि एक सांसद ने अपने खिलाफ 204 गंभीर आपराधिक मामले होने की घोषणा की, जिनमें गैर इरादतन हत्या, मकान में जबरन घुसना, लूट, आपराधिक भयादोहन आदि शामिल है।

याचिका में कहा गया है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का प्रतिशत और चुनाव जीतने की उनकी संभावना इन वर्षों में तेजी से बढ़ी है, जो खतरे की घंटी है।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जेपी सिंह
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