मणिपुर के मौजूदा हालात के लिए केंद्र और मणिपुर की सरकार जिम्मेदार: भाकपा माले जांच दल

पटना। मणिपुर में हिंसा और अनकही मानवीय पीड़ा की अंतहीन गाथा के लिए केंद्र व मणिपुर सरकार जिम्मेदार है। यह तथाकथित डबल इंजन वाली भाजपा सरकारों द्वारा पैदा की गई राजनीतिक उथल-पुथल हैरान करने वाली है। ये बातें मणिपुर के दौरे से लौटी भाकपा मामले की टीम ने एक संवाददाता सम्मेलन में कही। पार्टी की 8 सदस्यीय इस जांच टीम ने 10-13 अगस्त के बीच मणिपुर की इंफाल घाटी, कांगपोकपी और चुराचांदपुर जिलों के गांवों और राहत शिविरों का दौरा किया।

जांच दल का कहना है कि यह भारत की आज़ादी की 76वीं वर्षगांठ पर मणिपुर को दिया गया भाजपा का उपहार है, जिसके तहत घाटी में रहने वाले मैतेइयों और पहाड़ी हिस्से के बाशिंदे कुकी जातीय समुदायों को एक दूसरे से अलग कर दिया गया है। देश के इतिहास में पहले कभी किसी सरकार ने समाज के सामाजिक ताने-बाने को इस तरह से नष्ट नहीं किया था। जिसके परिणाम स्वरूप एक राज्य के भीतर सभी समुदायों को जातीय रूप से विभिन्न हिस्सों में जुदा-जुदा कर दिया गया है।

टीम ने कहा कि यह मामला इसलिए और ज्यादा गंभीर हो जाता है क्योंकि डबल इंजन वाली भाजपा सरकार ने इस अलगाव को एक ऐसे राज्य में निर्मित किया है, जो पिछले विवादों के बावजूद सामंजस्य स्थापित करने और एक साथ रहने में सक्षम था।

जांच दल का कहना है कि पिछले 3 महीने के अधिक समय से चल रहा जातीय अलगाव और हिंसा कुछ और नहीं बल्कि भाजपा सरकार के कामों का नतीजा है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह हिंसा को समाप्त करने में पूरी तरह से तो नकारे साबित हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो उनके भी कान काट लिये। जब मणिपुर जल रहा था तो मोदी फ्रांस और अमेरिका की यात्राएं कर रहे थे। संसद में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का अफसोसजनक जवाब इस संकट के हर पहलुओं पर विचार करने की जगह सिर्फ जुमलेबाजी साबित हुआ। जिसमें किसी तरह के किसी समाधान की दूर-दूर तक कोई गुंजाइश नहीं दिखती है।

राहत शिविरों की स्थिति का जिक्र करते हुए जांच दल ने कहा कि राहत शिविरों में स्थिति भयावह है। घाटी और पहाड़ियों के पार आंतरिक रूप से विस्थापित हजारों लोग विकट परिस्थितियों में रह रहे हैं। बुनियादी सुविधाओं का अभाव है और अपर्याप्त व्यवस्था इस बात को जाहिर करती है कि सरकार ने पीड़ितों से अपना पल्ला झाड़ लिया है।

जांच दल ने कहा कि विस्थापित मेइतियों के लिए घाटी में राहत शिविर खराब स्थिति में हैं। यह पता चला कि राज्य सरकार द्वारा इंफाल के मध्य में स्थित श्यामसाखी हाईस्कूल के राहत शिविर में प्रति व्यक्ति 80 रुपये के अलावा कुछ चावल और दाल दी जाती है, जो बेहद ही अपर्याप्त है। जांच दल ने यह भी पाया कि मोइरांग बाजार के राहत शिविर में कोई माकूल सुविधाएं प्रदान नहीं की जा रही हैं, सिर्फ 500 रुपये प्रति व्यक्ति अब तक वितरित किये गये हैं।

अकम्पट के स्कूल परिसर में संचालित राहत शिविर में भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। चुराचांदपुर में स्वयंसेवकों द्वारा संचालित युवा छात्रावास के राहत शिविर में कमरे अत्यधिक भीड़भाड़ वाले हैं, और संक्रामक बीमारियां तेजी से फैलने लगी हैं। शिविर में खसरा, चिकन पॉक्स, वायरल बुखार से ग्रसित होना लोगों के लिए रोजमर्रा की हकीकत है।

जांच दल ने आंतरिक रूप से विस्थापित 500 लोगों तक वाले राहत शिविरों में स्वच्छता का काफी अभाव पाया। अधिकांश राहत शिविर निवासियों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं और उन्हें दिन में केवल दो बार चावल और दाल दी जाती है। कांगपोकपी राहत शिविर में भी ऐसे ही हालात हैं, जहां उचित पोषण और स्वच्छता नहीं है। जिले में केवल एक अपग्रेड पीएचसी है जिसे जिला अस्पताल नामित किया गया है, लेकिन पर्याप्त डॉक्टर, स्टाफ और दवाइयां नहीं हैं।

जांच दल ने पाया कि घाटी और पहाड़ियों के बीच की सीमा और अघोषित नाकेबंदी ने बुनियादी राहत खाद्य पदार्थों, दवाओं सहित आवश्यक वस्तुओं के परिवहन को बुरी तरह से प्रभावित किया है, जिससे पहाड़ी जिलों के राहत शिविरों में हजारों आंतरिक रूप से विस्थापित कुकी प्रभावित हुए हैं। इससे घाटी के बाहर मैतेइयों की गतिशीलता पर भी असर पड़ा है।

जांच दल ने सीधे-सीधे सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि हिंसा और प्रभावित लोगों की जान-माल की हानि के लिए पूरी तरह सरकार दोषी है। यह बेहद शर्म की बात है कि सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा कि इन गंभीर और अमानवीय अपराधों की जांच के लिए बुनियादी कदम उठाए जाएं।

जांच दल ने कहा कि इस मानवीय त्रासदी के किसी भी संभव सियासी समाधान के लिए मुख्यमंत्री के बतौर बीरेन सिंह का इस्तीफा इस दिशा में पहला कदम होगा। जांच दल ने पीड़ित समुदायों से आपसी सभी दुश्मनी खत्म करने की अपील किया है। उसका कहना है कि ऐसा होने पर राहत शिविरों में लोगों की उचित देखभाल को सुनिश्चित किया सकेगा। यह वर्तमान गतिरोध को खत्म कर समाधान की दिशा में बढ़ने का कदम होगा।

जांच टीम में प्रतिमा इंग्हपी (भाकपा माले, कार्बी आंगलांग और उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन, ऐपवा), क्लिफ्टन डी रोज़ारियो (भाकपा माले, कर्नाटक व एडवोकेट), बिबेक दास (भाकपा माले, असम), सुचेता डे (भाकपा माले, दिल्ली), अवनि चोकशी (भाकपा माले, कर्नाटक), डॉ सरस्वती (दलित व नारी अधिकार कार्यकर्ता, कर्नाटक), कृष्णावेनी (अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ), मधुलिका टी (ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस), ने मणिपुर के प्रभावित गांवों और राहत शिविरों का दौरा किया।

जांच टीम के दो सदस्य प्रतिमा इंग्हपी और क्लिफ्टन डी रोज़ारियो शनिवार को पटना में उपस्थित थे और उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। संवाददाता सम्मेलन में उनके साथ आदिवासी संघर्ष मोर्चा के संयोजक व विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, एआइपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा, इंसाफ मंच के राज्य उपाध्यक्ष गालिब, आइलाज की संयोजक मंजू शर्मा और ऐपवा की राज्य सचिव अनिता सिन्हा भी उपस्थित थे।

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