बिहार में कोरोना का दूसरी गंभीर बीमारियों के रोगियों पर टूटा कहर

कोरोना का कहर दूसरे रोगों के गंभीर मरीजों पर टूटा है। राजधानी पटना के बड़े अस्पतालों की ओपीडी सेवाएं पहले दिन से ही बंद या सीमित हो गई हैं। अधिकतर निजी अस्पताल बंद हैं। अधिकतर पैथोलोजिकल लैब और दवा की दुकानें भी बंद हैं। यह स्थिति केवल राजधानी पटना की ही नहीं, जिलों की स्थिति भी इससे इतर नहीं है। आयुक्त और सिविल सर्जन के आदेश के बाद भी अधिकतर निजी अस्पताल और दवा की दुकानें नहीं खुली। आखिरकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकारी और निजी सभी अस्पतालों में आउटडोर और इमरजेंसी सेवाएं फौरन शुरू करने का आदेश देना पड़ा है।

कोरोना संक्रमण के अंदेशे में इमरजेंसी सेवाओं से सभी मरीजों को सीधे आइसोलेशन वार्ड में भेज दिया जाता है। कोरोना की जांच रिपोर्ट आने तक उचित चिकित्सा नहीं मिलने से मरीजों की मौत होने की घटनाएं भी हो चुकी हैं। सरकारी स्वास्थ्य सेवा में सबसे निचले स्तर पर कार्यरत जिन आशा कर्मियों की भूमिका बीमार लोगों को नीम-हकीमों के चक्कर में फंसने से बचाकर सरकारी अस्पतालों में भेजना होता है, राज्य स्वास्थ्य समिति उन आशा कर्मियों का उपयोग अभी बीमार लोगों को अस्पतालों में आने से मना करने में कर रही है। कोरोना के शोर में दूसरे रोगों के मरीजों को अस्पताल जाने से मना किया जा रहा है ताकि अस्पतालों में मरीजों की भीड़ नहीं लगे। भीड़ में कोरोना संक्रमण का खतरा है।  

बिहार में कोरोना को 17 मार्च को महामारी घोषित कर दिया गया। फिर एक दिन का देशव्यापी कर्फ्यू और 25 मार्च से पूरा देश बंदी के दौरान सभी अस्पतालों की आउटडोर और इमरजेंसी सेवाएं ठप्प पड़ी हैं। बाद में सरकारी अस्पतालों खासकर पीएमसीएच, आईजीआईएमएस और एम्स में इमरजेंसी सेवाएं तो शुरू हुई हैं। पर आउटडोर बंद पड़ा है। निजी अस्पतालों में पहले से भर्ती मरीजों का ही इलाज हो रहा है। नए मरीजों का इलाज नहीं किया जा रहा है।

सभी अस्पतालों में कैंसर जैसे गंभीर रोगियों की सर्जरी बंद है। सर्जरी ही नहीं, कीमो और रेडिएशन भी लगभग बंद है। पीएमसीएच ही नहीं, आईजीएमएस में भी कैंसर रोगियों का इलाज बंद है। पीएमसीएच में कैंसर विभाग के हेड डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि कैंसर रोगियों में ऐसे भी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इस कारण सर्जरी को टाला जा रहा है। वैसे पीएमसीएच के कैंसर विभाग को नए भवन में ले जाना है। कई मशीनें अभी वहां लगाई नहीं जा सकी हैं। इसलिए भी रेडिएशन और कीमो नहीं हो पा रहे। एम्स पटना में तो रेडिएशन मशीन ही छह महीने से खराब है। इसलिए वहां पहले से रेडिएशन बंद है। 

यह हालत केवल सरकारी अस्पतालों की नहीं है, सबसे बड़े निजी अस्पताल महावीर कैंसर संस्थान में भी सामान्य सर्जरी को टाला जा रहा है। अस्पताल की उप निदेशक डॉ. मनीषा सिंह ने बताया कि यहां केवल ऐसी सर्जरी की जा रही है जो मरीज की जान बचाने के लिए एकदम अपरिहार्य हो गई हैं। लेकिन सामान्य सर्जरी को टाले जाने से कैंसर रोगियों का मर्ज बढ़ रहा है, इसमें संदेह नहीं। अस्पताल में पीपीई किट की काफी कमी है। इसलिए डॉक्टरों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए सर्जरी को टाला जा रहा है। अस्पताल में संक्रमण न फैले, इसलिए पूरे अस्पताल को प्रतिदिन सेनिटाइज किया जा रहा है। भर्ती मरीजों को अस्पताल की ओर से खाना दिया जा रहा है ताकि वे बाहर न निकलें। 

एनएमसीएच को कोरोना के इलाज के लिए विशिष्ट अस्पताल घोषित होने के बाद पहले से भर्ती दूसरे रोगियों को या तो घर जाने के लिए कह दिया गया या फिर पीएमसीएच भेज दिया गया। निजी अस्पतालों में भी सामान्य रोगियों को चिकित्सा की सुविधा नहीं मिल पा रही है। अधिकतर निजी अस्पताल बंद हैं। कुछ बड़े निजी अस्पताल चल तो रहे हैं, पर सिर्फ इमरजेंसी ओपीडी चल रहा है। अधिकतर अस्पताल सामान्य मरीजों से दूरी बना रहे हैं।

आईजीआईएमएस टेली कांफ्रेंसिंग और वीडियो कांफ्रेंसिंग से मरीजों को सलाह दी जा रही है। पीएमसीएच और छोटे सरकारी अस्पतालों जैसे गार्डिनर रोड, राजवंशी नगर में ओपीडी चल रहे हैं, पर मरीजों की संख्या ही काफी कम है। लेकिन आम मरीजों के पैथोलाजिकल लैबों और दवा-दुकानों के बंद होने से अधिक कठिनाई है। डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के वैसे रोगी जिन्हें हर सप्ताह खून की जांच कराना हो रहा है, उनके सामने पड़े-पड़े रोग के बढ़ते प्रभाव को झेलने के सिवा कोई चारा नहीं।

इस स्थिति को देखते हुए पटना के आयुक्त और सिविल सर्जन ने दवा-दुकानों को खोलने का आदेश दिया। पर उनके आदेश का दुकानदारों पर असर नहीं पड़ा। बाद में निजी-अस्पताल और दवा-दुकान नहीं खोलने पर उनका लाइसेंस रद्द करने की धमकी आयुक्त ने दी है। इस धमकी का भी कोई असर पड़ता नजर नहीं आता। निजी अस्पताल, दवा-दुकानदार और पैथोलाजिकल लैबों के संचालक अपनी सुरक्षा को लेकर अधिक चिंतित नजर आ रहे हैं। हालत बिगड़ता देखकर मुख्यमंत्री ने स्वयं कमान थामी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के सभी अस्पतालों में इमरजेंसी सेवाएं तत्काल शुरु करने की हिदायत दी है। उनका यह बयान आज के अखबार में प्रमुखता से छपा है। बचाव में कहा गया है कि इमरजेंसी सेवाओं के बाद आउटडोर सेवाएं भी खोली जाएं ताकि सामान्य रोगियों के इलाज में कोई परेशानी नहीं हो।  

इधर कोरोना-संक्रमण के संदेह में आइसोलेशन वार्ड में भर्ती मरीजों की जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा में इलाज टालने से कई मरीजों की मौत हो गई है। इन्हें कोरोना की वजह से मृत नहीं माना जा सकता। इस बीच, बिहार स्वास्थ्य सेवा संघ के महासचिव डॉ. रणजीत कुमार ने बताया कि अस्पतालों में भीड़ कम करने की कवायद की जा रही है ताकि दूसरे सामान्य रोगियों को कोरोना के चपेट में आने से बचाया जा सके। 

अब तक बिहार में कोरोना के संदिग्ध मरीजों की संख्या कुल 65 हो पाई है जिसमें 26 मरीज ठीक होकर घर लौट गए हैं। 37 का इलाज जारी है। जिस एक मरीज की मौत हुई है, वह पहले से किडनी रोग की वजह से गंभीर हालत में था। पटना एम्स में उसकी मौत के बाद कोरोना पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई। उसके संपर्क में आने से जिन लोगों के संक्रमित होने का संदेह था, उनमें भी अधिकतर की रिपोर्ट निगेटिव आ गई है।

दिखता कुछ है, सच कुछ और होता है….

पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान,IGIMS में रविवार को कटिहार से आई राधा देवी तड़पती रही। उसके पति गजेंद्र सिंह डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों ने भर्ती लेना तो दूर, उसे देखना तक मुनासिब नहीं समझा। अस्पताल की इमरजेंसी में बेड भी खाली हैं, लेकिन मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। कटिहार से आए गजेंद्र सिंह का कहना है कि रविवार की सुबह राधा की तबीयत अचानक खराब हो गई। कटिहार में डॉक्टर से दिखाने की कोशिश की, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ। अंत में विवश होकर आईजीआईएमएस लाया था। निजी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने राधा की जान बचाई। राज्य सरकार के आदेश के बावजूद रविवार को आईजीआईएमएस में ओपीडी नहीं शुरू हुई। अधीक्षक डॉ.मनीष मंडल ने कहा कि अभी आदेश नहीं मिला है।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल पटना में रहते हैं।)

अमरनाथ झा
Published by
अमरनाथ झा