कोरोना वायरस संकट और होम्योपैथी

अभी तक पूरी दुनिया के किसी भी देश में कोविड-19 की किसी भी चिकित्सा पद्धति में कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। पूरी दुनिया में इस पर शोध हो रहा है। इसके बावजूद लोग कोरोना संक्रमण से ठीक हो रहे हैं और भारत में रिकवरी दर लगभग 48-49 फीसद के आसपास है। तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि बिना किसी सटीक दवा के लोग ठीक कैसे हो रहे हैं। इसके लिए कहा जा रहा है कि जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता या जीवनी शक्ति जितनी ज्यादा मजबूत है वे अव्वल तो कोरोना संक्रमण की चपेट में नहीं आते और यदि आ गये तो उनकी जीवनी शक्ति कोरोना को मात दे देती हैं। होम्योपैथी कोरोना ठीक करने का दावा तो नहीं करती पर वैकल्पिक इलाज की इस पद्धति में रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने और जीवनी शक्ति बढ़ाने की बहुत ही कारगर औषधियां हैं जो लक्षणों के आधार पर कोरोना से लड़ने में बहुत अहम सिद्ध हो सकती हैं।

चूंकि कोरोना वायरस कोविड 19 का न तो अब तक कोई इलाज मिल सका है न ही इससे निपटने के लिए अब तक कोई टीका बना है। ऐसे में लोग राहत के लिए वैकल्पिक दवाओं का रुख़ कर रहे हैं लेकिन इसका ये अर्थ कतई नहीं है होम्योपैथी में कोरोना वायरस का इलाज है। लेकिन होम्योपैथी में रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने और जीवनी शक्ति बढ़ाने की बहुत ही कारगर औषधियां हैं जो लक्षणों के आधार पर कोरोना से लड़ने में सक्षम हैं।

कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति जल्दी नियंत्रण में आ जाएगी ऐसी उम्मीद नहीं दिखती क्योंकि वायरस प्रकृति की ऐसी ताकत से लैस है जिसमें उन्हें किसी एन्टी वायरस दवाओं से मार पाना लगभग नामुमकिन है। हम जितना वायरसों के खिलाफ दवा ईजाद करते जाएंगे ये वायरस और मजबूत होते जाएंगे। वायरसों और इन्सानों या जीवों के बीच यह युद्ध थोड़े समय के लिए विराम ले सकता है, लेकिन इससे निश्चिन्त नहीं हुआ जा सकता कि मनुष्य दवा और वैक्सीन के बदौलत वायरसों पर विजय पा लेगा। 1918-19 का स्पैनिश फ्लू याद कर लीजिए। 5 से 7 करोड़ लोग पूरी दुनिया में मरे थे।

यह कोरोना वायरस भी उसी स्पैनिश फ्लू के खानदान का नया ताकतवर वारिस है। मारने की थ्योरी से आगे सोचिए वायरस के साथ एक मजबूत जीवनी शक्ति वाला मनुष्य या जीव ही जी सकता है। अमरीकी सूक्ष्म जीव विज्ञान अकादमी भी मान रही है कि वायरस क्रमिक विकास की प्राकृतिक ताकत से लैस है और वे हमेशा बिना रुके बदलते-बढ़ते रहेंगे और दवाओं पर भारी पड़ेंगे? इसलिए इन वायरसों से निपटने का तरीका कुछ नया सोचना होगा।

चूंकि ये वायरस अब हौआ बन चुके है क्योंकि आज इनका नाम ऐसे लिया जा रहा है, मानो ये किसी आतंकवादी संगठन के सदस्य हों। विज्ञापनों में भी वायरस को विध्वंसक दुश्मन के रूप में दिखाया जाता है ताकि इन्हें मारने वाले महंगे रसायन बेचे जा सकें। कोरोना वायरस के मामले में भी यही हो रहा है। आज वायरस के घातक असर से लोगों को बचााने के लिये नये चिंतन की जरूरत है। क्या हम वायरस, उसके प्रभाव, रोग और उपचार की विधि पर स्वस्थ चिंतन और चर्चा के लिये तैयार हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक अध्ययन बताता है कि-

(1) 6 फीसदी लोग इस वायरस के कारण गंभीर रूप से बीमार हुए, इनमें फेफड़े फेल होना, सेप्टिक शॉक, ऑर्गन फेल होना और मौत का जोखिम था।

(2) 14 फीसदी लोगों में संक्रमण के गंभीर लक्षण देखे गए, इनमें सांस लेने में दिक्कत और जल्दी-जल्दी सांस लेने जैसी समस्या हुई।

(3) 80 फीसदी लोगों में संक्रमण के मामूली लक्षण देखे गए, जैसे बुखार और खांसी, कइयों में इसके कारण निमोनिया भी देखा गया।

80 फीसदी लोगों के संक्रमण के लक्षण खांसी, सांस लेने में तकलीफ, गले में खराश, बुखार आना, सिर दर्द, नाक बहना, जुकाम, सीने में जकड़न आदि लक्षणों के उपचार हेतु होम्योपैथी चिकित्सा ही एक ऐसी पद्धति है जो रोग के इन लक्षणों के आधार पर आप को कोरोना से लड़ने के लिए तैयार कर सकती है।

-आर्सेनिक एल्बम-30- एक चम्मच पानी में दो बूंद, सुबह खाली पेट एक दिन छोड़ कर तीन दिन तक। (आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सेन्ट्रल काउंसिल रिसर्च फॉर होम्योपैथी (सीसीआरएच) के वैज्ञानिको का परामर्श)।

-कैम्फोरा-1एम- जब रोगों के लक्षण शरीर में तीव्र गति से उग्र होते हुए निरन्तर बदलते रहते हों, यहां तक कि खांसी, जुकाम, छींके, ज्वर आदि से आरम्भ कर मरणासन्न अवस्था का पूरा चित्र उपस्थित कर देती हो। ऐसी स्थिति में कैम्फर 1एम 1 खुराक रोकथाम हेतु औषधि लेनी चाहिए।

-जस्टिसिया 3ग-इम्युनिटी हेतु-श्वांस नली की उग्र संकुचित कष्ट प्रारम्भिक अवस्थाओं के लिए एक सर्वोत्तम औषधि है यह इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) को मजबूत बनाता है।

ये दवाएं स्वयं न लें बल्कि किसी सुयोग्य होम्यो चिकित्सक की राय से लें और होम्योपैथी के स्वयंभू विशेषज्ञों से बचें। सोशल मीडिया पर अधकचरी सलाह से बचें और भ्रम में न पड़ें क्योंकि होम्योपैथी में प्रत्येक व्यक्ति के विभिन्न लक्षणों के आधार पर चिकित्सा की जाती है। इसमें कोई सर्वमान्य फार्मूला नहीं है।

होम्योपैथी के आविष्कारक डॉ. सैमुअल हैनिमैन (1755-1843), स्माल पॉक्स का ईजाद करने वाले ब्रिटिश चिकित्सक एडवर्ड जेनर (1749-1823) तथा फ्रांस के सूक्ष्म जीव वैज्ञानिक लुइस पास्चर (1822-1895) के शोधों की साम्यता और समय तथा परिस्थितियों को ध्यान से पढ़े तो आज लगभग 170 वर्षों बाद कोरोना वायरस महामारी ने वैसी ही परिस्थितियां दुनिया के सामने उत्पन्न कर दी है।

यह वैश्विक मानवीय संकट की घड़ी है। अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर सभी चिकित्सक और चिकित्सा संगठन तथा पद्धतियां सामने आएं और आपसी समन्वय से मरते लोगों के लिए ‘पेनासिया‘ (रामबाण दवा) की तलाश करें। यह सम्भव है, जरूरत है केवल पूर्वाग्रह को छोड़कर आगे आने की। पूरी दुनिया इस पहल का स्वागत करेगी। विश्व संकट की घड़ी में यह एक सुनहरा अवसर भी है।

 (प्रोफेसर (डॉ.) एसएम सिंह प्रयागराज स्थित श्रीसांई नाथ परास्नातक होम्योपैथी संस्थान के निदेशक हैं।)

डॉ. एसएम सिंह
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