कोविड-19 के चलते अनाथ हुए बच्चों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि दें :सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे उन बच्चों तक पहुंचें जो कोविड-19 के कारण अनाथ हो गए हैं। ऐसे अनाथ हुए बच्चों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि का भुगतान करें। कोर्ट ने कहा कि अनाथ हुए बच्चे मुआवजे का दावा करने के लिए आवेदन जमा करने की स्थिति में नहीं हो सकते हैं और इसलिए राज्य के अधिकारियों को उन तक पहुंचना चाहिए। बाल स्वराज पोर्टल पर राज्यों द्वारा अपलोड किए गए आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने अदालत को बताया है कि महामारी में लगभग 10,000 बच्चे अनाथ हो गए हैं।

इस पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने आदेश दिया,जिसमें कहा गया है कि यह बताया गया है कि पूरे देश में और बाल स्वराज पोर्टल पर अपलोड की गई जानकारी के अनुसार लगभग 10,000 बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है, इसलिए उनके लिए आवेदन करना या मुआवजे के लिए दावा करना बहुत मुश्किल होगा। हम संबंधित राज्यों को निर्देश देते हैं कि उन बच्चों तक पहुंचें जिन्होंने अपने माता-पिता/जीवित माता-पिता दोनों को खो दिया है और पहले से ही बाल स्वराज पोर्टल पर अपलोड किए गए हैं ताकि उन्हें मुआवजा दिया जा सके। इसके साथ ही संबंधित राज्यों को निर्देश देते हैं कि दर्ज की गई मौतों की संख्या के साथ-साथ बाल स्वराज पोर्टल पर अपलोड की गई जानकारी को भी साझा करें।

पीठ गौरव कुमार बंसल बनाम भारत संघ के मामले पर विचार कर रही थी, जिसमें वह COVID-19 मौतों के लिए अनुग्रह राशि के वितरण की निगरानी कर रही है। इससे पहले, पीठ ने राज्यों को प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में आवेदन प्रक्रिया का व्यापक प्रचार करने का निर्देश दिया था ताकि पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा योजना से अवगत कराया जा सके। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्यों को तकनीकी आधार पर मुआवजे के दावों को खारिज नहीं करना चाहिए।

गौरव बंसल बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा COVID मौतों के लिए 50,000 रुपये की मुआवजे की सिफारिश को मंजूरी दे दी है। मामले को 4 फरवरी, 2022 के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

कोरोना महामारी से मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने में राज्य सरकारें देरी क्यों कर रही हैं? राज्य इसके लिए कुछ भी कारण बताएँ, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने समय पर मुआवजा देने में विफल रहने के लिए राज्य सरकारों की खिंचाई की है। पीठ ने राज्यों से मुआवजा देने के लिए अपने प्रयास तेज करने को कहा है। मामले में अब 4 फ़रवरी को सुनवाई होगी। इस तारीख़ से पहले राज्यों द्वारा नए हलफनामे दाखिल किए जाने की उम्मीद है।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल कहा था कि जिला प्रशासन के पास आवेदन प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि उन परिवारों को वितरित की जानी चाहिए जिन्होंने महामारी में सदस्यों को खो दिया। लेकिन इतने लंबे समय बीत जाने के बाद भी पीड़ित परिवारों को सहायता राशि नहीं मिल पाई है। माना जा रहा है कि राज्यों ने इसमें तेजी नहीं दिखाई है।

पंजाब, हिमाचल प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में कोविड मौतों को लेकर मुआवजे के कम दावों को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने चिंता जताई। उसने राज्यों से उन गरीब और ज़रूरतमंद परिवारों तक पहुंचने के लिए आधार कार्ड और एसएमएस का उपयोग करने के लिए कहा, जो मुआवजे की योजना के बारे में भी नहीं जानते होंगे।

पीठ ने आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया और पूछा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य सचिव ने वितरण में देरी के लिए अदालत से माफी मांगी और कहा कि यह आंशिक रूप से गलत पते और नाम दर्ज किए जाने के कारण आवेदनों को जल्दबाजी में दायर किए जाने के कारण हुआ। उन्होंने इसे ठीक करने के लिए कोर्ट से दो हफ्ते का समय मांगा।

पीठ ने कहा कि वह बिहार द्वारा दिए गए कोविड -19 की मौत को खारिज करती है और कहा कि ये वास्तविक आंकड़े नहीं बल्कि सरकारी आंकड़े हैं। पीठ ने बिहार सरकार की ओर से पेश वकील से कहा, ‘हम यह नहीं मानने वाले हैं कि बिहार राज्य में केवल 12,000 लोगों की मौत कोविड के कारण हुई है।’

पीठ ने राज्य के क़ानूनी सेवा अधिकारियों को उन परिवारों से संपर्क करने के लिए कहा जिन्होंने कोरोना से अपने प्रियजनों को खो दिया था। पीठ ने अनाथ बच्चों के मामले का भी संज्ञान लिया। इसने कहा कि यह देखते हुए कि कोरोना से अनाथ हुए बच्चों के लिए मुआवजे के लिए आवेदन जमा करना बहुत मुश्किल होगा, पीठ ने राज्यों से बच्चों से संपर्क करने के लिए कदम उठाने को कहा। पीठ ने कहा कि बच्चों के मामले में सरकारें यह सुनिश्चित करने में अधिक जिम्मेदारी लें कि उन्हें मुआवजा मिले और यह किसी और द्वारा दावा नहीं किया जाए या दावा खारिज नहीं किया जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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