कोविशील्ड, फाइजर, जॉनसन की वैक्सीन को भेदने में ओमीक्रोन कामयाब

दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका द नेचर में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि दक्षिण अफ्रीका में जिन लोगों को ओमीक्रोन का संक्रमण हुआ, उनमें कुछ ने जॉनसन एंड जॉनसन, कुछ ने फाइजर-बायोएनटेक और कुछ ने ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) वैक्सीन की डोज ले रखी थी। यानि, ओमीक्रोन इन तीनों टीकों को भेदने में सफल रहा है। तो क्या मान लिया जाए कि ओमीक्रोन के सामने वैक्सीन का कोई महत्व नहीं रह गया है? 

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि पिछले दो सालों में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के ईलाज की जो पद्धतियां इजाद की गई हैं, उनका ओमीक्रोन मरीजों के लिए भी उपयोगी साबित होना चाहिए। इस वैश्विक संगठन के मुताबिक, कोर्टिकोस्ट्रॉइड्स और आईएल6 रिसेप्टर ब्लॉक करने वाले इलाज के तरीके नए वेरियेंट के मरीजों पर भी कामयाब होने चाहिए। हालांकि, दूसरे तरीकों के इलाज कितने प्रभावी रहेंगे, इसका आकलन करना होगा।

गौरतलब है कि ओमीक्रोन के अलावा जो चार अन्य वेरियेंट ऑफ कन्सर्न हैं, वो सभी पिछले साल मई से नवंबर महीने के बीच मिले थे। यानी, ओमीक्रोन करीब-करीब एक साल के अंतराल के बाद आया है।

यानि ओमीक्रोन ने एक साल के लंबे अंतराल का इस्तेमाल म्यूटेशनों के साथ मजबूत गठजोड़ करने में किया है। यही वजह है कि अब तक इसके 50 म्यूटेशनों का पता चल चुका है जबकि भारत में कोरोना की दूसरी लहर में तबाही मचाने वाले डेल्टा वेरियेंट के इसके आधे म्यूटेशन मिले थे। ओमीक्रोन के 50 म्यूटेशनों में 32 स्पाइक प्रोटीन में पाए गए हैं जो डेल्टा में 10 थे। यह चिंता बढ़ाने वाली बात है क्योंकि ज्यादातर मौजूदा कोरोना वैक्सीन भी वायरस की पहचान स्पाइक प्रोटीन के जरिए ही करती हैं। अब जब स्पाइक प्रोटीन में ही म्यूटेशन आ गया तो वैक्सीन को वायरस की पहचान करने में मुश्किल आएगी। यही वजह है कि ओमीक्रोन के कोरोना वैक्सीन को भी बहुत हद तक निष्प्रभावी करने की बातें हो रही हैं। चिंता की एक और बात है कि स्पाइक प्रोटीन के उस हिस्से में भी ओमीक्रोन के 10 म्यूटेशन पाए गए हैं, वायरस जिसका इस्तेमाल इंसानी शरीर के ऊतकों (Cells) में घुसने के लिए करता है। डेल्टा में ऐसे सिर्फ दो म्यूटेशन पाए गए थे। इन्हीं वजहों से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमीक्रोन को तुरंत वेरियेंट ऑफ कन्सर्न घोषित कर दिया।

प्रतिष्ठित विषाणु विज्ञानी शाहिद जमील ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे अपने लेख में कहा है कि, ‘ओमीक्रोन सेल में प्रवेश दिलाने वाले स्पाइक प्रोटीन के हिस्से में भी काफी म्यूटेशन कर लिए हैं। इंसानी कोशिकाओं में वायरस जितना आसानी से प्रवेश करेगा, उतनी ज्यादा उसकी संख्या बढ़ेगी और उतनी ज्यादा रफ्तार से दूसरे लोगों को संक्रमित भी कर पाएगा।’

हालांकि कुछ शुरुआती ख़बरों में कहा गया कि ओमीक्रोन संक्रमण फैलाने के लिहाज से डेल्टा के मुकाबले छह गुना तेज है, लेकिन अभी इसकी पुष्टि के लायक पर्याप्त आंकड़े नहीं मिल पाए हैं। WHO ने अब तक यही कहा है कि ओमीक्रोन ज्यादा संक्रामक है और इसके गंभीर नतीजे देखने को मिल सकते हैं। ओमीक्रोन वेरियंट अब तक 15 देशों में फैल चुका है। 

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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