दलितों-आदिवासियों के लिए शेष भारत से बेहतर रहा है जम्मू-कश्मीर, लेकिन अब क्या होगा?

भारत सरकार का गृह मंत्रालय हर साल देश में हुए अपराधों की जानकारी देता है। इसके लिए एक एजेंसी है नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो। इस एजेंसी द्वारा जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि जहां एक ओर पूरे देश में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ उत्पीड़न की घटनाओं में वृद्धि हो रही है वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर शेष भारत की तुलना में सबसे बेहतर रहा है। 
एनसीआरबी द्वारा जारी रिपोर्ट ‘क्राइम इन इंडिया-2016’ में 2014 से लेकर 2016 तक का पूरा विवरण दिया गया है। इसके मुताबिक वर्ष 2014 में बिहार में दलितों के खिलाफ अत्याचार के 7886 मामले दर्ज हुए। वर्ष 2015 में वहां 6367 और वर्ष 2016 में 5701 मामले दर्ज किए गए।
दलितों के ऊपर अत्याचार के मामले में बिहार से आगे उत्तर प्रदेश है जहां वर्ष 2014 में 8066, वर्ष 2015 में 8357 और वर्ष 2016 में यह बढ़कर 10426 हो गया। 

ध्यातव्य है कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने बाद के आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए हैं। 
एक नजर गुजरात पर डालते हैं जहां के नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं और अमित शाह गृहमंत्री। वर्ष 2014 में यहां दलितों के ऊपर अत्याचार के 1094 मामले दर्ज किये गये। वर्ष 2015 में यह संख्या 1010 और वर्ष 2016 में यह बढ़कर 1322 हो गया।
अब एक निगाह जम्मू-कश्मीर पर। बीते 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 पेश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अपने संबोधन में कहा कि अनुच्छेद-370 के कारण जम्मू-कश्मीर पर तीन परिवारों का कब्जा रहा और इसका सबसे अधिक शिकार दलित और पिछड़े समाज के लोग हुए। जबकि उनके ही विभाग के द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2014 में दलितों के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया। वर्ष 2015 में भी यह संख्या शून्य रही। वर्ष 2016 में केवल एक मामला दर्ज किया गया।

आदिवासियों यानी अनुसूचित जनजातियों के ऊपर अत्याचार के मामले में भी जम्मू-कश्मीर सबसे बेहतर राज्य था। राज्य इसलिए कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 संसद के दोनों सदनों के द्वारा पारित किए जाने और 7 अगस्त को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर अब दो केंद्र शासित राज्यों में बंट चुका है। 
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 से लेकर 2016 तक जम्मू-कश्मीर में किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्य के खिलाफ कोई अत्याचार नहीं हुआ। जबकि वहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं। दूसरी ओर देश के अन्य राज्य यथा गुजरात में वर्ष 2014 मं 223 आदिवासियों के खिलाफ जुल्म के मामले दर्ज हुए। वर्ष 2015 में यह संख्या 248 और वर्ष 2016 में यह संख्या 281 रही। 

बहरहाल, भले ही हिंदुत्व के उन्माद में भाजपा पूरे देश को बरगलाने में सफल हो चुकी है कि अनुच्छेद – 370 के कारण जम्मू-कश्मीर दलितों और आदिवासियों के लिए दोजख के समान था। लेकिन सच्चाई उसके अपने ही आंकड़े बयां करते हैं। ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि अनुच्छेद-370 के खात्मे के बाद क्या होगा।

जवाब बहुत जटिल नहीं है। जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने संबोधन में लोकसभा में भी कहा कि अब जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग भी जमीन खरीद सकेंगे, ऐसे में इसकी संभावना प्रबल हो जाती है कि आने वाले समय में वहां बाहरी लोगों का हस्तक्षेप बढ़ेगा और इसका असर वहां की सामाजिक आबोहवा पर भी पड़ेगा। इसका शिकार दलित और आदिवासी होंगे। 

(लेखक नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस, नई दिल्ली के हिंदी संपादक हैं।)

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