आतंकवाद पंजाब की सरजमीं से कभी गया ही नहीं। किसी न किसी रूप में और किसी बहाने वह जिंदा होने का सुबूत दर्ज करवाता रहता है। बेशक अब उसका वह रौब कायम नहीं रहा जो पहले था। आम नौजवान उसकी तरफ आकर्षित नहीं होते। अमृतपाल सिंह खालसा सरीखों के जरिए कोशिशें लगातार जारी रहती हैं लेकिन अंततः खालिस्तानी आतंकवाद का नाम रह जाता है। छिट-पुट या कभी-कभार बड़ी घटनाओं के अलावा कुछ नहीं होता।
पहले आतंकवाद कहीं भी दस्तक देकर मौत के दस्तखत कर देता था लेकिन अब वह आलम नहीं रहा। आतंकवाद की जगह ले ली है नशों ने। इन दिनों पंजाब में अलगाववादी आतंकवाद से भी ज्यादा घातक और जानलेवा यह नशा साबित हो रहा है। सरकार अनजान नहीं है। बेबस जरूर है। तमाम सख्ती के बावजूद ‘उड़ता पंजाब’ और ज्यादा उड़ रहा है और इसकी रफ्तार थम नहीं रही। समकालीन पंजाब की सबसे बड़ी अलामत ‘नशा’ हैं।
सबसे पहले देखते हैं कि एनसीआरबी के आधिकारिक आंकड़े क्या कहते हैं। एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2017-2021 के दौरान पंजाब में 272 मोतें नशे से हुईं। मरने वाले ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के नौजवान थे। 2017 में 71, 2018 में 78, 2019 में 45 लोगों को नशे के दानव ने निगल लिए। 2020 में सर्वे नहीं हुआ। सो उस साल का खाना खाली है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2017 से 2019 तक नशे के जहर के चलते मरने वालों में 18 से 30 साल की आयु वर्ग के युवा थे। 122 की उम्र नाबालिग थी और 59 की उम्र 30 से 45 के बीच। उसी दौरान 45 से 60 के बीच और 8 व 60 साल से ऊपर उम्र के 2 लोगों की अकाल मृत्यु हुई। मृतकों में 14 से 18 साल के तीन युवा शामिल थे। नशा करने वाले तमाम लोग बेरोजगार थे या फिर कर्ज की दलदल में गहरे तक धंसे हुए थे। एनसीआरबी की ओर से 2022 और 23 के आंकड़े आने बाकी हैं।
एनसीआरबी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि ताजा आंकड़ें हैरान कर देने वाले हैं। इन आंकड़ों से नशों की अलामत के चलते मौत के मुंह में समा गए तमाम लोगों का पता नहीं चलता। इसलिए कि अस्सी प्रतिशत ज्यादा लोग नशे से मरे अपने परिजनों की रिपोर्ट पुलिस स्टेशन में अथवा सिविल अस्पताल में दर्ज नहीं करवाते। वे नहीं चाहते कि मृतक का पोस्टमार्टम हो और बदनामी हो। लिहाजा नशे के जहर से मरने वालों की मौत की वजह गुमनाम बनी रहती है।
जानकारी के मुताबिक नशे का सबसे ज्यादा प्रभाव सूबे के मालवा इलाके में है। यहां बेरोजगारों और कर्जदारों की तादाद भी अन्य इलाकों की अपेक्षा कुछ ज्यादा है। मालवा में बीते 19 महीनों में 222 लोगों पर नशा अपना कफन डाल गया। यह सिलसिला अनवरत जारी है। सरहदी शहर फिरोजपुर पाकिस्तान की सीमा से सटा हुआ है और वहां रोज नशों की पाक से आई बड़ी पकड़ी जाती है।
यहां पाकिस्तान से नशा विभिन्न स्रोतों के जरिए आता है। आजकल सबसे ज्यादा ड्रोन के जरिए आ रहा है। दोनों तरफ के तस्कर बाढ़ से फैली अफरा-तफरी का सहारा भी ले रहे हैं। बीएसएफ के एक अधिकारी के अनुसार जितना नशा पकड़ा जाता है, उससे कहीं ज्यादा स्थानीय तस्करों तक पहुंच जाता है। 2022 में फिरोजपुर के ग्रामीण इलाकों में 56 लोगों ने नशों के चलते अपनी जान गंवाई। मोगा में 47 और बठिंडा में 32 लोग मारे गए।
पुलिस हेडक्वार्टर के सूत्रों के मुताबिक 16 मार्च 2021 से अब तक 1239.49 किलो हेरोइन, 1044.31 किलो अफीम और 12.33 करोड़ रुपये की ड्रग मनी पुलिस ने पकड़ी है, जो रिकॉर्ड है। सर्वविदित है कि सरकारी आंकड़े, खासतौर से पुलिस की ओर से दिए गए आंकड़े अक्सर आधे-अधूरे होते हैं।
आतंकवाद के दौरान भी मौत का ऐसा नंगा तांडव नहीं होता था; जैसा जानलेवा नशे के चलते पंजाब में इन दिनों हो रहा है। एसआईटी के गठन के बावजूद यह काला कारोबार नहीं रुक रहा तो इसके पीछे पिछली सरकारों के वक्त बना नेक्सस है। उस वक्त सब जानते थे कि पुलिस-तस्करों-सियासतदानों का गठजोड़ पंजाब की जवानी को तबाह कर रहा है। नशों के कारोबारी चौतरफा फैले हुए थे। उस नेक्सस के अंश अभी भी यथावत कायम हैं।
मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनके मंत्रियों तथा विधायकों पर फिलहाल इस बाबत कोई दाग नहीं है लेकिन जो पंजाब में मिला, उसमें नशों का छठा दरिया बहता था और साफ छवि वाले पुलिस अधिकारियों को उसे सुखाने में यकीनन वक्त लगेगा। एसआईटी ने इस सिलसिले में कुछ पूर्व पुलिस अधिकारियों और ‘वरिष्ठ’ कहलाने वाले नेताओं को तस्करों द्वारा मुहैया कराई गई जानकारी के आधार पर पकड़ा भी है लेकिन पूरा सुराग उसकी पहुंच से अभी बाहर है।
पंजाब के अनेक गांव ऐसे हैं जहां हर तीसरे घर में नशा बिकता है। एसआईटी कई बार दबिश दे चुकी है लेकिन थोड़े दिन की रोक के बाद मौत का सामान फिर बिकने लगता है। पंजाब के एक एडीजीपी (फिलहाल अपना नाम नहीं देना चाहते और नशों पर किताब लिख रहे हैं) का कहना है कि ‘उड़ता पंजाब’ की वजह से अब हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान भी उड़ रहे हैं।
सख्ती के चलते नशों के सौदागरों ने पंजाब से बाहर अपने ठिकाने बना लिए हैं और अब यहां नशा स्टोर नहीं किया जाता बल्कि जरूरत के मुताबिक नए से नए जरिए से भेजा जाता है। नशों के दाम बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। नतीजतन अच्छे-अच्छे घरों के युवा अपराधी बनते जा रहे हैं। यह अराजकता नीचे ही नीचे बह रही है।
एक एनजीओ से जुड़े प्रभात कुमार शर्मा के अनुसार नशा रोकने के लिए मौजूदा सरकार ने अपरिहार्य होने के बावजूद अलग से बजट नहीं रखा। 2 सालों में नशे के खिलाफ अभियान के बजट को हेल्थ बजट में जोड़ा गया। 2023-24 में हेल्थ बजट 4,781 करोड रुपये रखा गया। जबकि जरूरत ज्यादा की थी। नशा मुक्ति केंद्र जैसे-तैसे चल रहे हैं।
सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों से लोग दूर रहते हैं और निजी नशा मुक्ति केंद्र दरअसल यातना शिविर हैं। नशा करने वाले मरीजों से वहां मारपीट की जाती है। इलाज के नाम पर गुंडागर्दी होती है। ऐसे में क्या किया जाए? इसका फौरी माकूल जवाब किसी के पास नहीं। बस आश्वासन हैं या कयास। नशों के चलते हो रही नौजवानों की मौतों ने गोया गांवों की रूह गायब कर दी है।
बरनाला के गांव ढीलवां की विधवा परमजीत कौर के इकलौते बेटे को नशे ने निगल लिया। वह अब सूने घर में अकेली रह गई हैं। उसका नौजवान बेटा ‘चिट्टा’ पीता था। जब मालूम हुआ, तब बात बहुत आगे चली गई थी। वापसी का कोई रास्ता नहीं बचा और अंततः मौत ने उस घर में डेरा जमा लिया। परमजीत ने ठान लिया है कि वह नशा तस्करों के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगी। बेटे की अंतिम रस्म के दिन वह ‘चिट्टा मुक्त कमेटी’ में सक्रिय कार्यकर्ता के तौर पर शामिल हो गईं।
बठिंडा के गांव घुम्मन कलां की बुजुर्ग महिला मनजीत कौर के दो किशोरावस्था से जवानी की तरफ बढ़ते बेटों को नशों ने बेमौत मार दिया। पहले नशे के चलते उसके पति की मौत हो गई और अब उसके दोनों जवान बेटे रणजीत सिंह और हरजिंदर सिंह नशे का जानलेवा शिकार हो गए। नशे की लत के चलते उन्होंने अपनी सारी जमीन बेच दी थी। गांव की महिलाओं ने अब तस्करों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का फैसला किया है। इस गांव में कई रणजीत सिंह और हरजिंदर सिंह हैं। मौत कभी भी उन्हें अपने आगोश में ले सकती है।
सनसनीखेज है कि अमृतसर के गांव बराड़ की मजदूर औरत सुखविंदर कौर अपने चार बेटे नशे की वजह से गंवा चुकी हैं। वह अपनी पोतियों के साथ सूने घर में रहने को मजबूर हैं। उनके भविष्य की फिक्र उन्हें चैन से जीने नहीं दे रही। भुच्चोकलां के गांव तूंगवाली का चौकीदार गुरदास सिंह अपने घर को ‘चिट्टे’ से बचा नहीं सका। गुरदास सिंह का बेटा अर्शदीप और भतीजा हनीप्रीत को नशे ने मौत के हवाले कर दिया।
गांव वालों ने अब नशा बेचने वालों के खिलाफ मुहिम शुरू की है। गांव के नौजवान जगदीप काला के अनुसार कोई महीना ऐसा नहीं जाता, जब नशे की वजह से कोई नौजवान न मरता हो। मानसा के गांव जोगा का नौजवान रवि कुमार इसी वजह से रुखसत हो गया। उसकी विधवा जसप्रीत के हिस्से अब दुख और तकलीफें ही बची हैं।
ये कुछ बानगियां हैं, यह बताने के लिए कि नशे के चलते पंजाब के चप्पे-चप्पे पर मौत मंडरा रही है। वर्तमान और अतीत को देखकर तो यही लगता है कि मौत के खेल का यह सिलसिला तमाम कवायद के बावजूद हाल-फिलहाल तो बंद नहीं होने वाला।
(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)