ग्राउंड रिपोर्ट: आयुष्मान कार्ड धारक होने के बावजूद नहीं मिल रहा गरीबों को बेहतर इलाज

सीतापुर। करीब साढ़े चार साल पहले भारत सरकार देश में एक बड़ी स्वास्थ्य योजना लेकर आई जिसका नाम था ‘प्रधानमन्त्री आयुष्मान भारत योजना’ जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पांच लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराना था। इस योजना के तहत कोई भी गरीब व्यक्ति सरकारी या निजी अस्पताल में पांच लाख तक का फ्री ईलाज प्राप्त कर सकता है।

कुछ राज्यों को छोड़कर देश के लगभग हर राज्य ने इसे लागू किया। जिसमें सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश भी अग्रणी भूमिका में शामिल था। तब प्रदेश में योगी सरकार ने अपना कार्यकाल शुरू ही किया था। आज साढ़े चार साल बाद जब इस योजना का आकलन किया जाता है तो योगी सरकार इसे अपनी एक बड़ी उपलब्धि मानते हुए आयुष्मान कार्ड के जरिये गरीबों को बेहतर ईलाज देने का दावा करती है।

बेशक यह एक बड़ी और लाभकारी स्वास्थ्य योजना है लेकिन दावे वास्तविकता के धरातल में कितने पुख्ता हैं इसकी पड़ताल के लिए जब यह रिपोर्टर सीतापुर जिले के कुछ गांवों में पहुंची तो तस्वीर उस दावे के बिलकुल उलट थी जो किया जा रहा है।

सीतापुर जिले के बिसवां ब्लॉक के तहत आने वाले कंदुनी गांव के रहने वाले मुरली की तबीयत अक्सर खराब रहती है। उन्हें हाईड्रोसिल है, फेफड़ों की भी समस्या है और खांसी भी है। मात्र 48 साल की उम्र में बीमारियों के चलते उनका शरीर जर्जर हो चुका है। मुरली कहते हैं वह आयुष्मान कार्ड धारक तो हैं लेकिन आज तक उन्हें इसका लाभ नहीं मिला।

कंदुनी गांव के मुरली अपना आयुष्मान कार्ड दिखाते हुए

वह कहते हैं इस कार्ड को लेकर वे लखनऊ, सीतापुर और मऊ के अस्पताल तक गए लेकिन कार्ड से ईलाज नहीं हुआ। कभी बोला गया कि बाद में आना। तो कभी बोला गया कि इस कार्ड पर बीमारी का ईलाज संभव नहीं।

मुरली सवाल करते हैं, आखिर यह कार्ड बना ही क्यों जब हम गरीबों को इससे कोई लाभ मिलना ही नहीं। मायूस भाव से वे बताते हैं आयुष्मान कार्ड से तो कोई सहायता मिली नहीं उल्टे भागदौड़ करने और दवा ईलाज कराने में खुद का अच्छा खासा पैसा लग गया। मुरली का हाईड्रोसिल का ऑपरेशन भी नहीं हो पाया है। क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं कि ऑपरेशन करा सके और कार्ड का लाभ उन्हें मिल नहीं पा रहा।

अपनी बीमारी और ईलाज के कई सारे पर्चे दिखाते हुए वे कहते हैं जब अपने ही खर्चे पर ईलाज कराना है तो अब उनके लिए आयुष्मान कार्ड किसी रद्दी के कागज से कम नहीं। मुरली के अलावा गांव के अन्य लोग भी मिले, जिन्होंने बताया कि उनका आयुष्मान कार्ड तो बना है लेकिन उससे उन्हें कभी लाभ नहीं मिला।

कंदुनी गांव से निकलकर जब यह रिपोर्टर उनके बगल के गांव भीरा पहुंची तो वहां अपने घर के आंगन में बैठे बुजुर्ग राजाराम से मुलाकात हुई। आयुष्मान कार्ड के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कार्ड तो बना है लेकिन उसका कोई मतलब नहीं। पर ऐसा क्यों, सवाल के जवाब में गुस्से भरे लहजे में वे कहते हैं, “आप ही बताओ एक दांत निकलवाने के कहीं दस हजार लगता है, नहीं न! लेकिन इस कार्ड में लगता है। सब धांधली का खेल है”। राजाराम कहते हैं “जब ‘आयुष्मान भारत योजना’ के बारे में पता चला तो बहुत खुशी हुई थी। लगा कि अब हम गरीबों को ईलाज के लिए पैसों का मुंह नहीं देखना पड़ेगा और जहां भी यह कार्ड लेकर जायेंगे, ईलाज हो जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ”।

भीरा गांव के राजाराम अपना आयुष्मान कार्ड दिखाते हुए

बिसवां ब्लॉक के ही तहत आता है पुरुषोत्तम गांव। इस गांव के रहने वाले राम नरेश और रामा देवी पति- पत्नी हैं। दो बीघा खेती है बेटे, बहुएं, पोते-पोतियां सब मिलाकर ग्यारह लोगों का परिवार। बमुश्किल खेती पर गुजारा हो पाता है सो मजदूरी का काम भी कर लेते हैं। राम नरेश कहते हैं “कहने को तो परिवार के सब सदस्यों का आयुष्मान कार्ड बना है लेकिन सब बेकार पड़े हैं। जब कार्ड से ईलाज मिलना ही नहीं तो गरीबों का कार्ड क्यों बनवाया जा रहा है, समझ से परे है”।

रामा देवी बताती है कि दो साल पहले जब उनकी बहू गर्भवती थी तो तकलीफ़ होने पर वे लोग उन्हें लेकर को सीतापुर जिला अस्पताल ले गए। ‘आयुष्मान कार्ड’ दिखाया लेकिन उस कार्ड से अस्पताल ने ईलाज के लिए मना कर दिया। तब कहा गया कि इस कार्ड से यहां ईलाज नहीं होगा। बहू को या तो प्राइवेट अस्पताल ले जाओ या किसी दूसरे सरकारी अस्पताल।

तब थक हार कार वे लोग गर्भवती बहू को आनन-फानन में एक निजी अस्पताल ले गए। जहां उनकी जेब से बीस हज़ार भी खर्च हो गए और पैदा हुई पोती भी नहीं बच सकी। रामा की बहू गुड़िया बताती हैं कि उसकी बच्ची पेट में ही मर चुकी थी।

कोरासा गाँव के संतराम मौर्या और भग्गा गौतम

सरकार की इस योजना पर सवाल उठाते हुए राम नरेश कहते हैं “जब गरीबों के जेब से ही ईलाज का खर्चा निकलना है तो आयुष्मान कार्ड का क्या मतलब रह गया”। वे कहते हैं “सबसे बड़ी दुविधा तो यह है कि पहले तो कार्ड बन नहीं पा रहे और जब कई कोशिशों के बाद आयुष्मान कार्ड बन भी जा रहे हैं तो यह समझ नहीं आता कि आख़िर किस अस्पताल में ईलाज होगा और कहां नहीं।”

आयुष्मान कार्ड से मिलने वाले लाभ के विषय में जब हमने और जानकारी जुटाने के लिए एक अन्य गांव कोरासा की ओर रुख किया, तो वहां हमारी मुलाकात गांव के दो बुजुर्ग संतराम मौर्या और भग्गा गौतम जी से हुई। उन दोनों ने ही बताया कि उनका आज तक आयुष्मान कार्ड बना ही नहीं और क्यों नहीं बन पा रहा वे खुद नहीं समझ पा रहे।

संतराम कहते हैं “उनसे बार-बार यही कहा जाता है कि अभी उनका लिस्ट में नाम आया ही नहीं जब आयेगा तो आयुष्मान कार्ड बन जायेगा”। संतराम और भग्गा कहते हैं इतनी उम्र गुजर गई अब जिस उम्र में शरीर सबसे ज्यादा तकलीफ़ देने लगता है और ईलाज की जरूरत पड़ने लगती है, तब भी हम जैसे बुजुर्ग आयुष्मान कार्ड धारक नहीं बन पाते तो ऐसी योजना का क्या लाभ।”

सचमुच हालात उतने भी अच्छे  नहीं जितना सरकार द्वारा ढिंढोरा पीटा जा रहा है। आज भी गरीबों की एक बड़ी आबादी आयुष्मान कार्ड से वंचित है और जिसके पास है भी तो उन्हें समय पर और जरूरत के मुताबिक ईलाज नहीं मिल पा रहा। राम नरेश ठीक ही कहते हैं दुविधा तो यहां यह है कि वे लोग कार्डधारक तो बन गए लेकिन किस बीमारी पर, और कहां-कहां कार्ड आधारित ईलाज होगा इसकी जानकारी नहीं मिल पाती।

‘प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना’ ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति’ के तहत 23 सितंबर 2018 को भारत सरकार द्वारा शुरू की गई थी, जिसे आज तक की स्वास्थ्य योजनाओं में एक सबसे बड़ी योजना माना गया है। इस योजना का उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जिन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत है और जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं। इस योजना के तहत प्रधानमन्त्री ने 10 करोड़ से अधिक गरीब परिवारों को कवर करने की बात कही थी।

योजना का उद्देश्य भले ही गरीबों और निम्न आय वर्ग के परिवारों के हित में हो लेकिन इसमें दो राय नहीं कि योजना अपने शुरुआती समय से ही विवादों के घेरे में रही है। योजना के तहत कई धांधलियां सामने आती रही हैं।

गरीबों के कार्ड का इस्तेमाल कर चाहे निजी अस्पतालों द्वारा अथाह पैसा बनाने की घटनाएं हो, चाहे कार्ड धारक को सरकारी अस्पतालों में भी उचित ईलाज न मिलने की बात हो, एक के बाद एक इस तरह की खबरें और लोगों के अनुभव इतना बताने को काफी हैं कि गरीबों के नाम पर योजनाएं तो ला दी जाती हैं लेकिन उन योजनाओं का क्या हश्र होता है, और क्या वास्तव में जरूरतमंदों को योजनाओं का लाभ मिल भी पा रहा है या नहीं, उसकी मॉनिटरिंग भी तो आख़िर सरकार की जिम्मेदारी है।

(लखनऊ से सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

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